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Rajasthan: ओरण-गौचर को राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज कराने के लिए कलेक्ट्रेट के सामने धरने पर बैठे ग्रामीण

Rajasthan: ओरण-गौचर को राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज कराने के लिए कलेक्ट्रेट के सामने धरने पर बैठे ग्रामीण

जैसलमेर जिले की अर्थव्यवस्था पशुपालन पर आधारित रही है. आजादी से पहले यहां लगभग हर एक गांव में स्थानीय देवी-देवताओं के नाम पर ओरण के लिए जमीन छोड़ी गई थी. इन ओरणों में ग्रामीण ना तो पेड़ काटते हैं, ना ही अपने इस्तेमाल के लिए कुछ लेते हैं.

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जैसलमेर में ग्रामीण गौचर भूमि को राजस्व रिकॉर्ड में ओरण के रूप में दर्ज कराने की मांग कर रहे हैं. फोटो- Sumer Singh जैसलमेर में ग्रामीण गौचर भूमि को राजस्व रिकॉर्ड में ओरण के रूप में दर्ज कराने की मांग कर रहे हैं. फोटो- Sumer Singh

जैसलमेर में ओरण वहां के पशुपालन की धुरी हैं. ओरण यानी संरक्षित चारागाह, जहां इंसान पेड़ों से पत्ते भी नहीं तोड़ सकता. लेकिन ये ओरण आज संकट में हैं. इन पर अतिक्रमण, सोलर पार्क, तारबंदी सहित कई संकट मंडरा रहे हैं. ओरणों के संकट का एक और बड़ा कारण इनके राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज नहीं होना भी है. इसीलिए 6 जून से 9 जून तक चार दिन के लिए ग्रामीणों ने जैसलमेर जिला कलेक्ट्रेट के सामने सांकेतिक धरना शुरू किया है.

इसमें जैसलमेर के करीब 11 ओरणों से संबंधित समस्याओं को जिला कलक्टर टीना डाबी को भेजा गया है. 

आजादी के बाद हुए सेटलमेंट में सिवायचक के रूप में दर्ज हुए ओरण

जैसलमेर में सांवता गांव के रहने वाले सुमेर सिंह बीते 10 साल से ओरण संरक्षण की लड़ाई लड़ रहे हैं. वे किसान तक को बताते हैं, “जैसलमेर जिले की अर्थव्यवस्था पशुपालन पर आधारित रही है. आजादी से पहले यहां लगभग हर एक गांव में स्थानीय देवी-देवताओं के नाम पर ओरण के लिए जमीन छोड़ी गई थी. इन ओरणों में ग्रामीण ना तो पेड़ काटते हैं, ना ही अपने इस्तेमाल के लिए कुछ लेते हैं. इनमें जो कुछ पैदा होता है, वह पशुओं के लिए ही है.”

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सुमेर आगे बताते हैं, “आजादी के बाद जमीनों का सेटलमेंट हुआ था. इसमें बहुत सारे ओरणों को गौचर भूमि की बजाय सिवायचक (सरकारी भूमि) में दर्ज कर लिया गया. जब इन ओरणों में बाहर की कंपनियां आईं तब हमने इनके रिकॉर्ड निकलवाए. अब जैसलमेर के बहुत से ओरण आज भी अपने वास्तविक रूप में हैं, लेकिन वे सरकारी रिकॉर्ड में सिवायचक भूमि से दर्ज हैं. इसीलिए हम अब सिवायचक की बजाय गौचर भूमि के रूप में दर्ज कराना चाहते हैं. इसी मांग को लेकर 6 जून से 9 जून तक कलेक्ट्रेट के सामने सांकेतिक धरना शुरू किया गया है.”

इन 11 भूमि को ओरण दर्ज कराने की मांग

सुमेर बताते हैं कि इस धरने के माध्यम से हम ग्रामीण जिले के 11 ओरणों को दस्तावेजों में ओरण के रूप में दर्ज कराने की मांग कर रहे हैं. इनमें फतेहगढ़ तहसील के नेडिया गांव में 1390.14 बीघा के 25 खसरों को ओरण दर्ज कराने की मांग है. इसके अलावा गांव सलखा में सौ खसरों का 12952.16 बीघा का छत्रपति श्री वीर आलाजी ओरण, 2234.14 बीघे का मां आईनाथ मंदिर ओरण, गांव भीमसर में 5291.14 बीघे का मां देगराय ओरण, गांव दिलावर में 10730.005 बीघे का श्री वीर शिरोमणि आलाजी जुझार ओरण को ओरण या गौचर के रूप में दर्ज कराया जाए. 

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इसके अलावा गांव सांवता में आठ हजार बीघे ओरण पत्रावलियां जिला कलेक्ट्रेट में हैं. इन्हें राज्य सरकार को भेजने की मांग है. इसके अलावा मौकला गांव में डूंगरपीर जी ओरण, गांव तेजपाला में श्री पन्नराज जी ओरण, गांव कारियाप में पाबूजी ओरण, 1900 बीघा के श्री रामदेव ओरण जैरात का ओरण संबंधी प्रस्ताव बनाकर राज्य सरकार को भेजने की मांग की जा रही है. 

सुमेर जोड़ते हैं कि इन मांगों के अलावा जैसलमेर जिले में जहां भी ओरण हैं, वहां पेड़ों की कटाई रोकने की मांग भी शामिल है. इस संबंध में एक पत्र जैसलमेर कलेक्टर टीना डाबी को दिया गया है.