पंजाब सरकार ने अपनी भूमि पूलिंग नीति में अहम बदलाव किया है. अब छोटे ज़मीन मालिक भी मिलकर अपनी ज़मीन को एक साथ जोड़ सकते हैं, जिससे उन्हें वाणिज्यिक (कॉमर्शियल) और आवासीय (रिहायशी) प्लॉट्स दोनों का लाभ मिल सकेगा. यह बदलाव तब आया है जब कई गांवों के पंचायतों ने मुख्यमंत्री भगवंत मान से पुरानी नीति को वापस लाने की मांग की थी. मोहाली, जालंधर और लुधियाना के किसानों ने भूमि अधिग्रहण का विरोध किया था और इसे उनके लिए नुकसानदायक बताया था.
सरकार ने अब अधिकतम 8 ज़मीन मालिकों को यह अनुमति दी है कि वे अपनी ज़मीन को जोड़कर न्यूनतम सीमा को पार कर सकते हैं. उदाहरण के तौर पर, अगर आठ लोगों के पास 1-1 कनाल ज़मीन है, तो वे मिलकर कुल एक एकड़ ज़मीन बना सकते हैं. इससे वे दोनों तरह के प्लॉट्स पाने के योग्य हो जाते हैं.
पहले की नीति में, अगर किसी ज़मीन मालिक के पास 3 कनाल से कम ज़मीन होती थी, तो उसे वाणिज्यिक प्लॉट नहीं दिया जाता था. यह नियम हाल ही में लागू किया गया था, जिससे छोटे किसानों को नुकसान हो रहा था. अब, नई नीति के तहत उन्हें भी यह लाभ मिलेगा, बशर्ते वे ज़मीन को जोड़कर न्यूनतम सीमा तक पहुंच जाएं.
यह नई भूमि पूलिंग नीति मई में शुरू की गई थी, जिसका उद्देश्य शहरी विकास को बढ़ावा देना है. इसके तहत 27 शहरी क्षेत्रों में टाउनशिप बनाई जाएंगी. अकेले लुधियाना में 24,000 एकड़ कृषि भूमि इसके लिए अधिग्रहित की जा सकती है.
सरकार का दावा है कि यह योजना पूरी तरह स्वैच्छिक है और किसानों को उनके ज़मीन की तुलना में अधिक मूल्य के प्लॉट दिए जाएंगे. हालांकि विपक्षी दलों – कांग्रेस, बीजेपी और अकाली दल – ने इस पर सवाल उठाए हैं और इसे किसानों की ज़मीन हड़पने की साजिश बताया है.
राजनीतिक दलों का कहना है कि सरकार बिल्डरों से मिलकर किसानों की उपजाऊ ज़मीन छीन रही है. ग्रामीणों का आरोप है कि इस योजना से भ्रष्टाचार बढ़ेगा और आम किसान को कोई लाभ नहीं मिलेगा.
द ट्रिब्यून की एक रिपोर्ट के मुताबिक मोहाली के पट्टन गांव के मनजीत सिंह ने कहा, “हमारे गांव वालों ने ज़मीन देने से मना कर दिया है जब तक पुरानी नीति को वापस नहीं लाया जाता.” उन्होंने बताया कि कांग्रेस सरकार के समय में एक कनाल ज़मीन के बदले 150 गज का रिहायशी और 25 गज का कॉमर्शियल बूथ मिलता था. दो कनाल पर 250 गज रिहायशी और 60 गज का कॉमर्शियल प्लॉट मिलता था, जबकि तीन कनाल पर 250 गज रिहायशी और 85 गज का कॉमर्शियल प्लॉट दिया जाता था.
पंजाब सरकार की यह नई नीति छोटे किसानों को राहत देने की कोशिश है, लेकिन राजनीतिक विरोध और ग्रामीणों की चिंताएं इसे सफल होने में बड़ी चुनौती बन सकती हैं. अब देखना होगा कि यह बदलाव किसानों के हित में कितना कारगर साबित होता है.