चुनाव का खेल खत्म, अब सत्ता का खेल शुरू. राजस्थान में लाख टके का सवाल यह है कि क्या वसुंधरा राजे की ताजपोशी होगी? अगर राजे नहीं तो किसके सिर पर सजेगा सत्ता का ताज? इन सवालों के जवाब दिल्ली से मिलेंगे, लेकिन दिल्ली की नज़र है जयपुर के 13 नंबर बंगले पर. इस 13 नंबर बंगले में आखिर क्या हो रहा है? बीती रात नई चुने कई विधायकों का डिनर था. कई अन्य चर्चाएं भी हैं. साथ ही शगूफे हैं कि इतने विधायक वसुंधरा से मिले हैं. उतने विधायक प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी से. कई विधायक दोनों से मिले हैं. बहुत सारों ने कहा है कि मेरा सीएम कमल का फूल है. दिल्ली में अमित शाह के घर क्या हो रहा है? इससे उसकी मुलाकात.उससे इसकी मुलाकात. इसका नाम भी लिस्ट में है, उसका नाम भी सबसे आगे. आदि...आदि...
बीते दो दिनों से तमाम मीडिया रिपोर्ट में आपने राजस्थान को लेकर यही खबरें सबसे ज्यादा पढ़ी होंगी. इन सभी खबरों को अगर एक हेडलाइन दी जाए तो यही होगी कि आखिर कौन होगा राजस्थान का सीएम? तमाम राजनीतिक पत्रकार और भाजपा बीट देखने वाले रिपोर्टर दो दिन से दिल्ली और जयपुर में बीजेपी दफ्तर में हलकान हैं, लेकिन उनके सूत्र ध्वस्त होते हुए दिखाई दे रहे हैं. समय-समय पर उनके लिए चाय और समोसे का इंतजाम भी हो रहा है.
मेरी समझ में सच तो यह है कि सच सिर्फ दिल्ली जानती है. बाकी सब हवा है. होगा वही जो दिल्ली चाहेगी. नजदीक आते लोकसभा चुनाव, जातियों का समीकरण और पिछले दो लोकसभा के राजस्थान में रिकॉर्ड में बनाए रखने के लिए जो भी करना चाहिए, वही दिल्ली करेगी. नाम बहुत सारे चलाए जा रहे हैं जिनकी सीएम बनने की चर्चा है, लेकिन बीजेपी को नजदीक से जानने वाले कहते हैं कि जिनका नाम चला है, वो लिस्ट में सबसे पहले हटे भी हैं.
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साथ ही फिलहाल भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व जो है, वो क्षेत्रीय क्षत्रपों को ठिकाने लगाने के लिए जाना जाता है. सिर्फ केन्द्रीय नेतृत्व ही क्यों पूरा भाजपा संगठन भी सिर्फ एक नेतृत्व में चलने का इतिहास रहा है. हालिया दिनों में कर्नाटक में येदियुरप्पा थोड़े टिके लेकिन बाद में हटना ही पड़ा. थोड़ा पहले जाएं तो गुजरात में केशुभाई पटेल, यूपी में कल्याण सिंह, मध्य प्रदेश में उमा भारती, झारखंड में अर्जुन मुंडा, दिल्ली में मदन लाल खुराना जैसे क्षेत्रीय क्षत्रपों को संगठन ने धकेल ही दिया. इनमें सबसे बड़ा नाम तो लालकृष्ण आडवाणी का है.
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इसीलिए अगर इन समीकरणों को देखते हैं तो वसुंधरा के आसार कम ही नजर आ रहे. शायद इसीलिए उनसे नजदीकी विधायक कालीचरण सर्राफ ने 70 विधायकों का राजे को समर्थन होने का दावा किया है. यह 70 का आंकड़ा ऐसे ही हवा में नहीं आया. शायद बीती रात नव-निर्वाचित विधायकों से हुई डिनर टॉक के बाद निकला है. इसीलिए अगले एक-दो दिन मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर सस्पेंस बना रहेगा. आखिर होगा वही जो दिल्ली चाहेगी.
इसीलिए मेरी रुचि दिल्ली के फैसले के बाद के हालात पर है. अगर यह फैसला राजे के पक्ष में जाता है तो उम्मीद है सब ठीक ही रहेगा, लेकिन अगर ताज किसी और के सिर सजता है तो राजे क्या करेंगी, यह बेहद महत्वपूर्ण और निर्याणक होगा.