मौजूदा वक्त में आप यदि सफल होना चाहते हैं और कुछ खास करने की सोच रखते हैं, तो ऐसे में जरूरत है कि आप कुछ नया करें. आपकी सोच में मौलिकता या नयापन हो, कुछ अलग करने का जज्बा हो. इसके अलावा कुछ अलग करना हो, तो आपके पास नए विचारों का भंडार होना भी बेहद जरूरी है. पढ़ाई से लेकर व्यवसाय तक, यह नियम हर जगह लागू होता है. उक्त बातों को बने बनाए लीक से हटकर पद्मश्री अवार्ड 2023 से सम्मानित किसान उमाशंकर पांडेय ने चरितार्थ किया है.
उमाशंकर पांडेय ने नई दिल्ली में आयोजित किसान तक समिट में खेती-किसानी के बारे में विस्तार से बात की. किसान तक इंडिया टुडे ग्रुप का डिजिटल चैनल है जिसका उद्घाटन मंगलवार को नई दिल्ली में किया गया. इसका उद्घाटन केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और केंद्रीय मत्स्य, पशुपालन और डेयरी मंत्री परषोत्तम रूपाला ने किया. पांडेय ने कहा कि उनके खिलाफ में पानी की इतनी घोर कमी थी कि डेढ़ सौ फीट पर भी पानी नहीं आता था. इसके लिए उन्होंने पूरे इलाके में अभियान चलाया जिसके लिए उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया.
दरअसल, तकरीबन डेढ़ दशक पहले जब बुंदेलखंड का बांदा जिला पूरी तरह से सूखे की चपेट में था, तो उस निराशा भरे दौर में बांदा जिला स्थित जखनी गांव के सफल किसान उमाशंकर पांडेय ने 'खेत पर मेढ़ और मेढ़ पर पेड़' का नारा गढ़ा. पुरखों के सुझाए इस सूत्र को उन्होंने अपने खेतों में लागू किया. इस तरह सूखे को मात देने वाला उनका जखनी मॉडल तैयार हुआ. परिणामस्वरूप, इसी मॉडल की लोकप्रियता ने किसान उमाशंकर पांडेय को चर्चा में ला दिया. हाल ही में उन्हें इसी काम के लिए पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित किया गया है.
सफल किसान उमाशंकर पांडेय ने अपने मौलिक विचारों की बदौलत डेढ़ दशक पहले अपने खेतों की मेढ़बंदी कराई और उन पर छोटे-बड़े, सभी प्रकार के स्थानीय पेड़ों को लगवाया. नतीजतन, कुछ सालों में ही बारिश का पानी उनकी खेतों में ठहरने लगा. खेतों में पानी की ठहराव होने की वजह से मिट्टी के क्षारीय स्वभाव में भी बदलाव आने लगा, मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी बेहतर होने लगी. साथ ही दो साल की बारिश में मेढ़ पर लगे अरहर और करौंदा जैसे छोटे पेड़ बड़े होकर मेढ़ को मजबूती प्रदान कर फल भी देने लगे.
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सफल किसान उमाशंकर पांडेय के खेत से शुरू हुए ‘खेत पर मेढ़ और मेढ़ पर पेड़’ अभियान को धीरे-धीरे गांव के अन्य लोगों ने भी अपनाया. महज पांच से छह साल के भीतर ही जखनी गांव, जल संरक्षण के रोल मॉडल के रूप में उभरकर सामने आ गया. इसकी पहचान 'जलग्राम' के रूप में बन गई. बारिश का पानी गांव के ही खेतों में रुकने के कारण पूरे जखनी मौजे की जलधारण क्षमता तेजी से बढ़ी. इससे गांव का भूजल जलस्तर भी सुधर गया. वहीं जखनी गांव से शुरू हुआ जल संरक्षण का प्रयोग धीरे-धीरे एक मुहिम बन गया और उमाशंकर पांडेय की अगुवाई में आसपास के गांवों में भी फैल गया.
2018 में बांदा जिले के जिलाधिकारी बन कर आए डॉ. हीरालाल ने भी जखनी मॉडल को ही बुंदेलखंड के जलसंकट का स्थाई समाधान मानते हुए इसे प्रशासनिक प्रोत्साहन दिया. उन्होंने जखनी मॉडल को जिले की सभी 470 ग्राम पंचायतों में लागू किया. इतना ही नहीं, उन्होंने अपनी किताब 'डायनमि़क डीएम' में भी 'जलग्राम जखनी' का जिक्र किया है. जखनी में पांडेय के सफल प्रयोग की जानकारी डॉ. हीरालाल के माध्यम से जलसंरक्षण मंत्रालय को हुई. इसके बाद नीति आयोग की टीम ने इस मॉडल का निरीक्षण कर अपनी रिपोर्ट में यह माना कि बुंदेलखंड जैसे सूखाग्रस्त इलाकों के लिए किसान समुदाय 'खेत पर मेढ़ और मेढ़ पर पेड़' के सूत्र का पालन कर जलसंकट से उबारने में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं.
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उमाशंकर पांडेय की उपलब्धियों की वजह से सितंबर 2020 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'मन की बात' कार्यक्रम में पांडेय के जलग्राम मॉडल का जिक्र किया था. इसके अलावा, नवंबर 2020 में जलशक्ति मंत्रालय ने पांडेय को 'राष्ट्रीय जलयोद्धा' के सम्मान से नवाजा था. साथ ही उन्हें प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली नीति आयोग की भूजल संरक्षण समिति में भी नामित किया गया है.