नकली खाद-बीज और दवाई के खिलाफ क्या हैं कानून, कार्रवाई को लेकर क्यों सख्त हुई सरकार?

नकली खाद-बीज और दवाई के खिलाफ क्या हैं कानून, कार्रवाई को लेकर क्यों सख्त हुई सरकार?

देश में नकली खाद-बीज और दवाओं को लेकर कानून पहले से है, लेकिन सजा ऐसा नहीं है कि गलत करने वालों में डर पैदा करे. ऐसे लोगों के खिलाफ इतनी सख्त कार्रवाई नहीं होती या ऐसी सजा नहीं मिलती जिससे कि वे अगली बार गलती करने से परहेज करें. यही वजह है कि देश में नकली दवा और खाद-बीज का करोड़ों का बाजार हावी है.

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क‍िसान तक
  • Noida,
  • Aug 20, 2025,
  • Updated Aug 20, 2025, 7:05 AM IST

अभी हाल की घटना है जब कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान खुद सोयाबीन के एक खेत में उतरे और किसान का दुखड़ा सुना. किसान ने बताया कि पूरा पैसा खर्च कर उसने खरपतवार की दवाई खरीदी थी. खेत में दवाई का छिड़काव भी पूरी सावधानी से की. मगर पूरी सोयाबीन की फसल जल गई. यानी जलना था खरपतवार को और जल गई सोयाबीन की फसल. किसान पर इससे बड़ी मार क्या हो सकती है. कृषि मंत्री को सूचना मिली और उन्होंने खेत का दौरा किया. आकस्मिक निरीक्षण में पाया कि वह दवाई नकली थी जिसे असली के नाम पर बेचा गया था. कृषि मंत्री ने तत्काल इस पर कार्रवाई का आदेश दिया और नकली दवा बनाने वाली कंपनी पर मुकदमा हुआ. सवाल है कि ऐसी कंपनियों को इतनी हिम्मत कहां से मिलती है कि वे खेती-बाड़ी और किसानों के साथ भी धोखा कर देते हैं. इसका जवाब है लचर कानून.

अगर खाद, बीज, कीटनाशक और खरपतवारनाशी दवाओं को लेकर कोई सख्त कानून होता तो कंपनियां ऐसा काम नहीं करतीं जिससे किसान की पूरी फसल ही चौपट हो जाए. अगर कंपनियां ऐसा काम नहीं करतीं तो केंद्रीय कृषि मंत्री को खेत में उतरकर कार्रवाई करने के लिए आदेश देने की नौबत नहीं आती. तो आइए जान लेते हैं कि क्या कानून है जो ऐसी स्थिति में किसानों की मदद करता है. अगर किसानों की मदद नहीं होती तो उस कानून में क्या खामियां हैं, ये भी जान लेते हैं.

नकली खाद-बीज, कीटनाशक का कानून

देश में फिलहाल नकली या मिलावटी कीटनाशकों की समस्या से निपटने के लिए कानूनों को मज़बूत बनाने पर काम हो रहा है, जिसके बारे में कृषि मंत्री बयान भी दे चुके हैं. नकली या मिलावटी दवाएं कृषि क्षेत्र के लिए एक गंभीर समस्या हैं जिससे लाखों किसान जूझ रहे हैं. हालांकि इसका कानून भी मौजूद है, मगर उसका अनुपालन कमजोर है जिसके चलते गड़बड़ी करने वाले या तो पकड़े नहीं जाते या छूट जाते हैं. मौजूदा कीटनाशक अधिनियम, 1968 की हल्की सजा के लिए आलोचना की जाती है, जिससे नकली कीटनाशकों के उत्पादन और बिक्री पर कोई रोक नहीं लगी है. इसलिए कीटनाशक प्रबंधन विधेयक, 2020 जैसे नए कानून का मकसद अधिक जुर्माने और जेल सहित कड़ी सजा लागू करना और नकली कीटनाशकों से प्रभावित किसानों को मुआवजे के लिए एक फंड बनाना है.

मौजूदा कानून और चुनौतियां

कीटनाशक अधिनियम, 1968: यह अधिनियम भारत में कीटनाशकों को नियंत्रित करने वाला प्रमुख कानून है, लेकिन इसके सजा के प्रावधान कमजोर माने जाते हैं. 
आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955: इस अधिनियम का उपयोग घटिया, नकली या मिलावटी खादों और कृषि रसायनों की बिक्री को रोकने के लिए किया जाता है.

क्यों लचर है कानून

हाल ही में एक संसदीय पैनल ने गलत ब्रांड वाले कीटनाशकों से संबंधित अपराधों में दोष तय करने की कम दर के बारे में बताया है, जो कड़ी सजा और उसके अनुपालन की जरूत के बारे में बताता है. नकली कीटनाशक फसलों की पैदावार को काफी प्रभावित कर सकते हैं, जिससे किसानों को रुपये-पैसे का नुकसान होता है और इससे पूरा उत्पादन प्रभावित होता है. इसे देखते हुए कड़ी सजा की सिफारिश की गई है.

नए कानून में क्या है

कीटनाशक प्रबंधन विधेयक, 2020: इस विधेयक में महत्वपूर्ण बदलावों का प्रस्ताव है, जिनमें शामिल हैं: नकली कीटनाशकों से संबंधित अपराधों के लिए कठोर सजा, जिसमें अधिक जुर्माना और जेल शामिल है. नकली कीटनाशकों से प्रभावित किसानों को मुआवज़ा देने के लिए एक खास फंड का निर्माण करना. कीटनाशकों के उत्पादन, व्यापार और उपयोग को रेगुलेट करने के लिए एक केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड बनाने का प्रस्ताव.

हरियाणा सरकार का प्रस्ताव

हरियाणा सरकार ने कीटनाशक अधिनियम में बदलाव का प्रस्ताव रखा है, जिसके तहत नकली बीजों और कीटनाशकों की बिक्री पर सजा बढ़ाई जाएगी. साथ ही जेल और जुर्माने का भी प्रावधान है. क्वालिटी नियंत्रण उपायों को मजबूत करने के प्रयास जारी हैं, जिनमें कीटनाशकों के नमूनों की जांच बढ़ाना और लेबल पर क्यूआर कोड के माध्यम से बेहतर पता लगाना शामिल है.

नकली उत्पादों का प्रभाव

फिक्की की ओर से 2015 में किए गए एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया था कि नकली उत्पाद भारत में कृषि उत्पादन में 1 करोड़ टन से अधिक की कमी करते हैं. साथ ही इन नकली कीटनाशकों का दाम हर साल बढ़ता जा रहा है जिसका सीधा असर किसानों की जेब पर पड़ता है. अवैध कीटनाशकों का रेट सालाना लगभग 20 परसेंट बढ़ने का अनुमान है.

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