Jharkhand Drought: कुएं-तालाब सब सूखे, बीते 10 साल से नहीं हुई अच्छी बारिश, झारखंड की ये रिपोर्ट है दर्दनाक

Jharkhand Drought: कुएं-तालाब सब सूखे, बीते 10 साल से नहीं हुई अच्छी बारिश, झारखंड की ये रिपोर्ट है दर्दनाक

''गंदूरा उरांव धान की खेती के बारे में पूछने पर चिंतिंत स्वर में बताते हैं कि इस बार पिछले बार से खराब हालात है. 2010-11 वाली स्थिति राज्य में हो गई है. जब झारखंड में गंभीर सूखा पड़ा था और और कुएं तालाब सभी सूख गए थे. इस बार भी वहीं हालात हैं. उन्होंने बताया कि हर साल इस समय तक वो धान की रोपाई कर देते थे. पर इस बार बिचड़ा तक तैयार नहीं हुआ है.''

झारखंड में सूखे की स्थिति पैदा हो रही हैझारखंड में सूखे की स्थिति पैदा हो रही है
पवन कुमार
  • Ranchi,
  • Jul 26, 2023,
  • Updated Jul 26, 2023, 1:03 PM IST

झारखंड एक बार फिर गंभीर सूखे की तरफ बढ़ रहा है. खेतों में हालात बदतर होते जा रहे हैं. किसान बारिश के लिए तरस रहे हैं पर बादल नहीं बरस रहे हैं. बारिश का इंतजार करते करते किसानों का सब्र टूट रहा है. उन्हें अपने खेत में तैयार बिचड़े को खेत में लगाने की चिंता सता रही है. किसानों का कहना है कि इस बार के हालात पिछले बार से भी खराब हैं. क्योंकि पिछले साल हमारे पास कुओं और तालाबों में इतना पानी था कि सिंचाई करके बिचड़ों को खेत में लगा सकते थे. इस बार तो वो उम्मीद भी नजर नहीं आ रही है. जिन खेतों में धान की नर्सरी तैयार की गई है, वहां पानी के अभाव में दरारें पड़ रही हैं. अनहोनी और अनिश्चिता के बीच किसान खेत तैयार कर रहे हैं पर उनके मन में एक डर जरूर है कि क्या इस बार भी सूखा पड़ने वाला है.

मांडर प्रखंड के गुड़गुड़जाड़ी गांव के प्रगतिशील किसान गंदूरा उरांव धान की खेती के बारे में पूछने पर चिंतिंत स्वर में बताते हैं कि इस बार पिछले बार से खराब हालात हैं. 2010-11 वाली स्थिति राज्य में हो गई है. जब झारखंड में गंभीर सूखा पड़ा था और और कुएं तालाब सभी सूख गए थे. इस बार भी वही हालात हैं. उन्होंने बताया कि हर साल इस समय तक वो धान की रोपाई कर देते थे. पर इस बार बिचड़ा तक तैयार नहीं हुआ है. गंदूरा ने कहा कि पानी के अभाव में इस बार पौधों का अंकुरण ही ठीक से नहीं हो पाया है. दो जुलाई को उन्होंने नर्सरी तैयार की थी पर अभी तक बिचड़ा नहीं निकला है. वो लगभग 12 एकड़ जमीन में धान की खेती करते हैं. गुड़गुड़जाड़ी गांव में गंदूरा जैसे अनेक किसान हैं जिनकी यह स्थिति है. 

पलायन करने की सोच रहे किसान

वहीं ग्राम मांडर प्रखंड के ही चुंद गांव के किसान सुखदेव उरांव चिंतित होते हुए कहते हैं इस बार भी सूखा पड़ेगा. सरकार को सूखा घोषित कर देना चाहिए ताकि वे लोग कृषि कार्य छोड़ कर मजदूरी करने के लिए कहीं बाहर जा सके. क्योंकि लगातार दो साल का सूखा उनकी कमर तोड़ देगा. उनके पास पानी का स्त्रोत नहीं है कि सिंचाई करके खेती कर सकें. पिछली बार का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि पिछली बार तो कुएं में पानी था इसलिए सिंचाई करके धान की रोपाई करने में मदद मिली थी पर इस बार तो कुएं तालाब भी सूखे हुए हैं. सुखदेव बताते हैं कि हर बार अभी तक खेत में धान की रोपाई कर देते थे पर इस बार अब तक खेत में पानी तक जमा नहीं हुआ है.

अलग झारखंड बनने के बाद तेजी से बदले हालात

गौरतलब है कि पिछले लगभग एक डेढ़ दशक से झारखंड सूखे से सबसे अधिक प्रभावित राज्यों में से एक रहा है. जानकार बताते हैं की झारखंड के हालात पहले ऐसे नहीं थे. साल 2000 से पहले झारखंड का मौसम बिल्कुल सही था. खास कर रांची समेत अन्य जिलों की स्थिति यह थी कि तापमान 30 डिग्री से अधिक होने पर बादल बरस जाते थे. पर अभी हालात यह है कि रांची का तापमान 40 डिग्री तक पहुंच जाता है पर बारिश नहीं होती है. लोग कहते हैं कि अलग झारखंड बनने के बाद बड़े पैमाने पर सड़क बनाने के लिए पेड़ काटे गए. कई जगहों पर पहाड़ काटे गए. वन क्षेत्र घटा इसका सीधा असर यहां की जलवायु पर पड़ा और आज यह हालात है कि झारखंड में साल दर साल सूखा पड़ रहा है. 

