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भैंस को भूलकर भी न खिलाएं गीला पुआल, वरना हो सकती है ये गंभीर बीमारी, दूध भी देगी कम

भैंस को भूलकर भी न खिलाएं गीला पुआल, वरना हो सकती है ये गंभीर बीमारी, दूध भी देगी कम

पशु चिकित्सकों की माने तो भैंसों को सबसे अधिक लेमनाईटिश नामक बीमारी लगती है, जिसे टंगफुल्ली भी कहा जाता है. अगर भैंसें इस बीमारी की चपेट में आती हैं, तो दूध देना कम कर देती हैं. इसलिए भैंस को लेमनाईटिश से बचाने के लिए किसानों को काफी सावधानी बरतते हुए चारा खिलाना चाहिए.

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भैंस को होती है यह गंभीर बीमारी. (सांकेतिक फोटो) भैंस को होती है यह गंभीर बीमारी. (सांकेतिक फोटो)

भारत एक कृषि प्रधान देश है. यहां पर किसान खेती के साथ-साथ बड़े स्तर पर पशुपालन भी करते हैं. इससे किसानों की अच्छी कमाई हो जाती है. लेकिन किसानों को अपने पशुओं के स्वास्थ्य पर भी ध्यान देना पड़ता है. क्योंकि मौसम में बदलाव आने पर उनके स्वास्थ्य पर असर पड़ता है. ऐसे में गाय- भैसें बीमार पड़ जाती हैं. इसलिए मौसम में बदलाव आने पर अपनी गाय- भैंस के चारे पर विशेष ध्यान देना चाहिए. उन्हें मौसम के अनुकूल ही चारा देना चाहिए. 

पशु चिकित्सकों की माने तो भैंसों को सबसे अधिक लेमनाईटिश नामक बीमारी लगती है, जिसे टंगफुल्ली भी कहा जाता है. अगर भैंसें इस बीमारी की चपेट में आती हैं, तो दूध देना कम कर देती हैं. इसलिए भैंस को लेमनाईटिश से बचाने के लिए किसानों को काफी सावधानी बरतते हुए चारा खिलाना चाहिए. क्योंकि चारा खिलाने में सावधानी बरतने से पशुओं को रोगों से बचाया जा सकता है. दरअसल, लेमनाईटिश एक बहुत ही गंभीर बीमारी है. इस रोग की चपेट में आने पर भैंस के पैर फूलने लगते हैं.

लेमनाईटिश रोग से बचाव के लिए क्या करें

विशेषज्ञों का कहना है कि लेमनाईटिश से पीड़ित भैंस का अगर समय रहते इलाज नहीं किया गया, तो उसके पैर जख्मी भी हो सकते हैं. चिकित्सकों की माने तो यह रोग गीला पुआल खिलाने से होता है. अक्सर पशुपालक चारा की कमी होने पर अपनी भैंस को गीला पुआल खिला देते हैं. इससे उसके स्वास्थ्य पर भी असर पड़ सकता है. ऐसे में किसानों को पुआल के बदले भैंस को गेंहू का भूसा खिलाना चाहिए. चिकित्सकों की माने तो लेमनाईटिश रोग से बचाव के बारे में किसानों को अभी तक कोई जानकारी नहीं है. ऐसे में गांव-गांव जाकर किसानों को जागरूक करने की जरूरत है.

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90 फीसदी बीमारी सही हो जाती है

साथ ही लेमनाईटिश से बचाव के लिए भैंस का टीका भी लगा सकते हैं. इसके अलावा पशु को हर तीन माह के अंतराल पर कृमि नाशक दवा भी खिला सकते हैं. इससे भैंस को इस रोग से संबंधित 90 फीसदी बीमारी सही हो जाती है. अगर इसके बावजूद भी भैंस बीमार पड़ती है, तो उसे अस्पताल में ले जाकर इलाज करा सकते हैं.

250 ग्राम गेहूं का आटा मिला दें

वहीं, गर्मी के मौसम में भैंस को पानी की अधिक जरूरत पड़ती है. इसलिए उन्हें अधिक से अधिक पानी पिलाएं. साथ ही चारे के रूप में हरी- हरी घास अधिक दें, ताकि उनके शरीर को पूरा पोषक तत्व मिल सके. इससे पशुओं के स्वास्थ्य पर सकारात्मक असर पड़ेगा और वे हेल्दी रहेंगे. इसके अलावा किसान अपने मवेशियों को आटा और सरसों भी मिलाकर खिला सकते हैं. इसके लिए सबसे पहले 300 ग्राम सरसों का तेल लें. फिर उस तेल में 250 ग्राम गेहूं का आटा मिला दें. इसके बाद शाम के समय पशु को चारा खिलाने और पानी पिलाने के बाद उसे खिलाएं. 

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