तालाब में मछलियों के मरने से सबसे ज्यादा नुकसान मछुआरों को होता है. यदि तालाब की समुचित सफाई एवं चूनाकरण किया जाए तो मछलियों को बीमारियों से बचाया जा सकता है. हालांकि, कभी-कभी मछली पालक लापरवाह हो जाते हैं. तालाब की नियमित सफाई न करना. चूने का प्रयोग भी ठीक से नहीं किया जाता, जिससे मछलियां मर जाती हैं. जिस वजह से मछली पालकों को काफी नुकसान होता है. जिससे बचने के लिए जरूरी है कि मछली पालकों के पास सही जानकारी ही. ऐसे में आइए जानते हैं मछलियों में होने वाली ड्रॉप्सी बीमारी, उसके लक्षण और उपचार के बारे में.
ड्रॉप्सी बीमारी में मछली के किसी भी अंग में पानी सा भर जाता है. ऐसी बीमार मछलियों को तालाब से बाहर निकाल देना चाहिए. यह उन पोखरों में होता है जहां पर्याप्त भोजन की कमी होती है. इसमें मछली का धड़ उसके सिर के अनुपात में काफी पतला हो जाता है और मछली दुर्बल हो जाती है. मछली जब हाइड्रोफिला नामक जीवाणु के सम्पर्क में आती है तो यह रोग होता है. प्रमुख लक्षण शल्कों का बहुत अधिक मात्रा में गिरना और पेट में पानी भर जाता है.
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भारत सरकार किसानों की आय बढ़ाने के लिए लगातार प्रयास कर रही है. इसके लिए सरकार कृषि के साथ-साथ कुछ छोटे उद्योगों को भी बढ़ावा देने में जुटी है. जिससे किसान भाई आसानी से अपनी आजीविका चला सकें और खेती के साथ-साथ अन्य स्रोतों से भी पैसा कमा सकें. इन छोटे उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए सरकार की ओर से सब्सिडी भी दी जाती है. जिससे किसानों को लगाने में मदद मिलती है. इन लघु उद्योगों में मछली पालन उद्योग भी शामिल है. जो इस समय किसानों के बीच काफी मशहूर हो रहा है. इसकी अपार संभावनाओं को देखते हुए किसानों का रुझान इस ओर तेजी से बढ़ रहा है.
इस समय बाजार में मछली की मांग बहुत ज्यादा है. इस बात को ध्यान में रखते हुए मछली को बेचने में ज्यादा परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता है. इसके अलावा मछली पालन उद्योग शुरू करने के लिए ज्यादा पूंजी की भी आवश्यकता नहीं होती है. यह उद्योग कम खर्च में अधिक उत्पादन देने वाला है. इसे छोटे और बड़े दोनों ही स्तर पर शुरू किया जा सकता है. इसके लिए सरकार की ओर से सहायता भी मुहैया करायी जाती है. इस उद्योग से प्राप्त होने वाला मुनाफा इसमें होने वाले खर्च से लगभग 5 से 10 गुना अधिक होता है. जिससे किसान भाई को अच्छी खासी कमाई हो जाती है.
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