बकरी बीमार ना पड़े, जन्म के साथ ही उसके बच्चों की मौत ना हो. बकरी पालन के दौरान अगर आपने ये रोकथाम कर ली तो फिर आपको मुनाफा कमाने से कोई नहीं रोक सकता है. लेकिन गोट एक्सपर्ट की मानें तो ये तभी संभव है जब आपने बकरी पालन करने से पहले ट्रेनिंग ली हो. देशभर में सरकारी और प्राइवेट बहुत सारे ऐसे संस्थान हैं जो बकरी पालन की ट्रेनिंग देते हैं. क्योंकि बकरी पालन में लागत का एक बड़ा हिस्सा बकरे-बकरियों की बीमारी पर भी खर्च होता है.
साथ बकरी के बच्चे बड़े होकर मुनाफा कराते हैं. अब उनकी मौत होने पर सीधा असर मुनाफे पर पड़ता है. एक्सपर्ट का कहना है कि पारंपरिक और साइंटीफिक तरीके से बकरी पालन करने में बड़ा फर्क है. अगर पुराने ढर्रे को छोड़ साइंटीफिक तरीके से बकरी पालन किया जाए तो बकरी को बीमारी से बचाने के साथ ही उसके बच्चों की मृत्यु दर को काफी हद तक कम और खत्म किया जा सकता है.
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साइंटीफिक गोट फार्मिंग के संचालक राशिद ने बताया कि बकरी पालन से पहले केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (CIRG), मथुरा से ट्रेनिंग लेने का सबसे बड़ा फायदा ये हुआ कि हमारे फार्म पर बकरियों के बीच मृत्यु दर कम होने के बाद अब ना के बराबर रह गई है. और यह सब मुमकिन हुआ सीआईआरजी में पशु चारा, वैक्सीन, शेड प्लान, बीमारी की पहचान आदि की जानकारी मिलने से. वर्ना पहले देसी ढर्रे का तो यह हाल था कि बकरी का बच्चा पैदा होने के बाद हम अपनी मर्जी के हिसाब से उसे दूध पिलाते थे. कब वो कम पी रहा है और कब ज्यादा यह पता ही नहीं चलता था. जिसके चलते अक्सर बकरी के बच्चों की जल्द ही मौत हो जाती थी.
राशिद का कहना है कि ट्रेनिंग करने के बाद पता चला कि बकरा हो या बकरी सबको उनकी उम्र और वजन के हिसाब से चारा देना है. यहां तक की पिलाए जाने वाले पानी की मात्रा भी निर्धारित है. पहले यह बातें बड़ी ही छोटी लगती थीं. लेकिन अब सोचो तो लगता है कि इसी पर पर बकरे-बकरियों का जीवन चक्र टिका हुआ है. हर रोज हरा चारा भी देना है तो सूखे चारे संग जौ-चने, ज्वार और दूसरा दाना भी देना है.
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