मॉनसून... भारत के लिए मॉनसून कई मायनों में विशेष होता है. सीधे शब्दों से कहें तो मॉनसून और भारतीय अर्थव्यवस्था एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, जिसे जोड़ने का काम खेती यानी कृषि करती है. यहां ये स्पष्ट करना जरूरी है कि मॉनसून का मतलब इस सीजन में होने वाली बारिश से है. असल में मॉनसून सीजन में ही साल में होने वाली कुल बारिश की 70 फीसदी तक बारिश दर्ज की जाती है. वहीं मॉनसून और खरीफ सीजन भी एक साथ शुरू होते हैं. इसका कारण ये है कि खरीफ सीजन की मुख्य फसल धान समेत अन्य फसलाें को अधिक सिंचाई की जरूरत होती है और मॉनसूनी बारिश खरीफ फसलों की इस खुराक को पूरा करती हैं, लेकिन इस बार मॉनसून पर अल नीनो का खतरा मंडराया हुआ है.
नतीजतन मॉनसून सीजन में देश के कई राज्यों में सूखे का संकट बनता हुआ दिख रहा है, जो किसानों को कर्जदार बना सकता है. आइए समझते हैं कि अल नीनो क्या है, मॉनसून में अल नीनो के प्रभाव से कैसे सूखा पड़ सकता है. साथ ही ये भी जानते हैं कि सूखे के हालात कैसे किसानों को कर्जदार बना सकते हैं और इससे बचने के लिए किसानों को क्या एहतियात अभी से बरतनी चाहिए.
मॉनसून पर अल नीनो के प्रभाव को लेकर कई महीनों से कयासबाजी जारी हैं. IMD ने मॉनसून में अल नीनो के प्रभाव काे स्वीकारा है, लेकिन इसे कांउटर करने वाली परिस्थतियों का हवाला देते हुए सामान्य बारिश का पूर्वानुमान जारी किया है. वहीं कई अन्य एजेंसियां अल नीनो की आशंका जता रही हैं. ऐसे में जरूरी है कि अल नीनो के बारे में समझा जाए. अल नीनो को समझाते हुए जीबी पंत कृषि व प्राैद्योगिकी यूनिवर्सिटी में सीनियर मेट्राेलॉजिस्ट डॉ आरके सिंह कहते हैं की अल नीनो मौसम का एक खास पैटर्न है, जो प्रशांत महासागर से जुड़ा हुआ है. उन्होंने कहा कि जब मध्य और पूर्वी प्रशांत महासागर में समुद्र का तापमान सामान्य से ज्यादा हाेता है तो अल नीनो पैर्टन बनता है.
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उन्होंने कहा कि अल नीनो की वजह से प्रशांत महासागर का तापमान गर्म हो जाता है, ये गर्म पानी भूमध्य रेखा के साथ जब पूर्व की ओर बढ़ता है तो भारत के मौसम पर इसका असर पड़ता है. इस वजह से लू, सूखा, शुष्क मौसम के हालात बनते हैं.
मॉनसून 2023 में अल नीनो के प्रभाव काे समझाते हुए जीबी पंत कृषि व प्राैद्योगिकी यूनिवर्सिटी में सीनियर मेट्राेलॉजिस्ट डॉ आरके सिंह कहते हैं की सामान्यत: क्रिसमस के समय पर अलनीनो बनता है, लेकिन जब ये पैटर्न समय से पहले बनता है तो विश्व के मौसम चक्र में इसका असर दिखता है. भारतीय मॉनसून को अल नीनो कितना प्रभावित करके संबंधित सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि इसकी 90 फीसदी संभावनाएं हैं कि इस मॉनसून को अल नीनो प्रभावित करेगा. उन्होंने कहा कि जुलाई और अगस्त में अल नीनो का पीक पीरियड होगा. इस दौरान कम बारिश होने की संभावनाएं हैं.
