Parasite Attack on Animal: पशुओं को मक्खी-मच्छर, चिचड़ से बचाने को अभी करें ये काम, बरसात-बाढ़ के बाद करेंगे परेशान 

Parasite Attack on Animal: पशुओं को मक्खी-मच्छर, चिचड़ से बचाने को अभी करें ये काम, बरसात-बाढ़ के बाद करेंगे परेशान 

Parasite Attack on Animal साइंस की भाषा में जिन्हें परजीवी रोग (पैरासाइटिक डिसीज) कहा जाता है उन्हें एक आम पशुपालक मच्छर-मक्खी, जोंक, किलनी के नाम से जानता है. बरसात और बाढ़ के बाद ये पशुओं पर हमला करते हैं. इनके चलते पशु बीमार तो होते ही हैं कई बार गंभीर बीमारी होने के चलते उनकी मौत तक हो जाती है. साथ उत्पादन भी घट जाता है.  

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Parasite Attack on Animal: पशुओं को मक्खी-मच्छर, चिचड़ से बचाने को अभी करें ये काम, बरसात-बाढ़ के बाद करेंगे परेशान भैंस पालन

Parasite Attack on Animal पशुओं में होने वालीं बीमारियों की बड़ी वजह और पशुओं को सबसे ज्यादा परेशान करने वाले मच्छर-मक्खी, जोंक, किलनी ही हैं. पशुओं की ज्यादातर बीमारियों बड़े वाहक ये ही हैं. डॉक्टरी भाषा में इन्हें वेक्टर भी कहा जाता है. ये खासतौर पर बरसात और बाढ़ का पानी उतरने के बाद सक्रिशय होते हैं. पशुओं से चिपककर उन्हें काटना और उनका खून चूसना इनका काम है. कुछ तो ऐसे भी होते हैं जो गाय-भैंस, भेड़-बकरी के खून में शामिल होकर उन्हें परेशान करते हैं. इन्हीं सब कीट की वजह से पशुओं को खुजली और कई तरह की गंभीर बीमारियां होती हैं. इनकी वजह से पशुओं का उत्पादन भी घट जाता है. 

दवाओं का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल (ओवरयूज). एंटीपैरासिटिक दवाओं का ज्यादा इस्तेमाल और उस पर कंट्रोल ना होना परजीवियों में प्रतिरोधकता बढ़ने की एक बड़ी वजह है. सही तरह से दवाई ना लेना, पशुओं को सही तरीके से दवाई ना देना, डॉक्टर द्वारा बताई गई दवाई का पूरा कोर्स ना करना भी एक वजह है. पर्यावरणीय और जैविक कारण भी हैं. परजीवियों की प्राकृतिक चयन प्रक्रिया और उनके जीन में होने वाले बदलाव भी प्रतिरोधकता का कारण बन रहे हैं.

पशुओं पर पैरासाइट का अटैक कैसे रोकें 

  • केवल पशु चिकित्सक की सलाह पर ही पशुओं को एंटीपैरासिटिक दवाई खि‍लाएं. 
  • पशुओं के लिए डाक्टर के बताए कृमिनाशक शेडयूल का पालन करें.
  • पशुचिकित्सक द्वारा बताई गई दवाओं के कोर्स को पूरा करें.
  • दवाई की डाक्टर द्वारा बताई गई डोज ही दें, कम या ज्यादा मात्रा ना दें.
  • पशुओं का इलाज नीम-हकीमों से ना करवायें.
  • दवा का इस्तेमाल करने से पहले ड्रग लेबल पर दिए गए निर्देशों को पढ़ लें.
  • एक ही पशु में परजीवी रोधी दवाओं को सालाना बदलें.
  • परजीवी विरोधी प्रतिरोधकता पर शैक्षिक और जागरूकता कार्यक्रमों को बढ़ावा दें.
  • अपने फार्म में कृमि नियंत्रण का पूरा रिकॉर्ड रखें.
  • पशुओं में परजीवी नियत्रंण के लिए एथनोवेटरनरी दवाई (ईवीएम) का इस्तेमाल करें.
  • भूलकर भी ना करें ये काम

  • डाक्टर के अलावा किसी और की सुझाई गई परजीवी विरोधी दवाई पशुओं को ना खि‍लाएं.
  • लगातार एक जैसी दवाई पशुओं को ना खि‍लाएं. 
  • कभी भी पशुओं को खुद से कोई दवाई ना दें.
  • पशुओं में सामूहिक कृमिनाशन न करें.
  • खुद के अनुभव के आधार पर स्टोर से दवाई खरीदकर पशुओं को ना खि‍लाएं.

निष्कर्ष- 

मच्छर-मक्खी, जोंक, किलनी से पशुओं को होने वालीं बीमारियां हमेशा से ही पशुपालकों की बड़ी परेशानी रही हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक ये परेशानी अब और बड़ी हो गई है. अभी तक परजीवी रोगों का इलाज कुछ खास तरह की दवाई देकर हो जाता था. लेकिन अब परेशान करने वाली बात ये है कि बीते कुछ वक्त से दवाईयां भी पशुओं पर असर नहीं कर रही हैं. जिसकी बड़ी वजह है परजीवी विरोधी प्रतिरोध (एंटीपैरासिटिक रेसिस्टेंस) है. 

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