इस साल भारत सरकार ने जयपुर जिले के दूदू में लापोड़िया गांव के समाज सेवी, पर्यावरणविद् लक्ष्मण सिंह लापोड़िया को पद्मश्री से सम्मानित किया गया था. लक्ष्मण सिंह को पर्यावरण संरक्षण, तालाबों बनाने, जल संरक्षण के लिए पद्मश्री दिया गया था. इस दौरान मीडिया में लक्ष्मण सिंह के इजाद किए चौका पद्धति काफी चर्चा में रही. इस पद्धति से ही लापोड़िया गांव सहित आसपास के 100 गांवों में इन्होंने पानी की समस्या को खत्म किया था. साथ ही इससे गांव के चारागाह भी विकसित हुए और पशुओं को सालभर चारा उपलब्ध हुआ.
लक्ष्मण सिंह की इजाद की चौका पद्धति ना सिर्फ देश बल्कि विदेशों में भी काफी चर्चा का विषय बनी.
लक्ष्मण सिंह ने असल में गोचर के विकास के लिए चौका पद्धति का विकास किया. उन्होंने अपने गांव में चार सौ बीघा चारागाह भूमि को विकसित किया है. किसान तक से बातचीत में लक्ष्मण सिंह कहते हैं, “मैंने देखा कि हमारे गांव में चारागाह तो है, लेकिन उसमें पानी नहीं रुकता. इसीलिए चारे की कमी रहती है. पानी नहीं रुकने के कारण वहां ना तो घास उगती है और ना ही पेड़-पौधें बड़े हो पाते हैं. सरकारी अधिकारियों और इंजीनियरों ने भी इस पर पानी रोकने की कोशिश की, लेकिन पानी के वेग से उनके बनाए कंटूर टूट जाते थे.”
लक्ष्मण सिंह आगे बताते हैं, “मेरे गांव के ही एक बुजुर्ग कालू दादा ने मुझे राह दिखाई. उन्होंने बताया कि गोचर भूमि पर पहले ओवर फ्लो पानी आगे के छोटे से तालाब में चला जाता था. इससे वहां घास और पेड़-पौधें उगे रहते थे. इसके बाद मैंने पूरी गोचर भूमि में सिर्फ नौ इंच पानी रोकने की कवायद शुरू की.”
चौका पद्धति के इजाद की कहानी लक्ष्मण सिंह खुद बताते हैं. बकौल लक्ष्मण सिंह, “चौका पद्धति में हमने पूरे चारागाह में सिर्फ नौ इंच पानी रोका. इसके लिए जमीन पर तीन तरफ से मेड़ बनाई गई और उसमें छोटे-छोटे गड्ढे बनाए जाते हैं. इस जमीन पर पहली बरसात के बाद देसी घाल, देसी बबूल और खेजड़ी पौधों के बीज छिड़ककर उसे जोत दिया जाता है. इससे करीब पांच सौ एकड़ में घास और पौधे उग आते हैं.
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गांव वालों को इसमें दो महीने तक पशु भेजने पर मनाही होती है. जब घास और पौधे दो फीट की लंबाई के हो जाते हैं तो इसमें पशुओं को भेजा जाता है. इस तरह केवल पांच साल में एक जंगल तैयार हो जाता है.
चौका पद्धति की वजह से लापोड़िया और आसपास के गांवों में चारे और पानी की समस्या हल हो गई. सिर्फ देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी इसकी चर्चा हुई. एक अंतरराष्ट्रीय संस्था सीआरएस ने लक्ष्मण सिंह की चौका पद्धति को देखकर इसके फायदों को महसूस किया.
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क्योंकि यह सिस्टम गांव के इकोसिस्टम को अच्छा करता है. जल संरक्षण के साथ-साथ एक मिनी फॉरेस्ट का निर्माण कर देता है. सीआरएस ने इस पद्धति को अफगानिस्तान और इजराइल में लागू करने की सिफारिश की. इसके बाद 2008 में लक्ष्मण सिंह इजराइल भी जाकर आए. वहां के ग्रामीणों को चौका व्यवस्था अपनाने और बनाने की ट्रेनिंग देकर आए.
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