Himachal Pradesh: हाथों के हुनर ने बनाया आत्मनिर्भर, बांस के प्रोडक्ट बनाकर बेचते हैं दृष्टिबाधित मनोज कुमार

Himachal Pradesh: हाथों के हुनर ने बनाया आत्मनिर्भर, बांस के प्रोडक्ट बनाकर बेचते हैं दृष्टिबाधित मनोज कुमार

हिमाचल प्रदेश के मंडी के रहने वाले मनोज कुमार देख जन्म से देख नहीं सकते हैं. लेकिन हाथों के हुनर ने उनको आत्मनिर्भर बना दिया है. मनोज कुमार बांस के उत्पाद बनाते हैं और बेचते हैं. मार्केट में उनकी बनाई टोकरियों और सूप की काफी डिमांड है. मनोज कुमार ने ये हुनर अपने पिता से सीखा था.

Manoj Kumar makes products from bambooManoj Kumar makes products from bamboo
क‍िसान तक
  • नई दिल्ली,
  • Apr 28, 2025,
  • Updated Apr 28, 2025, 1:15 PM IST

हिमाचल प्रदेश के मंडी के रहने वाले मनोज कुमार जन्म से देख नहीं सकते हैं. लेकिन उनके हाथों के हुनर को दुनिया सलाम कर रही है. उनके हुनर की हर कोई तारीफ कर रहा है. मनोज ऐसी कारीगरी को जिंदा बचाए हुए हैं, जो जगह-जगह विलुप्त हो रही है. दृष्टिबाधित मनोज ने ना सिर्फ इस कला की मदद से खुद को आत्मनिर्भर बनाया, बल्कि विलुप्त होती बांस की कारीगरी को बचाकर भी रखा है.

बांस से उत्पाद बनाते हैं मनोज कुमार-

एक समय था, जब पहाड़ों में घर से लेकर खेतों तक में बांस से बने उत्पादों का इस्तेमाल होता था. लेकिन जब मशीनों का दौर शुरू हुआ तो इसकी डिमांड कम होने लगी. अब हालात ऐसे बन गए हैं कि बांस के उत्पादों का इस्तेमाल शौक के लिए किया जाता है. इसका असर इसकी कारीगरी पर भी पड़ा है. ये कला विलु्प्त होती जा रही है. लेकिन मंडी के रहने वाले मनोज कुमार इस कला को जिंदा रखे हुए हैं. वो आज भी बांस के उत्पाद बनाते हैं. वो टोकरियां, चंगेर और सूप बनाते हैं. उनके इस उत्पाद की इलाके में काफी डिमांड है.

मंडी के रहने वाले हैं मनोज-

दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के मुताबिक मनोज कुमार मंडी जिले के भद्रवाड पंचायत में रापुड़ गांव के रहने वाले हैं. मनोज बांस के पुश्तैनी कारीगर हैं. वो टोकरी, चंगेर और सूप बनाते हैं. उनके उत्पादों की डिमांड काफी ज्यादा है. मनोज कुमार देख नहीं सकते हैं. वो दृष्टिबाधित हैं. लेकिन इसके बावजूद उन्होंने अपने हुनर से खुद को आत्मनिर्भर बनाया है. मनोज की कारीगरी का हर कोई कायल है.

पिता ने सिखाया था हुनर-

बांस की कारीगरी मनोज कुमार की फैमिली का पुश्तैनी धंधा है. उनके पिता रोशन लाल भी बांस के कारीगर थे. वो भी बांस के उत्पाद बनाते हैं. उस समय उनके उत्पादों की भी खूब डिमांड होती थी. मनोज कुमार ने भी अपने पिता से ये हुनर सीखा है. मनोज कुमार के पिता नहीं हैं. लेकिन उनका सिखाया हुनर ही मनोज की फैमिली के भरण-पोषण का जरिया है.

बांस से उत्पाद बनाना काफी कठिन काम है. इसमें बार-बार हाथ कटने और चोट लगने का खतरा बना रहता है. लेकिन मनोज कुमार इसे काफी अच्छे से करते हैं. मनोज के गांववालों का मानना है कि सरकार से मनोज को मदद मिलनी चाहिए, ताकि इस हुनर को बढ़ावा मिल सके और विलुप्त होती बांस की कारीगरी को बचाया जा सके.

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