इंडस्ट्री की मौज, किसानों का बेड़ागर्क: जीरो इंपोर्ट ड्यूटी के बाद चौपट होगी कपास की खेती?

इंडस्ट्री की मौज, किसानों का बेड़ागर्क: जीरो इंपोर्ट ड्यूटी के बाद चौपट होगी कपास की खेती?

अमेरिका को खुश करने के लिए कपास पर इंपोर्ट ड्यूटी को खत्म किया गया है. भारत ने सोयाबीन और डेयरी सेक्टर में ना सही, कपास के क्षेत्र में अमेरिका को खुली छूट दे दी है. इससे अमेरिका का कपास भारत के बाजारों में भरेगा, और देसी कपास को कोई पूछने वाला नहीं होगा.

बीटी कॉटन की बुवाईबीटी कॉटन की बुवाई
क‍िसान तक
  • Noida,
  • Aug 20, 2025,
  • Updated Aug 20, 2025, 2:53 PM IST

भारत सरकार ने 30 सितंबर तक कपास की इंपोर्ट ड्यूटी जीरो कर दी है. यानी विदेशों से भारत आने वाला कपास पूरी तरह आयात शुल्क से मुक्त होगा. अभी तक इस पर 11 फीसद ड्यूटी लगती थी. जब भी कोई सरकार आयात शुल्क खत्म करती है तो उसकी कीमत किसी न किसी वर्ग को चुकानी होती है. हालांकि किसी वर्ग को फायदा भी होता है. भारत के साथ भी यह बात लागू है. यहां किसानों को कीमत चुकानी होगी और मौज में होंगे उद्योगपति और व्यापारी. कैसे, आइए जानते हैं. उससे पहले एक बात समझ लें कि आयात शुल्क खत्म करना अमेरिकी टैरिफ के बाद सबसे पहला और बड़ा असर बताया जा रहा है. 

आयात शुल्क खत्म करने का फैसला अमेरिका और भारत के कपड़ा उद्योगों को देखते हुए लिया गया है. इस फैसले से अमेरिका का कपास भारत के बाजारों में सस्ते में भर जाएगा जिसका सीधा फायदा यहां के उद्योगों को होगा. इस फैसले का सबसे खतरनाक असर किसानों पर पड़ेगा क्योंकि उनका माल पहले ही डंप हो रहा था. भाव सबसे निचले स्तर पर चले गए थे. ऊपर से गुलाबी सुंडी ने कपास की खेती को तहस नहस करके रखा है. ऐसे में जीरो इंपोर्ट ड्यूटी से अमेरिका, इंडस्ट्री और सरकार की तो मौज है, लेकिन किसानों का बेड़ा गर्क होना तय है.

इंपोर्ट ड्यूटी खत्म कर सरकार ने दिए ये संकेत

इंपोर्ट ड्यूटी यानी आयात शुल्क खत्म करने के दो संकेत हैं. पहला, भारत सरकार ने ट्रंप प्रशासन को यह जताने की कोशिश की है कि उसे अमेरिकी चिंता की फिक्र है. अमेरिका शुरू से बोलता रहा है कि भारत अपना बाजार उसके कृषि प्रोडक्ट के लिए खोले. ऐसे में भारत ने सोयाबीन और डेयरी प्रोडक्ट के लिए न सही, कपास के लिए जरूर खोल दिया है. दूसरा संकेत, भारत सरकार ने उन तमाम कपड़ा उद्योगों की चिंता की है जो अमेरिका के 50 फीसद टैरिफ से घबराहट में हैं. इन उद्योगों को लग रहा था कि अब उनका कपड़ा अमेरिका नहीं जाएगा बल्कि बांग्लादेश, वियतनाम और चीन का जाएगा. ऐसे में सरकार ने कपास की ड्यूटी खत्म कर उद्योग जगत की चिंता को कुछ हल्का किया है.

