हरा चारा हो या फिर सूखा चारा, देश में दोनों की ही कमी चल रही है. खासतौर पर गर्मियों में तो हरे चारे की बेहद कमी हो जाती है. इसके चलते पशुओं का दूध उत्पादन भी कम हो जाता है. यही वजह है कि पशु कोई भी हो लेकिन उसके लिए चारा जुटाना बेहद कठिन हो गया है. बारिश और सर्दियों के मौसम में तो हरा चारा आसानी से मिल जाता है. लेकिन सबसे ज्यादा परेशानी होती है गर्मियों में. ऐसे वक्त में पशुपालक एक ऐसे हरे चारे की जरूरत महसूस करते हैं जो दूध बढ़ाने वाला भी हो और जाड़ा, गर्मी और बरसात हर मौसम में आराम से मिल जाए.
फोडर साइंटिस्ट ने एक ऐसा ही हरा चारा तैयार किया है. इस चारे का नाम है मोरिंगा (सहजन). गौरतलब रहे सहजन की फली भी खाई जाती है. केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी), मथुरा बीते पांच साल से इस पर लगातार रिसर्च कर रहा है. सीआईआरजी के साइंटिस्ट का कहना है कि बेशक मोरिंगा का एक पेड़ होता है. लेकिन कुछ खास बातों का ध्यान रखने पर इसकी पत्तियों के साथ इसके तने को भी चारे के रूप में पशुओं को खिलाया जा सकता है.
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सीआईआरजी के पूर्व सीनियर साइंटिस्ट डॉ. मोहम्मद आरिफ ने किसान तक को बताया कि मोरिंगा लगाने के लिए गर्मी और बरसात का मौसम सही होता है. जैसे अभी गर्मी का मौसम है. अब से लेकर जुलाई तक मोरिंगा लगाना शुरू कर दिया जाए तो फायदेमंद रहेगा. लेकिन ख्याल यह रखना है कि इसे पेड़ नहीं बनने देना है. इसके लिए यह जरूरी है कि 30 से 45 सेंटी मीटर की दूरी पर इसकी बुवाई की जाए. इसकी पहली कटाई 90 दिन यानि तीन महीने के बाद करनी है. तीन महीने के वक्त में यह आठ से नौ फीट की हाईट पर आ जाता है.
तो इस तरह से पहली कटाई 90 दिन में करने के बाद बाकी की कटाई हर 60 दिन बाद करनी है. काटते वक्त यह खास ख्याल रखना है कि इसकी कटाई जमीन से एक से डेढ़ फीट की ऊंचाई से करनी है. इससे होता यह है कि नई शाखाएं आने में आसानी रहती है.
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डॉ. आरिफ ने बताया कि मोरिंगा के तने को भी बकरी खाती है. क्योंकि इसका तना बहुत ही मुलायम होता है. इसकी पत्तियों को भी बकरे और बकरी बड़े ही चाव से खाते हैं. अगर आप चाहें तो पहले बकरियों को पत्तियां खिला सकते हैं. इसके तने को अलग रखकर उसके पैलेट्स बना सकते हैं. पैलेट्स बनाने का एक अलग तरीका है. ऐसा करके आप बकरे और बकरियों के लिए पूरे साल के चारे का इंतजाम कर सकते हैं.
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