भारत के एग्री और डेयरी सेक्टर पर क्यों है अमेर‍िका के राष्ट्रपत‍ि डोनाल्ड ट्रंप की नजर? 

भारत के एग्री और डेयरी सेक्टर पर क्यों है अमेर‍िका के राष्ट्रपत‍ि डोनाल्ड ट्रंप की नजर? 

US-INDIA Trade Deal: कॉटन को छोड़कर अन्य क‍िसी जीएम फसल को भारत में उगाने तक की अनुमत‍ि नहीं है, ऐसे में अमेर‍िका के जीएम सोयाबीन और मक्का को मंगाकर यहां खाने के ल‍िए अनुमत‍ि देने का सवाल ही नहीं पैदा होता. अमेरिका में गाय-भैंस जैसे पशुओं को नॉनवेज यानी मांसाहारी आहार भी ख‍िलाया जाता है. ऐसे पशुओं के दूध से बने डेयरी प्रोडक्ट को भारत कैसे मंगा सकता है?

भारत से क्या चाहता है अमेर‍िका. भारत से क्या चाहता है अमेर‍िका.
ओम प्रकाश
  • New Delhi ,
  • Jul 02, 2025,
  • Updated Jul 02, 2025, 1:01 PM IST

अमेरिकी राष्ट्रपत‍ि डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ वार को लेकर पूरी दुन‍िया में मची खलबली के बीच इंड‍ो-यूएस ट्रेड डील (US INDIA Trade Deal) होने वाली है. इस पर पूरे देश की नजरें लगी हुई हैं. इस डील में सबसे बड़ा झगड़ा एग्री, डेयरी और पोल्ट्री उत्पादों के आयात और उस पर लगने वाली ड्यूटी यानी टैक्स को लेकर है. ट्रंप चाहते हैं क‍ि भारत सरकार उनके जेनेट‍िकली मोड‍िफाइड (GM) सोयाबीन और मक्का के ल‍िए अपना बाजार खोल दे. यही नहीं दूसरे एग्री प्रोडक्ट के ल‍िए इंपोर्ट ड्यूटी को या तो खत्म कर दे या फ‍िर नाम मात्र या अमेर‍िका के बराबर कर दे. हालांक‍ि, भारत सरकार अपने देश के किसानों के हितों को नजर में रखते हुए ऐसा करने के पक्ष में नहीं है. क्योंक‍ि ऐसा करने से यहां के क‍िसानों को अपने कृष‍ि उत्पाद बेचने से मिलने वाला फायदा कम हो जाएगा या फ‍िर उन्हें नुकसान होने लगेगा. क्योंक‍ि अमेर‍िका के प्रभुत्व वाले व‍िश्व व्यापार संगठन (WTO) की भेदभावपूर्ण नीत‍ियों से भारतीय कृष‍ि और क‍िसान पहले से ही बुरी तरह प्रभाव‍ित हैं.

रही बात अमेर‍िका के जीएम सोयाबीन, मक्का और डेयरी प्रोडक्ट के आयात की तो इसके ल‍िए भारत सरकार ब‍िल्कुल तैयार नहीं द‍िखाई दे रही है. इसकी भी एक बड़ी वजह है. क्योंक‍ि कॉटन को छोड़कर अन्य क‍िसी जीएम फसल को भारत में उगाने तक की अनुमत‍ि नहीं है, ऐसे में उसे यहां मंगाकर खाने के ल‍िए अनुमत‍ि देने का सवाल ही नहीं पैदा होता. इसी तरह अमेरिका में गाय-भैंस जैसे पशुओं को नॉनवेज यानी मांसाहारी आहार भी ख‍िलाया जाता है. यह दोनों मुद्दे क‍िसानों और भारतीयों की आस्था से जुड़े हैं, जो बेहद संवेदनशील है. इसलिए ऐसे पशुओं के दूध से बने डेयरी प्रोडक्ट के ल‍िए भी भारत सरकार अपना बाजार नहीं खोलना चाहती है.

भारत के ल‍िए क्यों महत्वपूर्ण है अमेर‍िका 

डायरेक्टरेट जनरल ऑफ कमर्शियल इंटेलिजेंस एंड स्टैटिस्टिक्स (DGCIS) के मुताबिक, भारत के कृषि निर्यात में अमेरिका की हिस्सेदारी सबसे अध‍िक 17.76 फीसदी है. साल 2024-25 में अमेर‍िका ने भारत से 37,651 करोड़ रुपये के कृष‍ि उत्पादों का आयात किया. इतने बड़े कृष‍ि व्यापार को देखते हुए अमेर‍िका को भारत इग्नोर नहीं कर सकता. बहरहाल, वर्तमान में अमेरिका से आने वाले कई एग्री प्रोडक्ट पर भारत 100 फीसदी तक इंपोर्ट ड्यूटी वसूलता है. अमेरिका इस ड्यूटी यानी टैक्स को कम करने या हटाने के लिए भारत को दबाव में लेने की कोश‍िश कर रहा है.

कैसे प्रत‍िस्पर्धा करेंगे भारतीय क‍िसान?

