नितेश राणे ने छत्रपति संभाजीनगर का दौरा करते हुए कहा कि बारिश और बाढ़ से किसानों के साथ-साथ मछुआरों का भी बहुत बड़े स्तर पर नुकसान हुआ है. राणे ने कहा कि सरकार किसानों की तरह ही मछुआरों को भी भरपूर मदद देगी. तालाबों, पिंजरों और जाल का जो नुकसान हुआ है, उसका पंचनामा लगभग पूरा हो चुका है.
वाशिम जिले के व्यापारियों और किसानों ने बजरंग दल को ठहराया जिम्मेदार. किसानों ने कहा कि माता पिता को संभालना मुश्किल, तो जानवरों को कैसे पालें. जानवर नहीं बिके तो आर्थिक तंगी के चलते आत्महत्या करना पड़ेगा.
खिल्लारी बैल दक्षिण महाराष्ट्र की शान हैं. लेकिन अब यह नस्ल कम होती जा रही है. खिल्लारी नस्ल में भी कई तरह के बैल पाए जाते हैं. इसकी उत्पत्ति मैसूर राज्य के मवेशियों की हल्लीकर नस्ल से हुई है. इसका नाम "खिलार" से आया है, जिसका अर्थ है मवेशियों का झुंड और खिल्लारी का अर्थ है चरवाहा. ज्यादातर खिल्लारी बैल मूल रूप से दक्षिण महाराष्ट्र के सतारा जिले से हैं.
कृषि मंत्री धनंजय मुंडे ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण न केवल पशुओं के लिए चारे और पानी की व्यवस्था प्रभावित होती है, बल्कि पशुधन के स्वास्थ्य पर भी गंभीर प्रभाव पड़ता है. संकर गायों और भैंसों में दूध उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. ऐसा देखा गया है कि इसकी वजह से गायों के दूध उत्पादन में 5 से 20 प्रतिशत की कमी आई है. ऐसे में यह मोबाइल ऐप पशुपालकों को सलाह देगा.
किसानों को यह फायदा दिलाने के लिए आंदोलन चलाने वाले किसान नेता अजीत नवले का कहना है कि योजना का फायदा लेने के लिए हर किसान को आवेदन करने की जरूरत नहीं है. जिस दुग्ध संघ में जितना दूध खरीदा जाता रहा है उसमें सरकार उतने का पैसा डाल देगी और वो संघ इसका फायदा किसानों को देंगे. दुग्ध संघ ही अप्लाई करेंगे.
अकोला जिले में उत्पादित चारा, मुर्गी फीड एवं टोटल मिक्स राशन (टीएमआर) को दूसरे जिलों में ले जाने पर रोक लगा दी गई है. ताकि आने वाले समय में जिले में चारे का संकट और बड़ा न हो. ऐसी ही रोक परभणी जिले में भी लागू की गई है. राज्य में सूखे की वजह से बढ़ा है संकट.
वर्तमान में, परभणी जिले में औसत से कम वर्षा के कारण, इस अवधि के दौरान जानवरों के लिए चारे की कमी गंभीर होने की संभावना है. जिले में पिछले वर्ष की बुवाई रिपोर्ट के अनुसार 1 अप्रैल 2023 से 3 लाख 65 हजार 174 मीट्रिक टन चारा शेष है. यह लगभग अप्रैल 2024 तक चलेगा. ऐसे में चारे की कम उपलब्धता को देखते हुए भविष्य में चारे की कमी की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है.
अकोला के इस गोट बैंक की ओर से 11 सौ रुपये लेकर बकरियों के लोन का एग्रीमेंट किया जाता है. एक प्रेग्नेंट बकरी दी जाती है. लोन एग्रीमेंट की शर्त के मुताबिक 40 महीने में बकरियों के चार बच्चे बैंक को लौटाने होते हैं. जिससे बकरियों से संबंधित रोजगार लाभार्थी को मिलता है.
महाराष्ट्र के डेयरी विकास मंत्री राधाकृष्ण विखे पाटिल ने घोषणा की है कि दूध उत्पादकों को गाय के दूध पर 5 रुपये प्रति लीटर की सब्सिडी दी जाएगी. यह योजना राज्य में सहकारी दुग्ध उत्पादक संगठनों के माध्यम से ही लागू की जाएगी. किसान सभा के नेता डॉ. अजित नवले ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया है. विरोध के पीछे उन्होंने एक बड़ा तर्क दिया है.
महाराष्ट्र में दूध की कीमतों में आई भारी गियरवट से नाराज़ किसानों का कहना हैं कि सरकार ने किसानों से दूध खरीदने के लिए 34 रुपये दाम की घोषणा की थी, लेकिन सहकारी दूध समितियां और निजी दुग्ध संस्थाएं दूध के लिए 24 से 25 रुपये चुका रही हैं. किसान गावडे का कहना है कि दूध का दाम 40 रुपये तक मिलना चाहिए है.
