Bharat Jodo Yatra: क्या कांग्रेस को क‍िसान पॉल‍िट‍िक्स की पिच पर कामयाब कर पाएंगे राहुल गांधी?

Bharat Jodo Yatra: क्या कांग्रेस को क‍िसान पॉल‍िट‍िक्स की पिच पर कामयाब कर पाएंगे राहुल गांधी?

भारत जोड़ो यात्रा में आख‍िर क्यों कृष‍ि और क‍िसानों के मुद्दे पर इतना फोकस कर रहे हैं राहुल गांधी? क्या ह‍िंदू-मुसलमान, अगड़े-प‍िछड़े और दल‍ित-अल्पसंख्यक जैसे ट्रैक से हटकर अब कांग्रेस सत्ता में पहुंचने की लड़ाई क‍िसानों के जर‍िए जीतना चाहती है. स‍ियासत में क‍िसान क्यों इतने अहम हैं.  

भारत जोड़ो यात्रा के दौरान चारा काटने वाली मशीन चलाते राहुल गांधी (Photo-Twitter).
ओम प्रकाश
  • New Delhi ,
  • Jan 12, 2023,
  • Updated Jan 12, 2023, 2:38 PM IST

राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा पश्च‍िम यूपी और हर‍ियाणा होते हुए अब पंजाब पहुंच चुकी है. ये वही बेल्ट है, जिसने कुछ सालों के अंदर देश की राजनीति को तेजी से बदला है और किसानों को केंद्र में ला दिया है. जाहिर है, भारत जोड़ो यात्रा के इस पड़ाव में अगर कांग्रेस नेता राहुल गांधी की जुबान पर किसान का ही नाम है तो चौंकने की जरूरत नहीं है. अब प्रश्न ये उठता है क‍ि जिस किसान राजनीति को कांग्रेस पांच दशक पहले हाशिये पर रख चुकी है, क्या अब राहुल गांधी उस परिपाटी को बदल पाएंगे? राजनीत‍िक व‍िश्लेषकों का कहना है क‍ि राहुल गांधी को किसान पॉलिटिक्स करने के लिए कई कठोर प्रश्नों से टकराना होगा और वर्तमान सरकार ने अपनी किसान नीतियों से जो लकीर खींच दी है, उससे आगे जाना होगा.
 
पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा से लेकर पंजाब तक की सत्ता में खेत‍िहरों का मजबूत दखल है. यही वजह है कि आजादी के बाद का सबसे बड़ा क‍िसान आंदोलन इसी क्षेत्र से निकला और इस आंदोलन ने मोदी सरकार को तीनों कृष‍ि कानून वापस लेने पर विवश कर दिया. तीनों कृषि कानूनों की वापसी उचित कदम था या अनुचित, इस पर अलग से बहस हो सकती है, लेकिन मोदी सरकार के दो कदम ऐसे हैं, जिन्होंने किसानों को केंद्र में ला दिया. पहला- तीन कृषि कानूनों को लाने का फैसला, जिसे किसानों के दबाव में वापस लेना पड़ा और दूसरा- किसानों की इनकम डबल करने का संकल्प. 

क्या क‍िसानों के ल‍िए रोडमैप है? 

भारत जोड़ो यात्रा का दूसरा चरण क‍िसानों के मुद्दों के इर्द-गिर्द घूम रहा है. राहुल गांधी इस बेल्ट में लगातार क‍िसान नेताओं से म‍िलकर खेती-क‍िसानी के मसलों पर सरकार को घेरने की कोश‍िश में जुटे हुए हैं. उन्होंने कृषि कानूनों के व‍िरोध से चमके किसान नेता राकेश टिकैत से लंबी मुलाकात की. इसके बाद वो 16 जनवरी को कृष‍ि नीत‍ि व‍िशेषज्ञ देव‍िंदर शर्मा से भी म‍िलने वाले हैं. उन्हें भी अपनी यात्रा में शाम‍िल होने का न्यौता द‍िया था. लेक‍िन, असली सवाल यह है क‍ि कांग्रेस 'किसान पिच' पर कितनी कामयाब होगी? ज‍िस पार्टी के 55 वर्ष के शासनकाल में क‍िसानों आगे नहीं बढ़ पाए, क्या अब उसके वर्तमान खेवनहार राहुल गांधी अन्नदाताओं की तरक्की के ल‍िए कोई रोडमैप पेश कर रहे हैं? 

मोदी सरकार और क‍िसान 

मोदी सरकार प‍िछले चार साल में पीएम क‍िसान स्कीम के तहत 2.2 लाख करोड़ रुपये डायरेक्ट क‍िसानों के बैंक अकाउंट में ट्रांसफर कर चुकी है. खाद सब्स‍िडी 70 हजार करोड़ से बढ़कर 2.5 लाख करोड़ रुपये होने वाली है, ज‍िसका बोझ सरकार खुद उठा रही है. इसके बावजूद क‍िसी न क‍िसी मुद्दे को लेकर क‍िसान नेताओं में सरकार के प्रत‍ि असंतोष है. वो सरकार के किसान हितैषी होने के दावों पर सवाल उठा रहे हैं. एमएसपी गारंटी की मांग और क‍िसानों की आय डबल करने के मुद्दे को लेकर क‍िसान संगठन सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं.