अमेर‍िका अपने क‍िसानों को भारत के मुकाबले कहीं बहुत अध‍िक सरकारी मदद देता है. उसके क‍िसान भारतीय क‍िसानों के मुकाबले ज्यादा जमीन और पैसे वाले भी हैं. इसके बावजूद अमेरिका चाहता है कि भारत वहां के जीएम सोयाबीन, मक्का, सेब, अन्य फलों, ड्राई फ्रूट्स और डेयरी उत्पाद पर आयात शुल्क कम कर दे, ताक‍ि भारत के बाजार में उसके उत्पाद सस्ते होकर जगह बना सकें. लेकिन, भारत सरकार इस मांग को स्वीकार करने को लेकर असमंजस में फंसी हुई है, क्योंकि इन उत्पादों के सस्ते आयात से देश के करोड़ों छोटे किसानों की जीव‍िका संकट में पड़ सकती है.

बड़ा सवाल यह है क‍ि अमेर‍िका से सस्ता मक्का आयात होगा तो भारत के क‍िसानों को कैसे सही दाम म‍िलेगा? अमेर‍िका की सोयाबीन भारत के बाजारों में डंप की जाएगी तब उन क‍िसानों का क्या हाल होगा जो आज भी इसके न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी के ल‍िए तरस रहे हैं? जाह‍िर है क‍ि जब अमेर‍िका से सस्ते कृष‍ि उत्पाद भारतीय बाजार में आएंगे तो यहां के क‍िसान प्रत‍िस्पर्धा से बाहर हो जाएंगे. 

भारतीय क‍िसानों के साथ छल 

डब्ल्यूटीओ की स्थापना के साथ ही इसका कृषि समझौता  (AOA) भी 1 जनवरी 1995 को ही लागू हो गया था, ज‍िसमें भारत सरकार के हाथ बांध द‍िए़ गए थे. उस समझौते में ऐसे प्रावधान हैं ज‍िनकी वजह से आज भी भारतीय किसानों के साथ नाइंसाफी का स‍िलस‍िला जारी है. बहरहाल, नई द‍िल्ली स्थ‍ित सेंटर फॉर डब्ल्यूटीओ स्टडीज के आंकड़े बताते हैं क‍ि अमेर‍िका में लोगों की खेती पर न‍िर्भरता भारत के मुकाबले बहुत कम है. यही नहीं, वहां के क‍िसानों के पास जमीन और सरकारी मदद भारत से ज्यादा है. ऐसे में दोनों देशों के क‍िसानों को एक तराजू में तोलना ठीक नहीं होगा. इसील‍िए कृष‍ि से जुड़े क‍िसी भी पहलू पर लिया गया एक गलत न‍िर्णय करोड़ों क‍िसानों को बुरी तरह से प्रभाव‍ित कर सकता है. इसील‍िए भारत सरकार इस मामले में बहुत सतर्कता से काम ले रही है. 

भेदभाव वाली पॉल‍िसी 

भारत द्वारा सालाना दी जाने वाली प्रत‍ि क‍िसान सब्सिडी अमेरिका जैसे देशों की तुलना में बेहद कम है. भारत सरकार 2018-19 के दौरान प्रति किसान महज 282 डॉलर की सब्सिडी दे रही थी, जबकि 2016 के दौरान ही अमेरिका में प्रति किसान 61,286 डॉलर की सब्सिडी मिल रही थी. इसके बावजूद डब्ल्यूटीओ भारत पर कृषि सब्स‍िडी कम करने और किसानों को एमएसपी तक न देने का दबाव बनाता रहता है. विकसित देशों का ऐसा मानना है कि अगर भारत अपने किसानों को ज्यादा सरकारी सहयोग यानी सब्सिडी देगा तो इसका असर वैश्व‍िक कृषि कारोबार पर पड़ेगा. जिससे उनके हित प्रभावित होंगे.

भारत सरकार, डब्ल्यूटीओ और व‍िकस‍ित देशों की ऐसी भेदभावपूर्ण नीत‍ियों का व‍िरोध करती रही है. इसके बावजूद अब तक डब्ल्यूटीओ का एग्रीकल्चर एग्रीमेंट नहीं बदला गया है. नतीजा यह है क‍ि आज भी भारत के कृष‍ि मंत्री को संसद में एमएसपी पर डब्ल्यूटीओ द्वारा थोपी गई शर्तों की बात करनी पड़ रही है. डब्ल्यूटीओ पॉल‍िसी प्रति किसान के आधार पर सब्सिडी को लेकर विचार ही नहीं करती है.  

देसी बीजों पर संकट 

भारतीय कृष‍क समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष कृष्णवीर चौधरी का कहना है क‍ि अमेर‍िका अपने जीएम सोयाबीन और मक्का भारत में डंप करके यहां की कृष‍ि और क‍िसान दोनों को तबाह करना चाहता है. भारत में इस समय भी सोयाबीन और मक्का किसानों को एमएसपी ज‍ितना भाव नहीं म‍िल रहा है. ऐसे में जब अमेर‍िका का सोयाबीन और मक्का यहां आएगा तो दाम की क्या दुर्गत‍ि होगी, इसका अंदाजा लगाना मुश्क‍िल है.

चौधरी के मुताब‍िक जीएम सोयाबीन और मक्का आयात हुआ तो उसके बीजों से क्रॉस पॉलिनेशन का खतरा पैदा हो जाएगा. उससे स्वदेशी बीज बर्बाद हो सकते हैं. अमेर‍िका में भारी सरकारी सपोर्ट लेकर वहां का कारपोरेट क‍िसान खेती कर रहा है, दूसरी ओर भारत में खेती करने वाले लोग गरीब हैं. ऐसे में मुकाबले के ल‍िए दोनों को एक साथ कैसे खड़ा क‍िया जा सकता है?

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