झारखंड में सूखे का क्रम

झारखंड में इस साल भी सूख के संभावित असर को देखते हुए विभाग के अधिकारिय़ों की एक बैठक हुई थी. हालांकि राज्य को अभी तक सूखा ग्रस्त घोषित करने के क्षेत्र में अभी तक कोई अधिकारिक बयान नहीं आय़ा है. अधिकारियों का कहना है कि इस वो पूरी स्थिति पर नजर बनाए हुए हैं. सूखे से निपटने के लिए विभाग के पास योजना तैयार है. वैकल्पिक फसल योजना तैयार कर ली गई है. किसानों को कम अवधि वाली धान के बीज की खेती करने के लिए कहा जा रहा है साथ ही डीएसआर तकनीक से धान की बुवाई करने के लिए कहा जा रहा है. इतना ही नहीं किसानों को रागी के बीज भी दिए जा रहे हैं ताकि कम से कम किसान रागी की उपज हासिल कर सकें.

पांच जिलों में बारिश का हाल


राज्य में बारिश का पिछले पांच वर्षों के आंकडों को देखे तो पता चलता है कि हर बार मॉनसून के दौरान बारिश में कितनी कमी आई है. सभी आंकड़े जून से लेकर सितंबर महीने तक के हैं. चतरा जिले की बात करें तो पिछले सात सालों में सिर्फ एक बार ही सामान्य (949 एमएम) से अधिक (1049.6 एमएम) बारिश हुई, बाकी हर साल सामान्य से कम बारिश दर्ज की गई है. इस बार भी जिले में 60 फीसदी से भी कम बारिश हुई है.

चतरा जिले में बारिश के आंकड़े

वहीं पूर्वी सिंहभूम जिले के बात करें तो यहां पर सामान्य बारिश (1096.2 एमएम) की तुलना में हर बार अच्छी बारिश हुई. सिर्फ एक बार 2015 में बारिश में दो फीसदी कमी आयी थी, उसके बाद इस साल 2023 में सामान्य से कम बारिश अब तक दर्ज की गई है.

पूर्वी सिंहभूम जिले के बारिश के आंकड़े

पलामू जिले की बात करें तो यहां पर सामान्य बारिश (849.6 एमएम) की तुलना में सात सालों में चार बार ऐसे मौके आए जब सामान्य से कम बारिश दर्ज की गई.

वहीं रांची जिले कि बात करें तो सामान्य बारिश (1027.7 एमएम) की तुलना में सात सालों में पांच बार सामान्य से कम बारिश दर्ज की गई.

वहीं गिरिडीह जिले में सामान्य बारिश (971.3 एमएम) की तुलना में सात सालों में पांच बार ऐसे मौके आए जब सामान्य से कम बारिश हुई. 

इस साल 45 फीसदी कम हुई है बारिश

झारखंड में साल 2023 में अब तक हुई बारिश के आंकड़ों को देखे तो 22 जुलाई तक के आंकड़ों के मुताबिक राज्य के 17 ऐसे जिले हैं जहां सामान्य से 60 फीसदी कम तक बारिश दर्ज की गई है वहीं चार ऐसे जिले हैं जहां पर सामान्य से भी बेहद कम बारिश ह उई है वहीं सिर्फ तीन जिलों में सामान्य बारिश दर्ज की गई है. अब तक राज्य में कुल 44 फीसदी कम बारिश दर्ज हई है. इस बार भी चतरा गिरिडीह में सामान्य से बेहद कम बारिश हुई है. गौरतलब है कि इस बार राज्य में मॉनसून ने दो सप्ताह की देरी से 18 जून को राज्य में प्रवेश किया था.

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धान के आच्छादन में आई कमी

राज्य में बारिश की कमी का सीधा असर धान की बुवाई पर पड़ा है. कृषि निदेशक की तरफ से जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक 19 जुलाई तक राज्य में धान का कुल आच्छादन कुल लक्ष्य 18 लाख हेक्टेयर की तुलना में मात्र 0.94 लाख हेक्टेयर (5.24 फीसदी) हुई है. जबकि पिछले साल की स्थिति इससे अच्छी थी. पिछले साल इस वक्त तक राज्य में 1.68 लाख हेक्टेयर में (9.34 प्रतिशत) क्षेत्र में धान का आच्छादन हुआ था. इसके अलावा मकई और दलहनी फसलों के आच्छादन की भी इस साल यही स्थिति है. वहीं खरीफ मौसम में अब तक कुल 28.27 लाख हेक्टेयर के लक्ष्य की तुलना में 2.98 लाख हेक्टेयर (10.55 प्रतिशत) में आच्छादन हुआ है. 

मछली पालन भी बना चुनौती

राज्य में बारिश नहीं होने के कारण सिर्फ खेती बारी पर ही नहीं मछलीपालन पर भी इसका असर पड़ रहा है. बारिश नहीं होने के कारण तालाबों में पानी नहीं भर पा रहा है. कुओं में पानी नहीं आ पा रहा है. नदीया भी सूखी हुई है. ऐसे में किसान इस बात से चिंतित है कि पानी ही नहीं रहेगा तो मछली पालन कैसे होगा. तालाब में मछली पालन करने के लिए कम से कम चार फीट पानी चाहिए होता है पर तालाब सूखे पड़े हैं. 

 

 

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