महाराष्ट्र के किसानों की समस्या खत्म होने का नाम नहीं ले रही हैं कभी सूखा तो कभी बेमौसम बारिश का सामना करना पड़ रहा है. वहीं अब राज्य के किसान दूध के दाम में आई गिरावट से परेशान है. किसानों का कहना हैं कि 24 रुपये की गिरावट से किसानों की कमर टूट गई है. ऐसे में जानवरों को चारा खिलाने तक का पैसा ठीक से नहीं निकल पा रहा हैं. बारामती जिले के रहने वाले किसान सोमनाथ गावडे बताते है कि उनके पास एकड खेती है, जिसमे पशुखाद की फसलें उगाई जाती है. खेती के अलावा नौ गाय और दो बछड़े है. गावडे का कहना है कि गाय का रोज तकरीबन 150 से 160 लीटर तक दूध मिलता है. इनका पूरा परिवार दूध के दाम पर निर्भर है.इनका पूरा परिवार सुबह 5:00 से बजे से शाम 7:00 तक गायों को चारा डालना, पानी पिलाना, दूध निकालना इसका काम करता है और मिले हुए पैसे से उनका घर चलता है. पिछले कुछ दिनों तक दूध के दाम 33 से 35 रुपए तक मिल रहे थे, लेकिन अब कुछ दिनों से दूध का दाम 24 रुपए तक गिर गए है. जिसके कारण गावडे पूरा परिवार परेशान है.
किसानों का कहना हैं कि गाय के चारे के लिए एक बीघा में मक्का बोलने पर 1500 रुपये खर्च होता है और पशु खाद की एक बोरी 1800 रुपए में आती है. एक तरफ सूखे की स्थिति है जिसके कारण हरा चारा नहीं मिल पा रहा हैं तो दूसरी तरफ पशु चारे की कीमत काफी हद तक बढ़ गई है. सरकार ने किसानों से दूध खरीदने के लिए 34 रुपये दाम की घोषणा की थी, लेकिन सहकारी दूध समितियां और निजी दुग्ध संस्थाएं दूध के लिए 24 से 25 रुपये चुका रही हैं. किसान गावडे का कहना है कि दूध का दाम 40 रुपये तक मिलनी चाहिए है.
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बताया जा रहा है कि, दूध पाउडर के निर्यात को सरकार ने निर्बंध लगाए हैं. जिसके कारण दूध के दामों में गिरावट आई है. दूध के दाम बढ़ाने के मांग को लेकर कई किसान संगठनों ने आंदोलन शुरू कर दिया है. पुणे जिले के इंदापुर में स्वाभिमानी किसान संगठन ने रास्ते पर दूध फेंक नाराजगी. फिर भी सरकार इस पर ध्यान नहीं दे रही हैं.
सांसद सुप्रिया सुले ने दूध की गिरी कीमतों को लेकर सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि एक तरफ दूध का दाम गिरने से किसान परेशान है और दूसरी तरफ राजनीतिक पार्टियों ने अपने राजनीति में व्यस्त है. उन्होंने आगे कहा है कि सरकार किसानों के खिलाफ योजनाएं तो बनाती है,लेकिन उस पर ध्यान नहीं देती. जो सरकार कह रही थी, किसानों का इनकम डबल करेगी वही सरकार पशुपालक और प्याज उत्पादक किसानों का दर्द नहीं देख रही हैं. कीमतों में गिरावट के चलते किसान परेशानी में है लेकिन महाराष्ट्र के ट्रिपल इंजिन सरकार राजनीति में व्यस्त है.
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