इस बार पड़ सकता है सूखा, अल नीनो पर वैज्ञानिकों ने जारी किया पूर्वानुमान

इस बार पड़ सकता है सूखा, अल नीनो पर वैज्ञानिकों ने जारी किया पूर्वानुमान

स्काईमेट के वैज्ञानिक महेश पलावत कहते हैं, इस बार मौसम को अगर आप समझें तो फरवरी के महीने में ही 122 साल का रिकॉर्ड टूट गया. वहीं, इस बार अगर एक रिपोर्ट को आधार मानें तो करीब 119 जिलों में बारिश कम हुई और सूखे जैसे हालात बने. अल नीनो की वजह से इस बार सर्दियों के मौसम में पहाड़ी इलाकों में बर्फबारी कम हुई और कुछ इलाकों में तो हुई ही नहीं.

इस बार भी अल नीनो की वजह से सूखा पड़ने की आशंका है
क‍िसान तक
  • New Delhi,
  • Mar 02, 2023,
  • Updated Mar 02, 2023, 6:21 PM IST

मौसम का मिजाज कई बार समझ नहीं आता है. प्रकृति के कई स्वरूप ऐसे होते हैं जिसको समझना बेहद मुश्किल है. शायद यही वजह है कि हम हर बार ये सोचते हैं कि आखिर इस बार प्रकृति कौन सा रंग दिखा रही है. सर्दी में गर्मी जैसे हालात, तो वही गर्मियों में और ज्यादा गर्मी यह समझाती है कि प्रकृति में कुछ तो बदलाव हो रहा है. इसके पीछे अल नीनो को भी बड़ी वजह माना जा रहा है. अल नीनो के प्रभाव से इस बार बारिश कम होने की संभावना जताई जा रही है. अल नीनो प्रशांत महासागर में आने वाला एक तरह का मौसमी परिवर्तन या बदलाव है. इसकी वजह से सर्दियों में गर्मी और गर्मी में और ज्यादा गर्मी रहती है. वहीं बारिश की संभावना भी इसमें कम हो जाती है. 

स्काईमेट के वैज्ञानिक महेश पलावत कहते हैं, इस बार मौसम को अगर आप समझें तो फरवरी के महीने में ही 122 साल का रिकॉर्ड टूट गया. वहीं, इस बार अगर एक रिपोर्ट को आधार मानें तो करीब 119 जिलों में बारिश कम हुई और सूखे जैसे हालात बने. अल नीनो की वजह से इस बार सर्दियों के मौसम में पहाड़ी इलाकों में बर्फबारी कम हुई और कुछ इलाकों में तो हुई ही नहीं. 

ये भी पढ़ें: Wheat Price: एफसीआई ने चौथे दौर में बेचा 5.40 लाख टन गेहूं, आटे के दाम ग‍िरे

वहीं मैदानी इलाकों में बारिश का कम पड़ना और गर्मी का बढ़ना अल नीनो की तरफ इशारा करते हैं. पलावत कहते हैं कि पिछले 20 साल में दुनिया भर में सूखा अगर पड़ा है, तो उसके पीछे का कारण अल नीनो है. पलावत कहते हैं कि मार्च, अप्रैल और मई के महीने में गर्मी इस बार नए-नए रिकॉर्ड बना सकती है. वहीं मॉनसून के बारे में अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगा. बारिश कितनी होगी, इसके बारे में कोई अनुमान नहीं जताया जा रहा है.

क्या कहते हैं एक्सपर्ट

इस बारे में अर्थशास्त्री विजय सरदाना कहते हैं, अल नीनो का सीधा असर देश की अर्थव्यवस्था पर होगा. कम बारिश का असर कृषि उत्पादन में होता है. उदाहरण के तौर पर समझें तो मान लीजिए अगर तापमान में एक डिग्री की वृद्धि होती है तो गेहूं के उत्पादन में करीब तीन से चार फीसद की कमी आएगी. 

सरदाना कहते हैं, वहीं अगर तापमान चार से पांच डिग्री बढ़ता है, तो 15 से 20 प्रतिशत तक उत्पादन में कमी आ सकती है. ऐसे में हमें अभी से फसलों की सिंचाई के लिए व्यवस्था करनी होगी. ग्राउंड वाटर सिंचाई पर ध्यान देना होगा और वैकल्पिक सिंचाई व्यवस्था के लिए कदम उठाने होंगे, क्योंकि इसका सीधा असर जीडीपी पर पड़ेगा. सरदाना के मुताबिक, जीडीपी में करीब 19 प्रतिशत की हिस्सेदारी कृषि की है. ऐसे में उत्पादन में कमी आने से कहीं न कही इसका सीधा असर होगा.

ये भी पढ़ें: ब‍िल गेट्स ने क‍िया पूसा का दौरा, भारतीय कृष‍ि वैज्ञान‍िकों ने जलवायु पर‍िवर्तन पर द‍िखाया अपना काम

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) की वैज्ञानिक सोमा सेन रॉय कहती हैं कि पिछले कुछ समय से पश्चिमी विक्षोभ की वजह से मौसम में कई परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं. पहाड़ों में सर्दियों में कम बर्फ देखने को मिली तो वहीं मैदानी इलाकों में बारिश न के बराबर रही. ऐसे में इस बार फरवरी में जहां गर्मी रिकॉर्ड बनाती नजर आई, मार्च में भी ऐसे ही गर्मी से लोगों को रूबरू होना होगा. 

क्या होता है अल नीनो 

आमतौर पर प्रशांत महासागर में हवाएं भूमध्य रेखा से होते हुए पश्चिम की तरफ बहती हैं. इसका सीधा असर ये होता है कि दक्षिण अमेरिका से गर्म पानी एशिया की तरफ आता है. गर्म पानी बहने से खाली हुई जगह को महासागर की गहराई से ठंडा पानी ऊपर आकर भरता है. इसे अपवेलिंग कहते हैं और अल नीनो और ला नीना इसी पैटर्न को तोड़ते हैं. अल नीनो के हालत तब बनते हैं जब एक जगह से दूसरी जगह जाने वाली हवाएं कमजोर पड़ जाती हैं. इससे गर्म पानी पूर्व दिशा में अमेरिका के पश्चिमी तट की ओर आने लगता है.(रिपोर्ट/वरुण सिन्हा)

MORE NEWS

Read more!