उन्होंने कहा कि मॉनसून 2023 के दौरान IMD ने सामान्य बारिश का अनुमान जताया है, लेकिन अधिक संभावनाएं हैं कि मॉनसून सीजन में अल नीनो की वजह से देश के कई राज्यों में सामान्य से कम बारिश दर्ज की जा सकती है.
मॉनसून पर छाए अल नीनो संकट का खामियाजा जहां खरीफ सीजन में होने वाली फसलों को उठाना पड़ेगा तो वहीं रबी सीजन की फसलों पर इसका असर देखने को मिल सकता है. डॉ आरके सिंह बताते हैं कि मॉनसून सीजन में ही कुल बारिश की 70 फीसदी बारिश होती है. मॉनसून में सूखा पड़ने की स्थिति में खरीफ सीजन की फसलों पर इसका असर दिखाई देगा. तो वहीं रबी सीजन की फसलाें पर भी इसका असर दिख सकता है. उन्होंने कहा कि अगर मॉनसून में कम बारिश होगी तो इससे खेतों में नमी कम हो जाएगी. इस वजह से रबी सीजन की फसलों को अतिरिक्त सिंचाई की जरूरत पड़ेगी.
मॉनसून पर अल नीनो के प्रभाव को अब तक आप समझ ही चुके होंगे. जिसका आउटपुट ये ही है कि इस साल अल नीनो की वजह से मॉनसून सीजन में सूखा पड़ने की संभावनाएं 90 फीसदी तक हैं. यहीं से किसान के कर्जदार बनने की कहानी शुरू होती है. इसे आंकड़ों से समझने की कोशिश करते हैं. असल में 21वीं सदी में अभी तक यानी बीते 22 सालों में देश के अंदर 7 साल अल नीनो का असर दिखा है, जिसमें से वर्ष 2003, वर्ष 2005 वर्ष 2009 और 2015 में सूखे के हालात बने और सूखे की वजह से इन 4 सालों में कृषि उत्पादन में गिरावट दर्ज की गई. मसलन, 2023 में 16 फीसदी, 2005 में 8 फीसदी, 2009 में 10 फीसदी और 2015 में 3 फीसदी की गिरावट कृषि उपज में दर्ज की गई.
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ये आंकड़ें किसानों को सूखे की वजह से कर्जदार बनाने की पूरी कहानी बयां करने के लिए काफी है. असल में देश में 80 फीसदी किसान छोटे और सीमांत श्रेणी के किसान हैं, जिनमें से बड़ी संख्या में किसान खेती से जुड़े कामों के लिए लोन पर निर्भर रहते हैं. तो वहीं कृषि उपज से होने वाली आय बड़ी संख्या में किसानों की आजीविका का मुख्य स्रोत भी है. ऐसे में सूखे जैसे हालात में अगर खरीफ सीजन की फसलों का उत्पादन कम होता है, तो बड़ी संख्या में किसान कर्ज की चपेट में आ सकते हैं.
बेशक, इस मॉनसून सूखे के हालात बनते हुए दिख रहे हैं, जिसके आउटपुट किसानों को कर्जदार तक बना सकता है, लेकिन अगर किसान सावधानी पूर्वक खरीफ सीजन को लेकर रणनीति बनाते हैं तो संभावित सूखे को मात दे सकते हैं. असल में खरीफ सीजन मोटे अनाज की बुवाई का भी समय होता है. किसान मोटे अनाजों की बुवाई कर भी सूखे को मात दे सकते हैं. यहां ये जानना जरूरी है कि मोटे अनाजों की खेती के लिए कम पानी की जरूरत होती है. वहीं संभावित सूखे वाले इस मॉनसून किसान DSR तकनीक से धान की खेती कर सकते हैं. DSR का मतलब, धान की सीधी बिजाई से है, इस तकनीक में धान की खेती के रोपाई के माध्यम से करके सीधे बीजों को छिड़काव करके की जा सकती है.वहीं किसान इस मॉनसून सीजन में कम अवधि वाली धान की दो खेती कर सकते हैं.