पद्मश्री 'Kisan Chachi’ ने समाज के खिलाफ जाकर की खेती, अब सैकड़ों महिलाओं की बदल रहीं तकदीर

पद्मश्री 'Kisan Chachi’ ने समाज के खिलाफ जाकर की खेती, अब सैकड़ों महिलाओं की बदल रहीं तकदीर

पद्मश्री राज कुमारी देवी उर्फ किसान चाची का परिवार कभी आर्थिक तंगी से जूझ रहा था. इस दौरान उन्होंने खेती करना शुरू क‍िया. फ‍िर उन्होंने खुद ही उत्पादित फसलों का आचार बनाने का काम क‍िया. अपने इस मॉडल से वे म‍ह‍िलाओं की रोल मॉडल बन गई. वर्तमान में उनके साथ ही बड़ी संख्या में ग्रामीण महिलाएं जुड़ी हैं, ज‍िन्हें वह घर पर ही रोजगार उपलब्ध करा रही हैं.

बिहार के मुजफ्फरपुर की रहने वाली राजकुमारी देवी
मणि भूषण शर्मा
  • Muzaffarpur ,
  • Mar 07, 2023,
  • Updated Mar 08, 2023, 3:28 PM IST

Padma Shri Kisan Chachi: बिहार के मुजफ्फरपुर की रहने वाली राज कुमारी देवी किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं. भारत सरकार इन्हें पद्मश्री से सम्मानित कर चुकी है. नाम तो राजकुमारी देवी है, लेकिन देश इन्हें किसान चाची के नाम से जानता है, जिन्होंने स्वालंबन का एक ऐसा मॉडल बना दिया कि खुद एक ब्रांड किसान चाची के नाम से बन गई. इनका ये ब्रांड अचार की बोतलों से घर-घर पहुंच रहा है. राजकुमारी देवी ने सामाजिक बंधनों को तोड़कर गृहस्ती को चलाने के लिए सबसे पहले खेती करना शुरू किया, फिर अपने से उपजाए सामानों जैसे- ओल, आम, नींबू, और कटहल की आचार बनाकर स्थानीय बाजारों में बिक्री शुरू कर दी. इतना ही नहीं, प्रदेश एवं राष्ट्रीय स्तर के प्रदर्शनियों में भी दुकान लगाकर बिक्री करने लगीं, जब डिमांड बढ़ी तो अपने जैसे सैकड़ों घरेलू महिलाओं को भी रोजगार दिया और यही लीक से हटकर काम करने की आदत ने ही राजकुमारी देवी को किसान चाची की पहचान दी.

ये कहानी उन राजकुमारी देवी की है, जो बिहार के मुजफ्फरपुर जिले स्थ‍ित सरैया गांव से अपनी कठिनाइयों को पार करते हुए किसान चाची के नाम से प्रसिद्ध हुईं और पद्मश्री तक का सफर तय कर एक मिसाल बन गईं. इस सफर को तय करने के लिए उन्हें काफी सामाजिक और पारिवारिक बाधाओं का भी सामना करना पड़ा. मगर कहावत है कि इतिहास वहीं लोग लिखते हैं, जो विपरीत परिस्थितियों का सामना करते हैं.

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सरैया ब्लॉक से महज डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर उनका गांव सरैया बसा हुआ है, जहां से कभी उन्होंने सामाजिक बंधन की खिलाफत करते हुए अपनी जमीन पर खेती करने का निश्चय कीं और समाज और परिवार के सारे लोगों के विरोध के बाद भी वो नहीं रुकीं और पहले तो परंपरागत तरीके से खेती करते हुए वैज्ञानिक अंदाज को अपनाकर अपनी खेतीबाड़ी को उन्नत किया. जिसके बाद उन्होंने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा. 

खुद को स्वावलम्बी बनाने के बाद उन्होंने अन्य महिलाओं को भी स्वाबलम्बी बनाना शुरू किया और शुरुआती दौर में आस-पास की महिलाओं के साथ जुड़कर खेती की उपज से आम, बेल, नींबू, आंवला आदि के आचार को बाजार में बेचना शुरू किया. फिर धीरे-धीरे समहू में महिलाओं और उनका क्षेत्र बढ़ता चला गया.

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कृष‍ि क्षेत्र में पहल और योगदान के लिए उन्हें कई बार सामाजिक संगठनों राज्य और केंद्र सरकार से भी सम्मानित किया गया और पद्मश्री तक मिला. पद्मश्री मिलने पर उन्होंने बताया कि ये सम्मान उन लोगों को जवाब है, जो महिलाओं को कमजोर समझते हैं और ये सोचते हैं कि महिलाएं पुरुषों के मुकाबले हर काम नहीं कर सकती हैं.  
 
इतना ही नहीं किसान चाची के साथ काम करने वाली महिलाओं ने बताया कि परिवार चलाना मुश्किल था. पति खेती और मजदूरी करते थे हमलोगों ने किसान चाची के साथ काम शुरू किया अब अच्छी आमदनी हो रही है.

 

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