भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा कपास उत्पादक देश है. हम कभी पूरी दुनिया को कपास बेचते थे, लेकिन आज दूसरे देशों से कपास खरीद रहे हैं. ये कोई गर्व की बात नहीं बल्कि भारत में कपास की खेती के पतन की एक कड़वी सच्चाई है. जो बताती है कि हमने अपने किसानों को कितना अनदेखा किया है. आज 7 अक्टूबर है, जिसे वर्ल्ड कॉटन डे के तौर पर मनाया जाता है. यह भारत के नीति निर्माताओं के लिए मंथन का दिन है. दुनिया कपास और कपास की खेती का जश्न मना रही है, लेकिन क्या भारत इसका जश्न मना पा रहा है?
भारत को कभी ‘कपास का राजा’ कहा जाता था. हजारों सालों से यहां कपास की खेती होती आई है. अंग्रेज़ कपास लूटकर ले गए, लेकिन भारत फिर भी टिका रहा. लेकिन आज? अपने देश में पैदा होने वाला कपास ही किसानों को बर्बाद कर रहा है. ये हालत खुद बनाई गई है- लापरवाही, खराब नीतियां और जिम्मेदार लोगों की चुप्पी. टेक्नोलॉजी की कमी और किसानों को मिलने वाला कम दाम भारत को कपास के निर्यातक से आयातक देश बना दिया है.
कपास की खेती से किसानों का मोहभंग हो रहा है. क्योंकि अब कई वजहों से इसकी खेती किसानों के लिए लाभकारी नहीं लग रही है. गुलाबी सुंडी इसके सामने बड़ी चुनौती बनी हुई है. बीटी कॉटन जब भारत में आया था तब बड़े-बड़े दावे किए गए थे कि इस पर गुलाबी सुंडी नहीं लगेगा और कीटनाशकों पर खर्च कम होगा. लेकिन अब इसका उल्टा हो रहा है. गुलाबी सुंडी ने बीटी कॉटन को अपना शिकार बना लिया है और किसान कीटनाशकों पर होने वाले खर्च से परेशान हैं.
किसी तरह से फसल अच्छी हो जाए तो दाम की कोई गारंटी नहीं है. दाम एमएसपी से ऊपर चला जाए तो फिर टेक्सटाइल इंडस्ट्री के पेट में दर्द हो जाता है और जब दाम घट जाए तो फिर कोई माई-बाप नहीं होता. इस वक्त सरकार ने टेक्सटाइल इंडस्ट्री को खुश करने के लिए दिसंबर तक के लिए कॉटन की इंपोर्ट ड्यूटी जीरो कर दी है, जिससे दाम गिर गए हैं. इंडस्ट्री दूसरे देशों से कॉटन मंगा रही है. इसी तरह की नीतियों का नतीजा है कि भारत में कपास की खेती और उत्पादन दोनों में गिरावट देखी जा रही है.
कपास की खेती करना अब घाटे का सौदा बन चुका है. किसान कर्ज़ में डूब रहे हैं, आत्महत्या कर रहे हैं, और नेताओं के भाषणों में “अन्नदाता” बनने के अलावा उन्हें कुछ नहीं मिलता. अगर भारत को कपास के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनना है तो किसानों को अच्छी तकनीक अच्छे बीज उपलब्ध करवाना होगा. अच्छा दाम मिले बिना कोई किसान इसकी खेती नहीं बढ़ाएगा. आयात पर रोक लगे और घरेलू उत्पादन को बढ़ावा मिले तब जाकर किसानों की दिलचस्पी इसकी खेती के प्रति बढ़ेगी.
World Cotton Day हमें याद दिला रहा है कि जो देश दुनिया को कपास भेजजा था, वो अब दूसरों से मांग रहा है. ये सिर्फ नीति की हार नहीं, ये किसान और कृषि व्यवस्था की बर्बादी का सबूत है. अगर अब भी नहीं चेते, तो आने वाले समय में हम सिर्फ इतिहास में पढ़ेंगे कि "भारत कभी कपास में आत्मनिर्भर था."
पहला कपास दिवस 7 अक्टूबर, 2019 को मनाया गया था. इसकी शुरुआत चार देशों: बेनिन, बुर्किना फ़ासो, चाड और माली ने की थी. उन्होंने 2019 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में विश्व कपास दिवस की स्थापना का आधिकारिक प्रस्ताव रखा था. 2019 से, यह दिवस हर साल आज ही के दिन मनाया जाता रहा है.
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