भारतीय कृषि में पशुपालन के अंतर्गत भेड़ पालन की एक महत्वपूर्ण भूमिका है. यह किसानों के आजीविका का एक अहम पहलू है. समय के साथ यह व्यवसाय अपने प्रमुख उत्पादों जैसे, दूध, मांस, ऊन और खाल आदि के बढ़ते मांग को देखते हुए निरंतर तेजी से बढ़ रहा है. पशुपालकों का आय में बढ़ोतरी के लिए भेड़ पालन एक बेहतर विकल्प है. भेड़ पालन एक ऐसा व्यवसाय है, जिसे शुरू करने के लिए अधिक लागत की आवश्यकता नहीं होती है. बशर्ते भेड़ की अच्छी नस्लों का चयन किया जाए. आइए जानते हैं भेड़ के इन तीन नस्लों के बारे में, जिनका पालन कर किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.
भारत में भेड़ों की करीब 44 नस्ल पाई जाती हैं. इनमें 3 नस्लों को किसानों के लिए फायदेमंद माना जाता है. असल में ये नस्लों में मांस, ऊन और दूध के लिए उपयोगी है. जिसे बेचकर किसान मोटा मुनाफा कमा सकते हैं, ये है वो तीन नस्लें, गुग्नी भेड़, मारवाड़ी भेड़, और जैसलमेरी भेड़ है. आइए जानते हैं भेड़ों की 3 नस्लों के बारे में, जो किसानों के लिए फायदे का सौदा है.
इस भेड़ का आकार छोटा होता है. इस नस्ल के पालन करने का मुख्य उद्देश्य सींग होते हैं. इस भेड़ का ऊन काफी महीन और चमकदार होता है और इससे प्रति भेड़ औसतन 1 से 1.5 किलोग्राम वार्षिक ऊन प्राप्त होता है. जिसे आम तौर पर साल में 3 बार काटा जाता है. इस भेड़ की नस्ल के ऊन का उपयोग शॉल बनाने और कंबल बनाने के लिए किया जाता है.
इस भेड़ की पहचान लंबे पैर, काला चेहरा है. यह भेड़ मुख्य रूप से राजस्थान में पाई जाती है. लेकिन, अब इस भेड़ की नस्ल को उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में भी पाला जा रहा है. इस भेड़ के जीवित रहने की दर दूसरे भेड़ों से अधिक होता है. इसके प्रत्येक भेंड से साल में 1.5 से 2.5 किलोग्राम ऊन निकाल करते हैं. इस नस्ल की साल में दो बार कटाई की जाती है. इसका पालन मांस के उद्देश्य से भी किया जाता है.
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जैसलमेरी भेड़ लंबी होता है. इसके चेहरे काले और भूरे रंग के होते हैं. इसका ऊन सफेद होता है. यह भेड़ मुख्य रूप से राजस्थान के जैसलमेर में पाया जाता है. इस भेड़ की लंबाई 6.5 सेंटीमीटर होता है. इस भेड़ को मांस और दूध के उपयोग के लिए पाला जाता है. इसमें से प्रति भेड़ 750 ग्राम ऊन साल में निकाला जाता है.
वैसे तो भेड़ों को हर तरह की जलवायु में पाला जा सकता है. लेकिन, अधिक गर्म इलाके भेंड़ों के लिए अच्छे नहीं होते हैं. पहाड़ी और पठारी इलाकों की जलवायु भेड़ पालन के लिए उपयुक्त माना जाता है.
भेड़ों के रखरखाव और खानपान में बहुत कम खर्च होता है. खेतों, पहाड़ों या कम उपजाऊ इलाकों में उगने वाला चारा ही उनके लिए पर्याप्त होता है. गाय या भैंस की तरह इसके लिए पशु आहार की जरुरत नहीं होता है. भेड़ों के आप खेतों में उगी ज्वार, बाजरा और मक्का खिला करते हैं. इनके आवास के लिए शेड की जरपरत होती है. ध्यान रहे शेड थोड़ा बड़ा और हवादार होना चाहिए.
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