राहुल गांधी का क‍िसान कार्ड  

इतनी ठंड में कांग्रेस नेता राहुल गांधी स‍िर्फ टी-शर्ट में सड़कों पर उतर रहे हैं. बारिश की परवाह किए बिना जनसभाओं को भी संबोधित कर चुके हैं. उनके इस तेवर की जमकर चर्चा हो रही है. खास तौर पर कांग्रेस राहुल गांधी को रॉकस्टार की तरह पेश कर रही है. राहुल गांधी से भी जब सवाल क‍िया जाता है तब वो क‍िसानों की बात करते हैं. वह कहते हैं कि मेरे साथ गरीब किसान के बच्चे चलते हैं. वो फटी टीशर्ट में चलते हैं. 

बावजूद इसके वो ये नहीं बता पाते कि आज की तारीख में भी खुद किसान बिना जैकेट के क्यों घूम रहा? उनकी हालत कब सुधरेगी, कैसे सुधरेगी. मतलब राहुल गांधी क‍िसानों की खराब स्थ‍ित‍ि का ज‍िक्र तो करते हैं, क‍िसानों को लामबंद करने की कोश‍िश तो कर रहे हैं, लेक‍िन अगर आने वाले समय में उनकी पार्टी की सरकार बन भी गई तो क‍िसानों को एमएसपी की गारंटी म‍िलेगी या नहीं, इसे लेकर साफ-साफ कुछ नहीं बोल रहे. 

राजनीति के गणित में किसान?

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना कि राजनीत‍ि में संख्या बल सबसे अहम होता है. देश में करीब 14 करोड़ किसान परिवार हैं. ज‍िसका मतलब करीब 50 करोड़ वोटर किसान परिवार से आते हैं. ये वो लोग हैं जो गांवों में रहते हैं और सबसे ज्यादा वोट करते हैं. बावजूद इसके आजादी के बाद देश में चौधरी चरण सिंह और महेंद्र सिंह टिकैत के अलावा कोई सर्वमान्य किसान नेता नजर नहीं आता और पार्टियों के वरीयता क्रम में खेती-किसानी का एजेंडा ऊपर नहीं आता. विश्लेषक मानते हैं कि इसके पीछे की वजह किसानों का संख्या बल ही है. ह‍िंदू-मुसलमान, अगड़ा-प‍िछड़ा, दल‍ित-अल्पसंख्यक जैसे आजमाए हुए ट्रैक हैं, जो सत्ता की चाबी बनते हैं. राजनीति के गणित में किसान वोट फिट नहीं बैठते, लेकिन अब स्थितियां बदल रही हैं.

राहुल गांधी भी अपनी यात्रा के दूसरे चरण में कृष‍ि और क‍िसानी पर जोर दे रहे हैं. अपनी किसान हितैषी इमेज बनाने में जुटे हुए हैं. इस इमेज को बनाने के ल‍िए पंजाब, हर‍ियाणा से अच्छा भला कौन क्षेत्र होगा. वोट की न्यूमेरिकल स्ट्रेंथ के बावजूद सियासी तौर पर किसान सत्ताधारी और विपक्ष दोनों में से किसी के लिए अहम नहीं रहे हैं. लेकिन इनसे कोई पार्टी नाराजगी मोल नहीं लेती. भले ही कोई दल क‍िसानों के ल‍िए मन से काम करे या न करे, लेकिन किसानों की बात उसे करनी पड़ती है. 

कर्जमाफी की याद 

फ‍िलहाल, राहुल गांधी अपनी जनसभाओं में बता रहे हैं क‍ि उनकी सरकार ने क‍िसानों के ल‍िए क्या-क्या क‍िया है. राहुल ने 4 जनवरी 2023 को बड़ौत के छपरौली चुंगी के पास नुक्कड़ सभा की. छपरौली क‍िसानों के मसीहा कहे जाने वाले चौधरी चरण स‍िंह का गढ़ रहा है. यहां उन्होंने मोदी सरकार पर न‍िशाना साधते हुए कहा क‍ि अरबपतियों का लाखों करोड़ों का कर्जा माफ कर देंगे और किसान का कर्जा माफ नहीं कर सकते. यूपी के किसान यूपीए सरकार में हमारे पास आए. हमने स‍िर्फ दस दिन में 70 हजार करोड़ का कर्जा माफ किया.

इनकम डबल करने का मुद्दा

याद कीज‍िए, 2019 के चुनाव से पहले सरकार विरोधी किसान आंदोलनों के बावजूद किसानों को सालाना 6000 रुपये की मदद देकर बीजेपी ने चुनावी सफलता की फसल काटी थी. उससे पहले सरकार और बीजेपी ने 2016 से किसानों की आय दोगुना करने को मुद्दा बनाकर उसकी मार्केटिंग की. सरकार ने 2022 तक क‍िसानों की आय डबल करने का टारगेट रखा था. 31 द‍िसंबर 2022 को इसकी म‍ियाद खत्म होते ही इस मुद्दे को राहुल गांधी ने लपक ल‍िया है.

