दिवाली का पर्व आ गया है. सब लोग घरों की साफ-सफाई में जुटे हुए हैं. दिवाली के जश्न के लिए मिठाईयां और पटाखे खरीदे जा रहे हैं. व्यापारिक प्रतिष्ठानों में पूजापाठ की तैयारी हो रही है. लेकिन, क्या आप जानते हैं कि गांवों में किसान कैसे पारंपरिक तौर-तरीकों से दिवाली मनाते हैं. वैसे तो शहरी पटाखों का चलन और मिठाईयों-तोहफों के आदान प्रदान का चलन भी अब गावों तक पहुंच गया है. लेकिन, अब भी शहरों और गांवों की दिवाली में थोड़ा अंतर है. खासतौर पर किसानों की दिवाली में. एक तरफ शहर में धन-समृद्धि के लिये लक्ष्मी-गणेश जी की पूजा की जाती है, लेकिन किसानों के लिये उनकी धरती ही भगवान होती है. वो अपने खेतों और पशुओं की पूजा करते हैं.
शहर में व्यापारी और उद्यमी दुकानों और फैक्टरियों में दिवाली पर पूजा करते हैं तो वहीं गांवों में किसान खेतों में दीये जलाते हैं. पशुओं को बांधने वाली जगह पर दीये जलाते हैं. क्योंकि इसी पर किसानों की आमदनी, गुडलक और भविष्य निर्भर करता है. पशुओं को अच्छी तरह से नहला धुलाकर उन्हें शाम को बनने वाले पकवान प्रसाद के तौर पर खिलाए जाते हैं. उससे पहले लक्ष्मी जी और गणेश जी की पूजा होती है.
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किसान दिवाली वाले दिन सबसे पहले खेत-खलिहानों की पूजा करते हैं. इसे भूमि पूजन भी कहते हैं. बेहतर अनाज की कामना करते हुये खील-बताशे का भोग लगाया जाता है और 4 दीये जलाकर खेत के चारों कोनों में रख दिए जाते हैं, जिससे खेत-खिलहान के चारों कोनों में अन्न पैदा हो सके, क्योंकि अन्न के भंडार ही किसानों की खुशहाली बढ़ाते हैं.
ग्रामीण इलाकों में सिर्फ खेती ही एक-अकेला काम नहीं होता, बल्कि घर परिवार की जरूरतों के लिए हर किसान पशुपालन जरूर करता है. ऐसे में जैसे इंसान नए कपड़े पहनते हैं वैसे ही पशुओं की नकेल बदलकर मालायें पहनाई जाती हैं. उनकी सींगों को रंग दिया जाता है. इस दौरान पशुओं को सूखा या हरा चारा खिलाने के बजाय दलिया, पशु आहार और गुड़ खिलाया जाता है, ताकि आने वाले समय में पशुओं की सेहत अच्छी रहे और उनके बेहतर दूध उत्पादन मिल सके. देश के कई राज्यों के ग्रामीण इलाकों में आज भी काफी किसान बैलों की मदद से पारंपरिक खेती करते हैं. महाराष्ट्र इनमें से एक है. इसलिए पशुओं की पूजा का भी काफी महत्व है.
जब दिवाली का मौसम आता है तब खरीफ फसलों की कटाई हो रही होती है. जिससे खेत-खलिहान में कीड़े-मकोड़ों का प्रकोप बढ़ जाता है. ऐसे में गांवों में मान्यता के अनुसार दिवाली पर दीये जलने से कीट मर जाते हैं. पुराने समय में खेतों में अरंडी के तेल के दीये जलाने का रिवाज भी है. साथ में किसान अरंडी के तेल की मशालें लेकर खेत-खलिहान का चक्कर भी काटते थे. इस तरह रौशनी से आकर्षित होकर कीट-पतंग नष्ट हो जाते थे. दीये जलाते समय कुछ दाने अन्न के भी डाले जाते हैं, ताकि अन्न की कमी कमी न रहे.
वहीं महाराष्ट्र की बात करें तो यहां के किसान दिवाली बड़े धूम-धाम से मनाते हैं. किसान गणपत बताते हैं कि महाराष्ट्र में आज 9 नवंबर से ही दिवाली शुरू हो गई है. आज से पशुओं की पूजा शुरू करते हैं. साथ में ही जो गोपालन होता है उनकी भी आरती उतरते हैं. यहां सबसे पहले सुबह गाय और उसके बझड़े की पूजा करते हैं. दिवाली वाले दिन पशुओं को पूरन पोली बनाके खिलाते है. पशुओं के लिए नए कपड़े भी खरीदे जाते हैं. यहां के किसानों की दिवाली की शुरुआत गाय पूजा से शुरू होती है. साथ ही अपनी फसलों पर पूजा कर के दीया जलाते हैं.
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