भारत जैसे कृषि प्रधान देश में जहां खेती-किसानी ग्रामीण इलाकों के लोगों की आय का अहम हिस्सा है, वहीं पशुपालन भी उनके लिए बेहद जरूरी है. खासकर छोटे और सीमांत किसान जिनके पास ज्यादा जमीन नहीं है और वे खेती करने में सक्षम नहीं हैं, वे आज भी पशुपालन करके अपना जीवन यापन कर रहे हैं. पशुपालन में बढ़ती संभावनाओं को देखते हुए ज्यादा से ज्यादा किसान इस ओर रुख करते नजर आ रहे हैं. आपको बता दें कि आज के समय में डेयरी फार्मिंग सबसे सफल व्यवसायों में से एक है. इस व्यवसाय को कम से कम जगह और कम लागत में शुरू किया जा सकता है. लेकिन यहां ध्यान रखने वाली बात यह है कि आप पशुओं की सही नस्ल का चुनाव करें. यहां यह सवाल भी उठता है कि क्या देसी या विदेशी नस्ल का चुनाव करना सही होगा. ऐसे में अगर आप भी अपना डेयरी फार्म खोलना चाहते हैं, तो यह खबर आपके लिए है.
भारत में पाई जाने वाली देसी नस्लों की गायें जैसे साहीवाल, गिर, राठी, थारपारकर, आदि जलवायु के लिहाज से देशी परिस्थितियों के लिए उपयुक्त मानी जाती हैं.
देसी गाय के फायदे:
कमियां:
विदेशी नस्लों जैसे होल्स्टीन फ्रिजियन (HF), जर्सी आदि को विशेष रूप से अधिक दूध उत्पादन के लिए पाला जाता है. इन्हें भारत में भी पाला जा रहा है.
विदेशी नस्ल के फायदे:
कमियां:
जी हां, आजकल देसी और विदेशी नस्लों को मिलाकर तैयार की गई हाइब्रिड नस्लें जैसे कि क्रॉसब्रीड जर्सी या HF क्रॉस भी डेयरी फार्मिंग के लिए अच्छा विकल्प बन रही हैं. इनमें देसी नस्लों की सहनशक्ति और विदेशी नस्लों का दूध उत्पादन दोनों शामिल होता है.
डेयरी फार्मिंग में सफलता के लिए जरूरी है कि आप नस्ल का चुनाव सोच-समझकर करें. अगर आप लंबे समय तक टिकाऊ और स्वास्थ्य के अनुकूल व्यवसाय करना चाहते हैं, तो देसी नस्ल आपके लिए बेहतर हो सकती है. वहीं यदि आप तेजी से अधिक मुनाफा कमाना चाहते हैं और प्रबंधकीय संसाधन अच्छे हैं, तो विदेशी नस्ल भी एक विकल्प हो सकती है.
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