पंजाब सरकार की लैंड पूलिंग पॉलिसी के विरोध में पंजाब के किसान प्रदर्शन पर उतर आए हैं. सोमवार को इस नीति के खिलाफ अमृतसर में किसानों ने एक बाइक रैली निकाली जिसका नेतृत्व किसान मजदूर संघर्ष समिति (केएमएससी) के नेता सरवन सिंह पंढेर ने किया. किसानों ने इसी तरह का प्रदर्शन पिछले दिनों में आयोजित किया था. किसान नेताओं का कहना है कि यह पॉलिसी पूरी तरह से किसानी को खत्म करने वाली है. खास बात है कि हाल ही में पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट नें भगवंत मान सरकार को इस नीति की वजह से कठघरे में खड़ा किया है और इस पर स्टे लगा दिया है. लेकिन किसान फिर भी प्रदर्शन कर रहे हैं.
पंढेर की अगुवाई में जो रैली निकाली गई उसमें किसानों ने अमृतसर के जलियांवाला बाग से मार्च शुरू किया. इस मौके पर किसान नेता पंढेर ने कहा कि लैंड पूलिंग एक्ट से किसानी खत्म हो जाएगी. मार्च जलियांवाला बाग से होता हुआ, स्वर्ण मंदिर, अटारी और उसके बाद यह रामतीर्थ मंदिर तक पहुंचा. पिछले हफ्ते बुधवार यानी 6 अगस्त को भी एक ऐसी ही रैली लुधियाना के करीब जोधन गांव में आयोजित की गई थी. इसमें किसानों ने नीति का खासा विरोध किया था. इस रैली को 'जमीन बचाओ' नाम दिया गया था.
संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) के नेतृत्व में आयोजित उस रैली का मकसद राज्य की उपजाऊ कृषि भूमि को कॉर्पोरेट हितों के हाथों में जाने से बचाना था. जोधन की अनाज मंडी में आयोजित की गई रैली में ट्रैक्टरों, बसों, कारों और मोटरसाइकिलों पर भार तादाद में किसान सवार होकर आए थे. इस रैली को संबोधित करते हुए प्रमुख किसान नेता जगजीत सिंह दल्लेवाल ने पंजाब सरकार पर कॉर्पोरेट घरानों का साथ देने का आरोप लगाया. उन्होंने प्रस्तावित लैंड पूलिंग नीति को एक 'काला कानून' बताया, जिसका मकसद 65,000 एकड़ से ज्यादा उपजाऊ कृषि भूमि को निजी निगमों को सौंपना है. दल्लेवाल का कहना था कि यह वह जमीन है जिस पर किसान गेहूं, धान और सब्जियां उगाते हैं. उन्होंने चेतावनी दी कि यह नीति एक गंभीर खाद्य संकट को जन्म दे सकती है.
शनिवार को ही पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट ने इस नीति को लेकर आम आदमी पार्टी (आप) सरकार को कड़ी फटकार लगाई है. हाई कोर्ट ने पंजाब में 'प्लैन्ड अर्बन डेवलपमेंट' के लिए बनाई गई योजना पर रोक लगा दी. साथ ही हाई कोर्ट ने कहा कि ऐसा लगता है कि लैंड पूलिंग पॉलिसी को 'जल्दबाजी' में नोटिफाइड किया गया है. सरकार ने इसके साथ ही सामाजिक प्रभाव आकलन, पर्यावरण के मुद्दों, समयसीमा और शिकायत निवारण तंत्र सहित चिंताओं को नजरअंदाज कर दिया जबकि इन मसलों पर पहले ही ध्यान देना चाहिए था. जस्टिस अनुपिंदर सिंह ग्रेवाल और जस्टिस दीपक मनचंदा की बेंच ने कहा कि जिस भूमि का अधिग्रहण किया जाना है, वह राज्य की सबसे उपजाऊ भूमि में से एक है. यह संभव है कि इससे सामाजिक परिवेश पर असर पड़े.
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