
Amrit Mahal Cow Dairy Farming: भारत में पाई जाने वाली देसी नस्ल की गायों का डेरी उद्योग में विशेष योगदान माना जाता है. वहीं, भारत में देसी गायों की लगभग 50 नस्लें हैं, और हर एक नस्ल की अपनी विशेषताएं हैं. उन्हीं देसी गायों में से एक अमृत महल गाय भी है. अमृत महल गाय को बेथ चावड़ी के नाम से भी जाना जाता है. अमृत का अर्थ है दूध और महल का अर्थ है घर; दूध उत्पादकता बढ़ाने के उद्देश्य से इस नस्ल को दक्षिणी भारत की भारवाहक नस्ल से विकसित किया गया था. वहीं, इस नस्ल के मवेशी ज्यादातर कर्नाटक के चिकमंगलूर, चित्रदुर्ग, हासन, शिमोगा, तुमकुर और दावणगेरे आदि में पाए जाते हैं.
अमृत महल गाय का माथा उभरा हुआ होता है. इनका शरीर बेहद सुडौल होता है और कमर के ऊपर की ओर का हिस्सा ऊंट की तरह उठा हुआ होता है. अगर इनके सींग की बात करें तो वे बेहद नोकिले और पीछे की तरफ बिल्कुल सीधे होते हैं. वहीं कान बाहर की ओर सीधे होते हैं. अमृत महल नस्ल की गायें ज्यादातर सफेद-काले और स्लेटी रंग की होती हैं. वहीं कुछ मवेशियों के चेहरे पर सफेद भूरे निशान मौजूद होते हैं. ऐसे में आइए विस्तार से जानते हैं अमृत महल गाय की पहचान और विशेषताएं-
• अमृत महल की ऊंचाई लगभग 126 सेमी होती है, जबकि बैलों की ऊंचाई लगभग 132 सेमी होती होती है.
• गायों के शरीर की लंबाई 133 सेमी होती है, जबकि बैलों के शरीर की लंबाई लगभग 134 सेमी होती है.
• प्रौढ़ गायों का वजन लगभग 300-350 किलोग्राम होता है, जबकि बैलों को वजन लगभग 500 किलोग्राम होता है.
• अमृत महल नस्ल की गायें लगभग 50 महीने में पहली ब्यान्त की होती हैं.
• एक ब्यान्त से दूसरे ब्यान्त के मध्य लगभग 15 माह का अंतर होता है.
• अमृत महल नस्ल की गायें एक ब्यान्त में लगभग 550-600 लीटर दूध देती हैं.
• सफेद, काले और स्लेटी रंग की होती हैं.
• कान बाहर की ओर सीधे होते हैं.
• कुछ मवेशियों के चेहरे पर सफेद भूरे निशान मौजूद होते हैं.
• इनका शरीर बेहद सुडौल होता है.
अमृत महल गायों को कई तरह की बीमारियां होती हैं, जैसे- पाचन प्रणाली की बीमारियां, जैसे- सादी बदहजमी, तेजाबी बदहजमी, खारी बदहजमी, कब्ज, अफारे, मोक/मरोड़/खूनी दस्त और पीलिया आदि. अगर रोगों की बात करें तो
इनमें तिल्ली का रोग (एंथ्रैक्स), एनाप्लाज़मोसिस, अनीमिया, मुंह खुर रोग, मैगनीश्यिम की कमी, सिक्के का जहर, रिंडरपैस्ट (शीतला माता), ब्लैक क्वार्टर, निमोनिया, डायरिया, थनैला रोग, पैरों का गलना, और दाद आदि शामिल हैं.
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गाभिन पशुओं का अच्छे से ध्यान रखना चाहिए. दरअसल,अच्छा प्रबंधन करने से अच्छे बछड़े जन्म लेते हैं और दूध की मात्रा भी अधिक मिलती है. इसके अलावा बछड़े को सिफारिश किए गए टीके लगवाएं और रहने के लिए उचित आवास की व्यवस्था करें.
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