भारत में अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया का कपास

तकनीकी तौर पर कुछ बातों को समझ लेना जरूरी है. भारत अभी तक अमेरिका को रेडीमेड कपड़ों का सबसे बड़ा सप्लायर है. भारत के बने कपड़ों का सबसे बड़ा बाजार अमेरिका है. लेकिन अब यह तमगा हट जाएगा क्योंकि अमेरिका ने 50 फीसद टैरिफ लगा दिया है. इससे पहले यह ड्यूटी 9 से 13 परसेंट के बीच हुआ करती थी. दूसरी ओर, बांग्लादेश और वियतनाम जैसे देश हैं जिनका टैरिफ बढ़ने के बाद भी 20 परसेंट तक आयात शुल्क है. यहां तक कि चीन पर 30 परसेंट है. ऐसे में अमेरिका भारत से 50 परसेंट ड्यूटी देकर कपड़ा क्यों खरीदेगा? ये तो हुई अमेरिका को भारत से होने वाले निर्यात की.

अब अमेरिका से होने वाले कपास के आयात की बात जान लेते हैं. दरअसल, भारत एक ओर अमेरिका को सिले-सिलाए कपड़े निर्यात करता है तो दूसरी ओर अमेरिका से बहुत बड़ी मात्रा में कच्चा कपास आयात करता है. इसी तरह ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील और मिस्र से भी भारत में कपास आयात होता है. फिर इसी कपास से रेडीमेड कपड़े बनाए जाते हैं और अमेरिका में महंगे रेट पर बेचे जाते हैं. अमेरिका ने भारत के इस मुनाफा वाले धंधे पर ब्रेक लगा दिया है. अमेरिका को खुश करने के लिए भारत ने सितंबर तक ड्यूटी फ्री कर दिया है ताकि अमेरिका का कपास भारत में बड़ी मात्रा में पहुंचे. इससे भारत के बाजार अमेरिकी कपास से भरेंगे, अमेरिकी किसानों को फायदा होगा. लेकिन भारतीय किसानों की कीमत पर.

बहुत कुछ कहता है ये आंकड़ा

कपास का आयात मार्च 2024/25 के वित्तीय वर्ष में दोगुना से अधिक बढ़कर 1.2 बिलियन डॉलर हो गया, जो एक साल पहले 579 मिलियन डॉलर था. जिसमें ऑस्ट्रेलिया से 258 मिलियन डॉलर, अमेरिका से 234 मिलियन डॉलर, ब्राजील से 181 मिलियन डॉलर और मिस्र से 116 मिलियन डॉलर का आयात शामिल है. 

देश के किसानों का बेड़ागर्क तय

देश में कपास की खेती की हालत क्या है, इसे हाल में जारी खरीफ रकबे से समझा जा सकता है. कृषि मंत्रालय की ओर से जारी रकबे की रिपोर्ट बताती है कि लगातार दो हफ्ते से कपास की बुवाई घट रही है. इससे साफ है कि किसान कपास की खेती से भाग रहे हैं. क्यों भाग रहे हैं? जवाब है खेती की बढ़ती लागत और फायदे में गिरावट. जो कपास कभी 16 हजार रुपये से अधिक पर बिक रहा था, अभी किसानों को आधे दाम के लिए तरसना पड़ रहा है. इसकी वजह है देश में विदेशी कपास के आयात की भरमार जिसमें अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के कपास दोषी हैं. 

इन दो वजहों से किसान बदहाल

जब देश के कारोबारी विदेशी कपास खरीद कर कपड़े बनाएंगे तो देसी कपास कौन खरीदेगा. अभी कपास के दाम गिरने का सबसे बड़ा कारण यही है. ऊपर से गुलाबी सुंडी ने कपास को इतना बर्बाद किया है कि कोई दवा भी काम नहीं करती. इन दोनों वजहों से किसानों का मन खट्टा हो गया है. ऐसे में जब जीरो इंपोर्ट ड्यूटी पर भारत के बाजारों में अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील और मिस्र का कपास भरेगा तो भला हमारे किसानों का कपास कौन खरीदेगा. अंतत: किसान कपास से पिंड छुड़ाएगा. आगे कुछ ऐसा ही ट्रेंड नजर आ रहा है. 

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