डॉक्टर दीदी हैं तो क्या डर? झारखंड में पशु सखियां ला रहीं बदलाव, खुशहाल हो रहे क‍िसान

डॉक्टर दीदी हैं तो क्या डर? झारखंड में पशु सखियां ला रहीं बदलाव, खुशहाल हो रहे क‍िसान

झारखंड के 67 गांवों में जबसे आजीविका पशु सखियों ने जिम्मेदारी संभाली है, गांवोें की तस्वीर बदल गई है. ये पशु सखियां गांव-गांव जाकर बकरियों को टीका लगाती हैं, उनका इलाज करती हैं और इलाज करने के घरेलू नुस्खे भी बताती हैं. इसका असर ये है कि अब इन गांवों में बकरियां बहुत कम बीमार पड़ती हैं, उनकी असमय मृत्यु में कमी आई है. इससे किसानों के घर खुशहाली आ रही है.

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डॉक्टर दीदी हैं तो क्या डर? झारखंड में पशु सखियां ला रहीं बदलाव, खुशहाल हो रहे क‍िसानबकरियों का टीकाकरण करती डॉक्टर दीदी फोटोः किसान तक

कनकनाती सर्दी का मौसम, जब गांव में लोग अलाव को घेरकर बैठे होते हैं, उसी वक्त झारखंड के गांवों में आसमानी साड़ी पहन कर हाथ में आसमानी बक्सा लेकर एक महिला अपने घरों से निकल पड़ती है. आजीविका पशु सखी के तौर पर कार्य करने वाली इस महिला को ग्रामीण डॉक्टर दीदी कहते हैं, जो बकरियों और मुर्गियों को बीमारी से बचाती हैं. डॉक्टर दीदी गांवों में बकरीपालन को बढ़ावा दे रही हैं, इसके जरिए गांव की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में मजबूत भूमिका निभा रही हैं. 

गांवों में जब से डॉक्टर दीदियां गांव में काम कर रही हैं, उसके बाद से ही पशुओं की मृत्यु दर में कमी आई है. राज्य के लगभग सभी गांवों में हजारों की संख्या में पशु सखियों का चयन किया गया है और उन्हें बकरियों और मुर्गियों का इलाज करने के लिए प्रशिक्षित किया गया है. तब जाकर पशु सखी (Animal Friend) तैयार हुई है. झारखंड लाइवलीहुड प्रमोशनल सोसाइटी द्वारा ग्रामीण महिलाओं को रोजगार से जोड़ने के लिए और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए उन्हें प्रशिक्षित किया गया है. 

बकरियों की मौत में आई कमी

जेएसएलपीएस के चान्हों प्रखंड के बीपीएम दीपक कुमार बताते हैं की रांची जिले के चान्हों प्रखंड अंतर्गत गांवों में 67 राजस्व गांव हैं लगभग सभी गांवों में आजीविका पशु सखी हैं जो गांव में बकरियों का इलाज करती हैं. बदरी गांव की अंजू देवी भी उन्ही आजीविका पशु सखियों में से एक हैं जो हर सुबह घर से निकलती हैं और गांव में घूम-घूम कर बकरियों का टीकाकरण करती हैं. आजीविका पशु सखियों के आने के बाद सबसे बड़ा बदलाव यह हुआ है कि अब गांव में रोग या महामारी से बकरियों की मौत नहीं होती है. जबकि एक वक्त ऐसा भी था जब बीमारी के कारण सैकड़ों बकरियों की मौत हो जाती थी.

हर दिन 100 बकरियों का करती हैं टीकाकरण

अंजू देवी बताती हैं कि दवा देने के लिए सुबह 10 बजे तक का ही समय होता है. इसलिए किसी भी मौसम में सुबह ही निकलना पड़ता है. एक दिन में वो 100 बकरियों का टीकाकरण करती हैं. इसके अलावा बकरियों को मौसमी बीमारियों से बचाने के लिए दवाएं भी देती हैं. गांव में पशु सखियों द्वारा बकरियों का ध्यान रखने के कारण अब बकरियों की गुणवत्ता अच्छी होती है. बकरी पालकों की कमाई बढ़ी है. आजीविका पशु सखी बकरियों के अलावा देसी मुर्गियों को भी दवाएं देती हैं. इतना ही नहीं, ट्रेनिंग हासिल करने के बाद पशु सखी इतनी सशक्त हो गई हैं कि घर में ही घरेलू उपचार के तरीके भी बता रही हैं.

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