वैसे तो भेड़ पालन हमेशा से जम्मू-कश्मीर का मुख्य काम रहा है. कश्मीर में भेड़ पालन कारोबारी तौर पर किया जाता है. लेकिन बीते कुछ वक्त से कश्मीर में भेड़ पालन तेजी से बढ़ रहा है. इसके पीछे एक बड़ी वजह भेड़ के मीट की डिमांड भी है. जम्मू-कश्मीर के लोग खुद अपनी मीट की डिमांड को पूरा नहीं कर पा रहे हैं. बाजार की डिमांड को पूरा करने के लिए दूसरे राज्यों से भेड़ों की सप्लाई कश्मीर में हो रही है.
इसी को देखते हुए जम्मू-कश्मीर में भेड़ पालन को बढ़ावा देने के लिए सरकारी योजनाओं के तहत मदद दी जा रही है. वेटरनरी यूनिवर्सिटी के लेवल पर भेड़ पालन से संबंधित नई-नई खोज की जा रही हैं. भेड़ों को बीमारियों से बचाने के लिए मोबाइल वेटरनरी यूनिट की सुविधाएं भी दी जा रही हैं. दूर-दराज और पहाड़ी इलाकों के लिए बाइक यूनिट बनाई गई हैं.
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शीप एक्सपर्ट और साइंटिस्ट डॉक्टर गौहर गुल शेख बताते हैं कि आज भेड़ के मीट की डिमांड कश्मीर ही नहीं साउथ इंडिया के कई राज्यों में भी है. भेड़ का मीट फैटी (चिकना) होता है इसलिए इसे और खासतौर पर पसंद किया जाता है. फैटी मीट की बिरयानी अच्छी बनती है. वहीं कश्मीर में ज्यादा खाए जानें की एक और बड़ी वजह ये कि ठंडा इलाका होने के चलते भेड़ का मीट ज्यादा एनर्जी देता है. देशभर में सबसे ज्यादा भेड़ का मीट कश्मीर में ही खाया जाता है. यहां भेड़ों की संख्या 34 लाख है.
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अगर मीट उत्पादन की बात करें तो कश्मीर में करीब 21.37 हजार टन मीट उत्पादन हर साल होता है. जबकि लोकल बाजार में हर साल मीट की डिमांड करीब 48 हजार टन की होती है. हर साल इसमें बढ़ोतरी भी होती रहती है. बाकी बची 50 फीसद से ज्यादा की डिमांड राजस्थान से होती है. खास बात ये है कि बकरीद के मौके पर जिंदा भेड़ों की बिक्री भी खूब होती है. क्योंकि यहां बकरों से ज्यादा भेड़ों की कुर्बानी दी जाती है.
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