बिहार में सूअर पालन करने वाले किसानों के लिए एक बड़ी खबर है. राज्य सरकार ने सूअरों को बीमारी से बचाने के लिए विशेष टीकाकरण अभियान शुरू किया है. इसमें सूअरों को क्लासिकल स्वाइन फीवर जैसी घातक बीमारी से बचाने के लिए पशुपालन विभाग द्वारा निःशुल्क टीकाकरण की सुविधा शुरू की गई है. इस अभियान के तहत राज्य के सभी 38 जिलों में एक साथ टीकाकरण अभियान शुरू किया जा रहा है. पशुपालन विभाग के निदेशक नवदीप शुक्ला ने सूअर पालकों से निवेदन करते हुए कहा कि दस दिनों तक चलने वाले विशेष टीकाकरण अभियान का लाभ उठाकर सूअरों को सुरक्षित करें.
पशुपालन विभाग के निदेशक ने कहा कि इस अभियान के तहत राज्य के सभी जिलों के सभी पंचायत के वार्ड स्तर पर 10 दिनों के भीतर कुल 2,32,160 सूअरों को निःशुल्क टीका लगाया जाएगा. इस अभियान के तहत केवल 3 महीने से अधिक उम्र के सूअरों को ही टीका लगाया जाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है.
वहीं, टीकाकरण प्रतिदिन सुबह 8 बजे से शाम 4 बजे तक चलेगा. आगे उन्होंने ने कहा कि केंद्र सरकार के पशुधन स्वास्थ्य और रोग नियंत्रण कार्यक्रम के अंतर्गत इस बीमारी की रोकथाम के लिए विशेष टीकाकरण अभियान चलाया जा रहा है. सरकार का उद्देश्य है कि वर्ष 2030 तक क्लासिकल स्वाइन फीवर को पूरी तरह खत्म किया जा सके.
पशुपालन निदेशालय द्वारा पशुपालकों को किसी भी प्रकार की समस्या न हो, इसके लिए जरूरी दिशा-निर्देश सभी जिलों के पशुपालन अधिकारियों को जारी किए गए हैं. अगर किसी पशुपालक को टीकाकरण से जुड़ी कोई समस्या आती है, तो वे पशुपालन निदेशालय, बिहार, पटना के नियंत्रण कक्ष (टेलीफोन नंबर 0612-2230942) या पशु स्वास्थ्य और उत्पादन संस्थान, बिहार, पटना (टेलीफोन नंबर 0612-2226049) पर संपर्क कर सकते हैं. वहां उनकी समस्याओं को सुनने के साथ ही त्वरित हल करने का प्रयास किया जाएगा.
क्लासिकल स्वाइन फीवर एक वायरस जनित घातक बीमारी है, जो मुख्य रूप से सूअरों को प्रभावित करती है. यह बीमारी मनुष्यों के लिए हानिकारक नहीं है और अन्य पालतू जानवरों में नहीं फैलती, लेकिन सूअरों में अत्यधिक मृत्यु दर का कारण बन सकती है. इससे सूअर पालन व्यवसाय को भारी आर्थिक नुकसान होने की संभावना रहती है. इस बीमारी के रोकथाम को लेकर केंद्र सरकार के पशुधन स्वास्थ्य और रोग नियंत्रण कार्यक्रम के तहत व्यापक टीकाकरण अभियान चलाया जा रहा है.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today