देश ही नहीं विदेश में भी है नस्ल सुधारने के लिए जमनापारी बकरियों की डिमांड, जानें वजह  

देश ही नहीं विदेश में भी है नस्ल सुधारने के लिए जमनापारी बकरियों की डिमांड, जानें वजह  

केन्द्रीय पशुपालन मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक जमनापरी बकरियां पहले नंबर पर यूपी में 7.54 लाख, दूसरे पर मध्य प्रदेश 5.66 लाख, तीसरे पर बिहार 3.21 लाख, चौथे पर राजस्थान 3.09 लाख और पांचवें नंबर पर पश्चिम बंगाल में 1.25 लाख सबसे ज्यादा पाई जाती हैं. देश में दूध देने वाली कुल बकरियों की संख्या 7.5 लाख है. 

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देश ही नहीं विदेश में भी है नस्ल सुधारने के लिए जमनापारी बकरियों की डिमांड, जानें वजह  जमनापारी बकरी का फाइल फोटो. फोटो क्रेडिट-किसान तक

गोट एक्सपर्ट की मानें तो हमारे देश में बड़ी संख्या  में ऐसे बकरे और बकरियां भी हैं जिन्हें वर्गीकृत नहीं किया गया है. बकरे और बकरियों के ऐसे झुंड की नस्ल  सुधार के लिए जमनापारी बकरियों का इस्तेमाल किया जाता है. देश में ही नहीं विदेशों में भी नस्ल सुधार के लिए जमनापारी नस्ल के बकरे और बकरियां भेजे जाते हैं. केन्द्री य बकरी अनुसंधान संस्था न (सीआईआरजी), मथुरा के साइंटिस्ट की मानें तो दूध, मीट, बच्चा देने और अपने बॉडी साइज के चलते जमनापारी के नस्ल के बकरे और बकरियां सबसे खास मानें जाते हैं. यही वजह है कि जब जिस देश को जरूरत होती वो भारत से जमनापरी नस्ल के बकरों की डिमांड करता है. 

नेपाल, भूटान, इंडोनेशिया, फिलीपींस, मलेशिया आदि देश में इस नस्ल के बकरे भेजे जा चुके हैं. खासतौर पर सफेद रंग में पाए जाने वाले यह बकरे सामान्य से ज्यादा लम्बे होते हैं. देखने में भी खूबसूरत होते हैं. सीआईआरजी भी लगातार इस नस्ल पर काम कर रहा है. हाल ही में इसके लिए संस्थान को पुरस्कार दिया गया था.

यह नस्ल यूपी के इटावा शहर की है. सीआईआरजी 43 साल से बकरियों पर काम कर रहा है. आर्टिफिशल इंसेमीनेशन का सहारा लेकर इस खास नस्ल की संख्या बढ़ाई जा रही है. 4-5 साल में 4 हजार के करीब जमनापारी नस्ल के बकरे-बकरी किसानों में वितरित किए जा चुके हैं. 

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जानें जमनापारी के बारे में सीआईआरजी के साइंटिस्ट की राय

सीआईआरजी के सीनियर साइंटिस्ट और जमनापरी नस्ल  के एक्सपर्ट डॉ. एमके सिंह ने किसान तक को बताया कि दूसरे देश भारत से जमनापरी नस्ल के बकरों की डिमांड अपने यहां कि बकरियों की नस्ल सुधार के लिए करते हैं. क्योंकि जमनापरी नस्ल की बकरी रोजाना 4 से 5 लीटर तक दूध देती है. इसका दुग्ध काल 175 से 200 दिन का होता है. एक दुग्ध काल में 500 लीटर तक दूध देती है. इस नस्ल में दो बच्चे देने की दर 50 फीसद तक है. इस नस्ल का वजन रोजाना 120 से 125 ग्राम तक बढ़ता है. शारीरिक बनावट और सफेद रंग का होने के चलते इनकी खूबसूरती देखते ही बनती है. इसीलिए ईद पर भी इनकी खासी डिमांड रहती है. 

16 पाइंट में समझें जमनापरी बकरियों की खासियत  

1 जमनापरी बकरी इटावा, यूपी के चकरनगर और गढ़पुरा इलाके में बहुत पाई जाती हैं. यह इलाका यमुना और चम्बल के बीहड़ वाला है. यहां बकरियों के लिए चराई की अच्छी सुविधा है. यह यूपी की एक खास नस्ल है. इसके अलावा यह मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान और पश्चिम बंगाल में भी पाई जाती है.

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2 यह देश की लम्बाई में एक बड़े आकार वाली बकरी है. इसके कान भी लम्बे नीचे की ओर लटके हुए होते हैं.  

3 इसका रंग आमतौर पर सफेद होता है. लेकिन कभी-कभी कान और गले पर लाल रंग की धारियां भी होती हैं. 

4 इसकी नाक उभरी हुई होती है और उसके आसपास बालों के गुच्छें होते हैं. 

5 बकरे-बकरी दोनों के पीछे के दोनों पैर के ऊपर लम्बे बाल होते हैं.

6 बकरे और बकरी दोनों में ही सींग पाए जाते हैं. 

7 एक बकरे का वजन 45 किलो और बकरी का वजन 38 किलो तक होता है. 

8 बकरा 90 से 100 सेमी और बकरी 70 से 80 सेमी ऊंची होती हैं.  

9 जमनापुरी बकरियां अपने 194 दिन के दूधकाल में एवरेज 200 लीटर तक दूध देती हैं.  

10 एक साल में जमनापरी बकरी 21 से 26 किलो तक की हो जाती है.

11 जमनापरी का बच्चा 4 किलो वजन तक का होता है. 

12 20 से 25 महीने की उम्र पर पहला बच्चा  देती है. 

13 दूध के साथ ही यह मीट के लिए भी पाली जाती है. 

14 सीआईआरजी, मथुरा लगातार जमनापरी बकरी पर रिसर्च करता है. 

15 देश में जमनापरी बकरियों की कुल संख्या 25.56 लाख है. 

16 प्योर जमनापरी ब्रीड बकरियों की संख्या 11.78 लाख है.

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