यात्रा के दौरान हर‍ियाणा में उन्होंने कहा, "किसानों की आय दोगुनी नहीं बल्क‍ि कम हुई है. किसानों को डेढ़ गुना एमएसपी नहीं, महंगाई मिली. देश में कर्जमाफी किसानों को नहीं, बस अरबपतियों को मिली. प्रधानमंत्री ने काले कानून और निर्यात नीति को हथियार बनाकर, किसानों पर चौतरफा आक्रमण किया. किसानों को पीछे छोड़ कर, भारत आगे नहीं बढ़ सकता." 

क‍िसानों पर इमोशनल कार्ड 

राहुल गांधी कह रहे हैं क‍ि 3000 हजार किलोमीटर की यात्रा में हजारों किसानों के बच्चे मिले, मगर वे खेती करने को तैयार नहीं हैं. वे किसान के बेटे हैं, लेकिन कोई किसान बनने को राजी ही नहीं दिखा. ऐसे में पता चल रहा है कि देश में किसानों के हालात कैसे हैं. वे चाहते हैं कि अगले 10 से 15 साल में ऐसे हालात बने कि किसान का बेटा भी किसान बनने को राजी हो. इन इमोशनल बातों के जर‍िए राहुल गांधी यह संदेश देना चाहते हैं क‍ि कांग्रेस किसानों से जुड़े मुद्दों को हर हाल में हल करेगी. लेक‍िन, वो यह सब कैसे करेंगे इसका कोई प्लान नहीं बता रहे. 

एमएसपी गारंटी पर गोलमोल 

अब हरियाणा के कुरुक्षेत्र में राहुल गांधी की प्रेस कॉन्फ्रेंस को ही लीज‍िए. उन्होंने कहा क‍ि किसानों पर चौतरफा हमला हो रहा है. कृषि कानून किसानों को मारने के हथियार थे. कांग्रेस सरकार में किसानों की रक्षा होगी. लेक‍िन, वो एमएसपी और स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट पर कुछ भी साफ-साफ नहीं बोले क‍ि वो मोदी सरकार से अलग क्या करेंगे. एमएसपी और स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट लागू करने के सवाल पर राहुल गांधी ने कहा कि जो करना होगा, वो सबसे चर्चा करने के बाद घोषणापत्र में होगा. एमएसपी एक गंभीर मुद्दा है, इस पर चर्चा करेंगे. मैं यूं ही कुछ ऐलान नहीं करता.

कांग्रेस और क‍िसान: अतीत से आज तक 

कांग्रेस पर '24 अकबर रोड' नामक किताब लिखने वाले वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई का कहना है क‍ि राहुल गांधी को सत्तर के दशक के बाद वाली कांग्रेस की तरह क‍िसानों के मुद्दे पर स‍िर्फ रस्म आदायगी नहीं करनी चाह‍िए. क‍िसानों के मुद्दे को स्पष्टता से बोलना चाह‍िए क‍ि वो उनके ल‍िए क्या करेंगे. एमएसपी की गारंटी देंगे या नहीं. स्वाम‍ीनाथन कमेटी की र‍िपोर्ट लागू करेंगे या नहीं. स्पष्टता रहेगी तो फायदा म‍िलेगा. 

दरअसल साल 1969 तक कांग्रेस में क‍िसान नेताओं का मजबूत दखल रहा है. इसमें उत्तर से दक्षिण तक के क‍िसान नेता शाम‍िल रहे. पुराने दौर में चौधरी चरण और लाल बहादुर शास्त्री जैसे क‍िसानों की पैरोकारी करने वाले लोग थे. लेक‍िन, बाद में कांग्रेस में क‍िसान नेता हाश‍िए चले गए. पार्टी के अंदर उनकी आवाज उठाने वाले बहुत कम लोग बचे. आज की बात करें तो कांग्रेस में 10 क‍िसान नेताओं के नाम भी कोई नहीं बता पाएगा. क्योंक‍ि, सत्तर के दशक के बाद कांग्रेस ने क‍िसानों को छोड़कर ब्राह्मण, दल‍ित और माइनॉर‍िटी पर फोकस क‍िया. 

वर्तमान में कांग्रेस में किसानों की कोई मजबूत लॉबी नहीं है. अब राहुल गांधी क‍िसानों की प‍िच पर चलकर क‍िसान पॉल‍िट‍िक्स को धार देने में जुटे हुए हैं. वो ऐसा कर रहे हैं तो इसमें कहीं न कहीं योगेंद्र यादव की बड़ी भूम‍िका है. इससे कुछ फायदा जरूर होगा. लेक‍िन, स‍ियासत की इस प‍िच पर पूरी सफलता तभी म‍िलेगी जब आप स्पष्ट बताएंगे क‍ि वर्तमान सरकार क्या नहीं कर रही है और आप सत्ता में लौटने के बाद क्या करने वाले हैं. 

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