पिज्जा और बर्गर के जमाने में लोगों को दालों का नाम भी शायद ही याद रहा हो. खासकर अगर यंग जेनरेशन की बात करें तो वे दालों के नाम पर जरूर अटक सकते हैं. इसका मुख्य कारण इन चीजों में उनकी रुचि की कमी है. आजकल के बच्चे दाल-चावल से ज्यादा पिज्जा और हक्का नूडल्स के बारे में जानते हैं. जिसके कारण उन्हें न तो दालें खाना पसंद है और न ही इसके बारे में जानना. तो चलिए आज बात करते हैं फोटो में दिख रही दाल के बारे में. इस दाल को कई अलग-अलग नामों से जाना जाता है. लेकिन इसका नाम है लाल मसूर की दाल.
इस दाल के कई फायदे भी हैं. जिसके कारण लोग इसे खाना पसंद करते हैं और किसान इसे उगाना पसंद करते हैं. तो आइए जानते हैं लाल मसूर की खासियत और इसकी खेती के बारे में.
लाल मसूर दाल न केवल स्वादिष्ट है बल्कि आवश्यक पोषक तत्वों से भी भरपूर है. लाल मसूर की दाल प्रोटीन का एक उच्च स्रोत है. लाल मसूर की दाल में घुलनशील और अघुलनशील दोनों प्रकार के आहार फाइबर प्रचुर मात्रा में होते हैं. फाइबर पाचन में मदद करता है, और कब्ज को दूर करता है. लाल मसूर की दाल में स्वाभाविक रूप से वसा कम होती है, यानी अगर आप रोज इसे खाते हैं तो भी मोटापे की चिंता से दूर रह सकते हैं. लाल मसूर की दाल लोहा, मैग्नीशियम, फास्फोरस और पोटेशियम जैसे आवश्यक खनिजों का एक अच्छा स्रोत है. ये खनिज हड्डियों के स्वास्थ्य को बनाए रखने, और मांसपेशियों को मजबूत बनाते हैं. लाल मसूर दाल में विभिन्न बी-विटामिन होते हैं जैसे फोलेट, थायमिन (बी1), और पाइरिडोक्सिन (बी6).
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लाल मसूर की खेती किसानों और उपभोक्ताओं दोनों के लिए कई लाभ प्रदान करती है, जिस वजह से लाल मसूर की मांग हमेशा बनी रहती है. वहीं सरकार भी दलहनी फसलों की खेती के लिए किसानों को बढ़ावा देने का काम करती रहती है. लाल मसूर की खेती किसानों और उपभोक्ताओं दोनों के लिए कई लाभ प्रदान करती है. वो कैसे आइए जानते हैं. लाल मसूर नाइट्रोजन-स्थिर करने वाली दलहनी फसल है, जिसका अर्थ है कि यह फसल वायुमंडल में मौजूद नाइट्रोजन को मिट्टी में मिलाने का काम करता है. जिससे मिट्ठी की उर्वरक क्षमता बढ़ती है. यह प्रक्रिया मिट्टी की उर्वरता में सुधार करती है, सिंथेटिक उर्वरकों की आवश्यकता को कम करती है और टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देती है.
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