मवेशियों को ठंड से बचाने के लिए जूट के बोरे पहना सकते हैं. जूट का बोरा शरीर को गर्मी देता है. ऐसे में जानवरों को जूट का बोरा पहनाकर उन्हें ठंड से बचाया जा सकता है. उनके रहने वाली जगह पर ठंड में नमी न होने दें. नमी होने पर जानवरों पर ठंड का प्रभाव और बढ़ेगा. इससे आपका दुधारू पशु बीमार पड़ सकता है. जिससे दूध उत्पादन में कमी आ सकती है.
यह एक ऐसा घोड़ा है जो प्यास लगने पर सामान्य पानी नहीं बल्कि हर दिन केवल मिनरल वाटर पीता है. इसके साथ ही यह घोड़ा हर दिन 15 लीटर दूध पीता है.
अब भी शहरों और गांवों की दिवाली में थोड़ा अंतर है. खासतौर पर किसानों की दिवाली में. एक तरफ शहर में धन-समृद्धि के लिये लक्ष्मी-गणेश जी की पूजा की जाती है, लेकिन किसानों के लिये उनकी धरती ही भगवान होती है. वो अपने खेतों और पशुओं की पूजा करते हैं. शहर में व्यापारी और उद्यमी दुकानों और फैक्टरियों में दिवाली पर पूजा करते हैं तो वहीं गांवों में किसान खेतों में दीये जलाते हैं.
सोलापुर के पंढरपुर लमें हर सुबह हरे चारे का एक बड़ा बाजार लगता है, जहां फिलहाल इसकी कीमत आसमान पर है. वजह है मॉनसून की बेरुखी. सूखा अभी खत्म नहीं हुआ तो चारे का दाम और बढ़ सकता है. इस समस्या के बीच जानिए सरकार से क्या मांग कर रहे हैं पशुपालक?
नांदेड़ जिला प्रशासन ने बैल पोला त्योहार के दौरान जिले के सभी तहसीलों में मवेशियों के इकट्ठा होने पर सख्ती से प्रतिबंध लगा दिया था. क्योंकि लंपी रोग संक्रमण से फैलता है. खेती में सबसे ज्यादा योगदान देने वाले जानवर बैल को सम्मान देने के लिए उनकी पूजा करने के लिए इस दिन को मानते हैं.
नांदेड़ को लंपी प्रभावित जिला घोषित किया गया है. जिले में दूसरे जिलों से जानवरों के ले आने पर रोक लगा दी गई है. मवेशियों का साप्ताहिक बाजार बंद करने पर भी जल्द ही निर्णय लिया जा सकता है. लंपी से पीड़ित होने वाले पशुओं में बछड़ों की संख्या अधिक है.
राज्य सरकार ने पशुओं की आवाजाही पर लगाई गई रोक. लंपी स्किन डिजीज एक वायरल बीमारी है जिसमें बुखार, मवेशियों की त्वचा पर गांठें दिखाई देती हैं. इससे दूध उत्पादन में अस्थायी कमी आ जाती है. खाल को नुकसान होता है और कभी-कभी तो इससे पीड़ित पशुओं की मृत्यु भी हो जाती है.
लंपी वायरस राजस्थान और गुजरात में गायों में फैलना शुरू हुआ, उसके बाद यह कई राज्यों में फैल गया. फिलहाल जलगांव जिले में 300 से अधिक, धुले में 30, नंदुरबार में 21 पशुधन इस बीमारी से पीड़ित हैं. पिछले साल के बुरे अनुभव के बावजूद इस साल ठीक से टीकाकरण नहीं हो पाया है.
Milk Price in Maharashtra आंदोलनकारियों ने किसानों को मिलने वाले दूध का दाम 34 से 40 रुपये प्रति लीटर तक करने की मांग की. पशुओं का मुफ्त बीमा करवाने की भी उठाई गई मांग. दस दिन के अंदर नहीं मानी गई डिमांड तो मुंबई में रोकी जाएगी दूध की सप्लाई.
दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है भारत, फिर भी अच्छे दाम के लिए कई साल से संघर्ष कर रहे हैं डेयरी किसान. किसानों का कहना है कि महाराष्ट्र सरकार तेलंगाना, कर्नाटक और राजस्थान का मॉडल अपनाए और सहकारी दुग्ध संस्थाओं को दूध बेचने पर 5 रुपये प्रति लीटर अनुदान दे. ऐसा नहीं कर सकती तो न्यूनतम दाम फिक्स कर उसे मिलने की गारंटी दे.
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