अभी तक हमने पढ़ा और सुना था कि ओलंपिक में प्रतियोगिता से पहले और उसके बाद भी एथलीट (खिलाड़ियों) का डोपिंग टेस्ट होता है. लेकिन जो खबर हम आपको बताने जा रहे हैं वो खासी चौंकाने वाली है. शायद ये सुनकर आपको अजीब लगेगा कि ज्यादा दूध देने वाली प्रतियोगिता में जाने से पहले गाय-भैंस का डोपिंग टेस्ट हो रहा है. प्रतियोगिता में जाने से पहले और उसके बाद गाय-भैंस के ब्लड और मिल्क के सैम्पल लिए जा रहे हैं. पशु मेला आयोजन समिति प्रोग्रेसिव डेयरी फार्मर एसोसिएशन (PDFA) की मांग पर गुरु अंगद देव वेटरनरी और एनीमल साइंस यूनिवर्सिटी (Gadvasu), लुधियाना गाय-भैंस के लिए गए सैम्पल की जांच कर रही है.
गौरतलब रहे लुधियाना-फिरोजपुर हाइवे पर जगरांव में पीडीएफए की ओर से ये 17वां पशु मेला आयोजित किया जा रहा है. मेले के दौरान तमाम प्रतियोगिताओं के दौरान 15 लीटर से ज्यादा दूध देने वाली भैंस से लेकर 35 और 50 लीटर से ज्यादा दूध देने वाली गाय को चुनने की प्रतियोगिता भी होती है. पीडीएफए से जुड़े उदय तिवारी ने किसान तक को बताया कि हम इसलिए भी गाय-भैंस की जांच कराते हैं कि मेले के दौरान कोई बीमार या किसी तरह के इंफेक्शन से पीड़ित पशु मेले में ना आ जाए.
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गडवासु के वाइस चांसलर डॉ. इंद्रजीत सिंह ने किसान तक को बताया कि कुछ पशुपालक प्रतियोगिताओं के दौरान अपने पशुओं को ले जाते हैं. लेकिन प्रतियोगिता के दौरान या उससे पहले ये पशुपालक गाय-भैंस को एक ऐसा टीका देते हैं जो सिंथेटिक ग्रोथ हॉर्मोन का होता है. इससे होता ये है कि जो गाय-भैंस 20 लीटर दूध दे रहा है वो इस टीके के बाद 30 से 35 लीटर तक दूध देने लगती है. इसी की जांच करने के लिए पीडीएफए के प्रेसिडेंट दलजीत सिंह गिल की मांग पर हमने प्रतियोगिता में हिस्सा लेने आए करीब 55 से 60 पशुओं के सैम्पल लिए हैं. डोप टेस्ट की तरह से लैब में इनके ब्लड और मिल्क की जांच हो रही है. हमारी यूनिर्सिटी के बॉयो टेक्नोलॉजी डिपार्टमेंट ने इसकी जांच का तरीका खोजा है. हम पहली बार यूनिवर्सिटी के बाहर किसी की मांग पर ये जांच करने जा रहे हैं. हमारे संस्थान में इस पर ट्रॉयल हो चुका है.
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डॉ. इन्द्रजीत सिंह ने बताया कि अमेरिका, कनाडा, ब्राजील और पाकिस्तान में ज्यादा दूध लेने के लिए धड़ल्ले से पशुओं को ये टीका दिया जा रहा है. लेकिन हमारे देश में इसकी मंजूरी नहीं है. भारत में भी साल 2010 से 2013 के बीच इसका टेस्ट किया गया था. मैंने खुद कुछ भैंसों पर इसका इस्तेमाल किया था. लेकिन भारत सरकार ने इसकी मंजूरी नहीं दी थी. तब से कुछ लोग चोरी-छिपे इसे देश में लाते हैं और पशु पालकों को बेचते हैं.
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