AMR and Green Fodder: हरा चारा भी कम करता है पशुओं में एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस का जोखिम 

AMR and Green Fodder: हरा चारा भी कम करता है पशुओं में एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस का जोखिम 

AMR and Green Fodder हरा चारा उगाने के दौरान पेस्टिसाइड और केमिकल के इस्तेमाल पर कंट्रोल कर लिया जाए तो फिर बड़ी ही आसानी से डेयरी, पोल्ट्री प्रोडक्ट और मीट के एक्सपोर्ट को बढ़ाया जा सकता है. इसके लिए केन्द्र सरकार के कई रिसर्च सेन्टर किसानों की मदद भी कर रहे हैं.  

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AMR and Green Fodder: हरा चारा भी कम करता है पशुओं में एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस का जोखिम पशुओं के लिए वरदान है ये चारा

AMR and Green Fodder पशुपालन हो या मुर्गी और मछली पालन, एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस (AMR) एक बड़ी परेशानी बन चुकी है. इसका असर हैल्थ पर तो पड़ता ही है, साथ ही ये एनिमल प्रोडक्ट के एक्सपोर्ट को बढ़ाने में भी रुकावट बना हुआ है. केन्द्रीय पशुपालन और डेयरी मंत्रालय ने सोशल मीडिया पर पशुपालकों को जागरुक करते हुए कहा है कि हरे चारे की मदद से भी हम एएमआर के जोखि‍म को कम कर सकते हैं. अगर हम हरा चारा उगाने में पेस्टिसाइड और केमिकल का इस्तेमाल न के बराबर करें तो ये बहुत ही फायदेमंद रहेगा. 

और अगर बिल्कुल ही नहीं करते हैं तो हम नेचुरल और ऑर्गेनिक खेती में आ जाते हैं. और दोनों का ही एक बड़ा फायदा एनिमल प्रोडक्ट को एक्सपोर्ट करने में मिलता है. साथ ही घरेलू बाजार में भी ऑर्गेनिक प्रोडक्ट की डिमांड आने लगी है. और डेयरी में इस तरह के प्रोडक्ट तैयार करने में मदद करेगा हरा चारा. अगर मंत्रालय की दी गई सलाह मुताबिक हरा चारा उगाया जाए तो ये कोई मुश्कि‍ल काम नहीं है. 

ये हैं ऑर्गेनिक और नेचुरल हरे चारे के फायदे

सीनियर साइंटिस्ट और फोडर एक्सपर्ट डॉ. मोहम्मद आरिफ का कहना है कि नेचुरल फार्मिंग से एक हेक्टेयर में उगे हरे चारे को करीब 100 बकरियां खा लेती हैं. वहीं नेचुरल फार्मिंग से उगे हरे चारे का सबसे बड़ा फायदा ये है कि इसे खाने के बाद जांच में बकरी के दूध और उसके मीट में दूषित तत्व  नहीं पाए जाते हैं. क्योंकि आज होता ये है जो भी देश मीट खरीदता है तो वो एक्सपोर्ट के दौरान मीट की जांच कराता है. इसी जांच में जब मीट में कुछ दूषित तत्व पाए जाते हैं जो कैमिकल से उगे चारे की वजह से आ जाते हैं तो मीट के उस आर्डर को कैंसिल कर दिया जाता है. ऐसा ही दूध के साथ होता है. आजकल बाजार में ऑर्गनिक दूध की डिमांड है. 

इस तरह उगाया जा सकता है नेचुरल चारा 

डॉ. मोहम्मद आरिफ ने बताया कि जीवा और बीजा अमृत से उगाय जाने के चलते नेचुरल फार्मिंग वाला चारा सस्ता पड़ता है. उत्पादन भी ज्यादा होता है. ये बकरियों की हैल्थ पर अच्छा असर डालता है. इस पर अभी और रिसर्च चल रही है. बकरी पालन के साथ चारा बेचकर भी मुनाफा कमाया जा सकता है. जब तक बकरी खुद से बाग, मैदान और जंगल में चर रही है तो उसका दूध 100 फीसद ऑर्गेनिक है. क्योंकि बकरी की आदत है कि वो अपने चारे को पेड़ और झाड़ी से खुद चुनकर खाती है. लेकिन जब हम फार्म या घर में पाली हुई बकरियों को बरसीम, चरी या और दूसरा हरा चारा देते हैं तो उसमे पेस्टीसाइट शामिल रहता है.
इसीलिए हम किसानों को नेचुरल फार्मिंग से चारा उगाने के बारे में बता रहे हैं. इसके लिए हमने जीवामृत और बीजामृत बनाया है. जीवामृत बनाने के लिए गुड़, बेसन और देशी गाय के गोबर-मूत्र में मिट्टी मिलाकर बनाया जा रहा है. यह सभी चीज मिलकर मिट्टी में पहले से मौजूद फ्रेंडली बैक्टीरिया को और बढ़ा देते हैं. इसी का फायदा चारे को मिलता है. इसे बनाने में बकरियों की मेंगनी का इस्ते माल करने पर भी रिसर्च चल रही है. 

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