महाराष्ट्र में प्याज के भाव तेजी से नीचे गिर रहे हैं. ठीक उसी तरह, पंजाब और उत्तर प्रदेश में आलू के भाव ने गोता लगा दिया है. इससे देश के किसानों की हालत को समझना बेहद आसान है. इन प्रदेशों में आज हालात ये हैं कि किसान अपनी उपज को बाजार में नहीं ले जाकर खेत में ट्रैक्टर से नष्ट कर रहे हैं. किसानों का कहना है कि मंडी या बाजार में ले जाने का ढुलाई का खर्च भी नहीं निकल पा रहा. महाराष्ट्र, पंजाब और उत्तर प्रदेश के किसान फसल की लागत निकालने के लिए पुरजोर मेहनत कर रहे हैं. इसके बाद भी हालात जस के तस हैं.
प्याज हो या आलू, यहां तक कि टमाटर और अन्य सब्जियों का आजकल ऐसा ही हाल है. इस साल देश में प्याज और आलू का बंपर उत्पादन हुआ है. इसकी वजह से इन उपजों के दाम अचानक से गिर गए हैं. महाराष्ट्र में किसानों की हालत ऐसी है कि वे या तो एक रुपये किलो प्याज बेचने को मजबूर हैं या फिर खेत में ट्रैक्टर चला रहे हैं.
आलू का ठीक यही हाल पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और देश के कई अन्य राज्यों में देखा जा रहा है. इस साल सब्जी के आलू का भाव 60 से 76 परसेंट तक गिर गया है. पिछले साल जहां आलू के रेट 10 रुपये चल रहे थे, इस बार वही भाव चार रुपये पर सिमट गया है.
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हरियाणा के आलू किसानों का कहना है कि एक किलो आलू उगाने का खर्च सात से आठ रुपये आता है. लेकिन लागत नहीं निकल पाने से वे आलू की खोदाई तक नहीं कर रहे. इसमें मजदूरी पर होने वाला खर्च उनके गले की हड्डी बनता जा रहा है. कई जगह किसान फसल को या तो नष्ट कर रहे हैं या फिर खेत में यूं ही छोड़ रहे हैं. इस इंतजार में कि आगे अच्छे भाव मिल सकते हैं.
आलू, प्याज और अन्य सब्जियों की इस स्थिति को मशहूर फूड पॉलिसी एनालिस्ट देविंदर शर्मा 'फार्म ब्लडबाथ' यानी खेती का संहार बता रहे हैं.
महाराष्ट्र में इस साल खरीफ प्याज के रकबे में 20 फीसद की वृद्धि हुई जिसकी वजह से बंपर उत्पादन देखा गया. उत्पादन बढ़ने से दाम अचानक गिर गए. खरीफ प्याज की उम्र रबी फसलों से भी कम होती है जिसके चलते किसान प्याज को बहुत अधिक दिनों तक नहीं रख सकते. मजबूरी में उन्हें अपनी उपज निकालनी पड़ती है. खरीफ प्याज निकालने के सात से आठ दिनों के भीतर बेचना जरूरी होता है. जबकि रबी प्याज की उम्र छह महीने की होती है.
फरवरी महीने में देश के उत्तर-पश्चिम हिस्से में अचानक तापमान बढ़ने से फसलें जल्दी पक गईं. प्याज की फसल भी जल्द तैयार हो गई. इसलिए जिस फसल को आगे अधिक दिनों तक नहीं रख सकते, उसे मजबूरी में जल्दी निकाल कर बाजार में बेचना पड़ रहा है.
फरवरी में तापमान बढ़ने से उत्तर भारत में आलू और गोभी की फसल समय से जल्दी निकलने लगी. इससे दोनों उपजों के दाम अचानक से गिर गए. आलू के भाव इसलिए भी तेजी से गिरे क्योंकि इसके दाने इस बार छोटे रह गए.
फसलों के दाम गिरने से किसान अगले साल अपनी खेती कम कर देते हैं. जैसे इस बार आलू और प्याज के भाव कम मिले हैं, तो अगली बार किसान दोनों फसलों का रकबा कम देंगे. किसान जैसे ही रकबा कम करते हैं, इससे उपज कम होती है और मांग बढ़ जाती है. मांग बढ़ने से किसान अगली बार फिर अधिक फसल लगाने के लिए तैयार हो जाते हैं. इसका नतीजा बंपर उत्पादन और दाम में गिरावट के रूप में दिखता है. यह पूरी प्रक्रिया एक साइकिल के रूप में चलती रहती है.
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दाम में लगातार गिरावट को रोकने का एक उपाय ये हो सकता है कि सरकार कोल्ड स्टोरेज की व्यवस्था को मजबूत करे. फल और सब्जियों की प्रोसेसिंग बढ़ाई जाए, सरकार बाजार में हस्तक्षेप करे और भावांतर जैसी स्कीम चलाई जाए.
देविंदर शर्मा कहते हैं, "अगर ऑपरेशन फ्लड योजना दूध की कीमतों में उतार-चढ़ाव के मुद्दे को हल कर सकती है, तो यह फल और सब्जी उत्पादकों को भी मदद कर सकती है. बाजार हस्तक्षेप और भावांतर योजनाएं, खाद्य प्रसंस्करण और कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं को मजबूत करने से कीमतों में गिरावट आने पर किसानों को मदद मिल सकती है."
कृषि एक्सपर्ट मानते हैं कि अगर तीन कृषि कानून वापस नहीं लिए गए रहते तो आज पंजाब, महाराष्ट्र या अन्य राज्यों में उपजों के दाम की ऐसी हालत नहीं रहती. पंजाब के आलू और प्याज किसानों ने अपनी उपज को हिमाचल में बेचना शुरू किया, लेकिन इसके लिए मार्केट फीस देने की जरूरत पड़ती है.
'आजतक' से खास बातचीत में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के कृषि विज्ञान संकाय के कृषि-अर्थशास्त्र विभाग के प्रो. राकेश सिंह ने कहा, तीन कृषि बिल अधिनियम बन गए थे और इसे सरकार को वापस लेना पड़ा. ये तीनों बिल एग्रीकल्चर मार्केटिंग फील्ड में एक बड़े मार्केट रिफॉर्म थे. तीनों बिलों का मुख्य उद्देश्य यही था कि मार्केट में खरीदारों की संख्या बढ़ सके. अगर किसान बिल लागू हुए रहते तो प्रोसेसर, एक्सपोर्टर, होटल एसोसिएशन जैसे तमाम खरीदार बाजार में आते और मार्केट प्राइस उतनी न गिरती जितनी आज गिर चुकी है. बढ़े हुए दाम का फायदा किसानों को मिलता, ये उम्मीद की जा सकती है.
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इस बीच, पंजाब के किसान और कुछ राजनेता पड़ोसी पाकिस्तान को टमाटर, आलू और गेहूं निर्यात करने के पक्ष में हैं, जहां प्रति क्विंटल गेहूं की कीमत 4200 रुपये पर है. यह दाम पंजाब के किसानों द्वारा भारतीय बाजार में बेचे जाने वाले मूल्य से लगभग दोगुना है. पाकिस्तान में प्याज और आलू के दाम 400 से 500 रुपये प्रति किलो के बीच हैं. प्रतिबंध हटने से किसानों को लाभकारी मूल्य मिल सकता है.(बनारस से रोशन जायसवाल का भी इनपुट)
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