कोई आपसे पूछे कि एक मछली का रेट कितना हो सकता है? आपका जवाब होगा 100 रुपये, 200 रुपये या उससे थोड़ा अधिक. लेकिन आपसे कोई ये कहे कि ऐसी भी मछली है जिसके एक नग का रेट दो लाख से अधिक है. आप फौरन उस व्यक्ति को झूठा करार देंगे. ये भी कह सकते हैं कि मछली के नाम पर कोई आदमी इतना भ्रम कैसे फैला सकता है. लेकिन मछली का यह दो लाख वाला रेट बिल्कुल सही है. जी हां. चौंकिए मत. आंध्र प्रदेश में समंदर से एक ऐसी मछली पकड़ी गई है जिसका रेट 2.10 लाख रुपये मिला है. इस मछली का नाम है कचिरी.
कचिरी मछली आंध्र प्रदेश के समुद्री इलाकों के लिए रेयर है. यहां शायद ही यह मछली पाई जाती हो. लेकिन 15 फरवरी को अचानक एक वाकया हुआ और एक मछुआरे के हाथ यह मछली लग गई. इस मछुआरे ने अब तक सैकड़ों किलो मछली पकड़ी है. पर केवल एक कचिरी ने उस मछुआरे को लखपति बना दिया. दरअसल, इस मछली का दवा बनाने में बहुत बड़े स्तर पर उपयोग होता है. यही वजह कि मछुआरे भी इसकी ताक में जाल मारते रहते हैं. पर मिलना मुश्किल होता है.
ये भी पढ़ें: झारखंड में खेतों तक कैसे पहुंचेगा पानी, दशकों से अधूरा पड़ा है जलाशय और डैम का काम
15 फरवरी को आंध्र प्रदेश के अंतरवेदी समुद्री इलाके में यह कचिरी मछली पाई गई जिसे डॉ. बीआर आंबेडकर कोनासीमा में एक मछुवारे ने पकड़ा. फिर लोकल बाजार में इस मछली की बोली लगाई गई जिसमें अंतिम दाम 2.10 लाख रुपये मिला. बोली में कई व्यापारियों ने हिस्सा लिया और देखते-देखते कचिरी मछली का दाम 2.10 लाख रुपये पर पहुंच गया. इस मछली का वजन रहा 26 किलो. इस हिसाब से प्रति किलो मछली का भाव जोड़ें तो कचिरी मछली आठ हजार रुपये प्रति किलो के रेट से बिकी.
कचिरी मछली दिखने में काली चित्तीदार होती है जो क्रोकर प्रजाति की है. देखने में भले ही यह मछली बदरंग हो, लेकिन दाम हजारों रुपये में मिलते हैं. यही वजह है कि इस मछली के ऊंचे रेट के कारण मछुआरे और व्यापारी इसे सुनहरी मछली या गोल्डन फिश कहते हैं. यह मछली गहरे समुद्र में पाई जाती है.
ये भी पढ़ें: हाजीपुर में केले के पौधे से आत्मनिर्भर बन रहीं महिलाएं, रेशे से मिल रहा रोजगार
ऐसा कहा जाता है कि नर कचिरी मछली को समुद्र में बहुत कम देखा जाता है और इसमें उच्च औषधीय गुण पाए जाते हैं. मछली के कुछ हिस्सों, पित्ताशय और उसके फेफड़ों के कुछ हिस्सों का इस्तेमाल उस धागे को बनाने में किया जाता है जिसे डॉक्टर सर्जरी के दौरान टांके लगाने के लिए करते हैं. यह धागा इसलिए महत्वपूर्ण होता है क्योंकि उसमें हल्का सा भी संक्रमण मरीज को गंभीर खतरे में डाल सकता है. लेकिन कचिरी से बना धागा इस मामले में सर्वोत्तम माना जाता है.
मछुआरे और व्यापारी जो इन मछलियों को खरीदते हैं, उन्हें निर्यात करने या बेचने के बाद उनकी किस्मत खुल जाती है. समुद्री तटीय इलाके में ऐसा कहा जाता है क्योंकि एक ही मछली किसी मछुआरे को हजारों या लाख तक में कमाई करा सकती है. मत्स्य विभाग के अधिकारियों और विशेषज्ञों ने कहा कि "गोल्डन फिश" शब्द इसकी उच्च लागत के कारण गढ़ा गया था. यानी एक मछली मछुआरे का हाथ लग जाए तो सोने के भाव बिक जाती है. व्यापारी इस मछली के लिए मुंहमांगी कीमत देने के लिए तैयार रहते हैं.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today