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Gadvasu: पहली बार महिला पशुपालक को मिलेगा सीएम अवार्ड, बकरी-मछली पालक भी होंगे सम्मानित

Gadvasu: पहली बार महिला पशुपालक को मिलेगा सीएम अवार्ड, बकरी-मछली पालक भी होंगे सम्मानित

बरजिंदर ने एमबीए किया है. यही वजह है कि डिग्री लेने के बाद वो कनाडा चले गए थे. लेकिन कुछ कारणों के चलते तीन-चार साल बाद ही वापस लौट आए. आज वो बकरी पालन कर रहे हैं. बरजिंदर बकरियों को बेचने के लिए बाजार में नहीं जाते हैं. सोशल मीडिया पर ही बकरियों की मार्केटिंग करते हैं. आज उनके फार्म पर बकरियां एक महीने में 15 सौ लीटर तक दूध देती हैं. 

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गुरु अंगद देव वेटरनरी और एनीमल साइंस यूनिवर्सिटी (गडवासु), लुधियाना के पशु मेले में पहली बार एक महिला पशुपालक को सीएम अवार्ड दिया जाएगा. मोगा, पंजाब की रहने वालीं दलजीत कौर तूर को 14 मार्च को पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के मेला ग्राउंड में उन्हें सम्मानित किया जाएगा. दलजीत कौर आधुनिक तरीके से पशुपालन कर एक भैंस से 22 लीटर दूध हासिल कर रही हैं. बाजार में दूध बेचने के साथ ही दलजीत घर पर ही दूध से घी बनाकर उसे बाजार में बेचती हैं. इसके साथ ही गडवासु बकरी पालन और मछली पालन के लिए भी दो और लोगों को मेले के दौरान सीएम अवार्ड से सम्मानित करेगा. 

गडवासु हर साल पंजाब के पशुपालकों को मेले के दौरान सम्मानित करती है. एक्स‍टेंशन एजुकेशन के डायरेक्टर डॉ. प्रकाश सिंह बराड़ का कहना है कि गडवासु राज्य में पशुधन सेक्टर का विकास करने के लिए हर कोशिश कर रहा है. पशुपालकों की हौंसला अफजाई करने के लिए पशुधन पालन प्रणालियों में उत्पादकता और मुनाफे में सुधार के लिए टेक्नोलॉजी अपनाने पर पशुपालकों को प्रतियोगिताओं के दौरान सम्मानित किया जाता है.

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एक डेयरी से कई मुनाफे लेती हैं दलजीत कौर 

दलजीत कौर तूर पत्नी स्व.गुरमीत सिंह तूर, गांव खोसा कोटला नीली-रावी भैंस पालन करती हैं. इंटर पास दलजीत ने परिवार में डेयरी चलाने के पारंपारिक तरीके को छोड़कर पहले डेयरी में ट्रेनिंग ली. दलजीत के पास आज 32 भैंसे हैं. भैंसों से ज्यादा दूध उत्पादन लेने के लिए वो उन्हें  साइलेज एड लिब और अनुकूलित चारा खिलाती हैं. चारे में संतुलन बनाने के चलते आज उनके यहां भैंस अधिकत्तिम 22 लीटर दूध दे रही हैं. खास बात ये है कि दलजीत हर एक भैंस का पूरा रिकार्ड रखती हैं. डेयरी फार्म पर भैंसों को खुला रखा जाता है. खेत में एक गोबर गैस प्लांेट भी बनाया हुआ है. इसी प्लांेट से निकले घोल को परिवार की 15 एकड़ खेती वाली जमीन के लिए  उर्वरक के रूप में इस्तेसमाल किया जाता है.

मिट्टी का फायदा उठाने के लिए मछली छोड़ किया झींगा पालन 

रुपिंदर पाल सिंह पुत्र स्व. जसपाल सिंह, मुक्तसर साहिब, पंजाब को मछली पालन के लिए मेले में सीएम अवार्ड से सम्मानित किया जाएगा. रूपिंदर ने साल 2012 में पांच एकड़ जमीन से मछली पालन शुरू किया था. वैज्ञानिक तरीके से मछली पालन कर उसे और ज्यादा बढ़ाने के मकसद से बीटेक ग्रेजुएट रूपिंदर ने रोहतक, हरियाणा में एक सरकारी इंस्टीट्यूट से मछली पालन की ट्रेनिंग ली. प्रति एकड़ उन्हेंह 2200 किलोग्राम मछली की पैदावार मिलने लगी. इसी दौरान उन्हें पता चला कि उनके शहर की मिट्टी खारी है. और इस तरह की मिट्टी झींगा पालन के लिए बहुत अच्छी मानी जाती है. इसी को देखते हुए रूपिंदर ने मछली पालन छोड़ झींगा पालन शुरू कर दिया. आज वो झींगा की हैचरी चला रहे हैं. तालाब की जमीन भी अब पांच एकड़ से बढ़कर 36 एकड़ हो गई है. 

कनाडा से लौटे बरजिंदर इस खास तरीके से कर रहे हैं बकरी पालन 

बकरी पालन की कैटेगिरी में अवार्ड के लिए चुने गए बरजिंदर सिंह कंग पुत्र स्व. करनैल सिंह, पटियाला, पंजाब के रहने वाले हैं. बरजिंदर ने एमबीए किया है. यही वजह है कि डिग्री लेने के बाद वो कनाडा चले गए थे. लेकिन कुछ कारणों के चलते तीन-चार साल बाद ही वापस लौट आए. इसके बाद उन्होंने 2017 में बकरी पालन शुरू कर दिया. आज उनके पास 58 बकरियां और बीटल नस्ल के 23 बच्चे हैं. गौरतलब रहे बीटल नस्ल की बकरी सबसे ज्यादा दूध देने वाली नस्ल  की बकरी है. बरजिंदर एक खास तरीके से बकरियों को सिर्फ स्टॉल पर ही चारा खिलाते हैं.

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उनके फार्म पर बकरियों को सूखा चारा (अमरूद, मूंगफली, मूंग की पत्तियां), मौसमी हरे चारे में (मक्का, बाजरा, बरसीम और राई घास) खिलाई जाती है. बकरियों के लिए दूसरे मिनरल्स मिक्चर बरजिंदर खुद ही तैयार करते हैं. वक्त से सभी टीके लगवाने के चलते उनके फार्म पर बकरियों की मृत्यु दर 1.5 फीसद से भी कम है. एक खास बात ये है कि बकरियों के लिए कृमिनाशक (पेट के कीड़े) नुस्खा खुद ही तैयार किया है. बरजिंदर बकरियों को बेचने के लिए बाजार में नहीं जाते हैं. सोशल मीडिया पर ही बकरियों की मार्केटिंग करते हैं. आज उनके फार्म पर बकरियां एक महीने में 15 सौ लीटर तक दूध देती हैं.