Tariff War: ट्रंप के टैरिफ बम ने बढ़ाई हापुस किसानों और निर्यातकों की टेंशन, सरकार से बड़ी अपील

Tariff War: ट्रंप के टैरिफ बम ने बढ़ाई हापुस किसानों और निर्यातकों की टेंशन, सरकार से बड़ी अपील

अमेरिका भारत के आमों का एक बड़ा बाजार है. हापुस या अल्‍फान्‍सो के अलावा अब गुजरात का केसर भी यहां पर काफी मशहूर हो रहा है. इस साल केसर ने तो अमेरिका में लंबे समय से राज कर रहे हापुस को भी रिप्‍लेस कर दिया. वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल 2024 और जनवरी 2025 के बीच, भारत ने अमेरिका को 24.97 मिलियन डॉलर मूल्य के आमों का निर्यात किया.

अल्फोंसो आमअल्फोंसो आम
क‍िसान तक
  • New Delhi ,
  • Aug 20, 2025,
  • Updated Aug 20, 2025, 2:34 PM IST

अमेरिकी राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप ने पिछले दिनों ने भारत पर टैरिफ को बढ़ाकर 50 फीसदी तक कर दिया है. टैरिफ के बाद भारत से आने वाले कुछ देशों से आने वाले कृषि उत्पादों पर टैरिफ 50 फीसदी तक पहुंच गया है. ट्रंप के फैसले से महाराष्‍ट्र में हापुस आम उगाने वाले किसान और इसके निर्यातक इससे खासे निराश हैं. माना जा रहा है कि टैरिफ का सीधा असर कोंकण के आम और इससे जुड़े उद्योगों पर भी पड़ेगा. यहां के रत्नागिरी हापुस का पल्‍प खासतौर पर अमेरिका और यूरोप को बड़ी मात्रा में निर्यात किया जाता है. अब इस पल्‍प की कीमतों में 50 फीसदी तक का इजाफा होने की उम्‍मीद है. इतनी वृद्धि से निर्यातकों के सामने बड़ा संकट खड़ा हो गया है.  

हर साल करोड़ों का निर्यात 

भारत से हर साल करीब 15 हजार मीट्रिक टन आम का पल्‍प निर्यात होता है. इसमें से करीब 300 करोड़ रुपये का पल्‍प अमेरिका भेजा जाता है. कोंकण से, अकेले रत्नागिरी और सिंधुदुर्ग जिलों से करीब 50 करोड़ रुपये का आम का पल्‍प अमेरिका, यूरोप और खाड़ी देशों को भेजा जाता है. हालांकि अमेरिकी टैरिफ के कारण अब इस गूदे पर 12.5 करोड़ रुपये की एक्‍स्‍ट्रा ड्यूटी लगेगी. कोंकण में हापुस आम की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. इस आम से बना पल्‍प देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी बेहद लोकप्रिय है. खासकर अमेरिका में, कोंकण के गूदे की मांग बहुत ज्‍यादा है. इसलिए, यह टैरिफ फैसला कोंकण के किसानों, प्रोसेसिंग इंडस्‍ट्री और निर्यातकों के लिए आर्थिक रूप से नुकसानदेह होगा.  

क्‍यों हापुस का पल्‍प है खास 

रत्नागिरी के एक पल्‍प एक्‍सपोर्ट की मानें तो इस आम की खासियत की नैचुरल पल्‍प है जो बिना केमिकल के रसायनों के इस्तेमाल के तैयार किया जाता है. लेकिन अब, नई अमेरिकी नीति के साथ, बड़ा सवाल यह है कि क्या हम प्रतिस्पर्धा में टिक पाएंगे. निर्यातक संघों ने केंद्र सरकार से हस्तक्षेप की मांग की है. अब उन्‍हें उम्मीद कर रहे हैं कि अमेरिका की ओर से लगाए गए टैरिफ पर फिर से सोचा जाएगा या भारत सरकार कुछ रियायतों की घोषणा करेगी. व्यापारियों का कहना है कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो आने वाले दिनों में पल्‍प के एक्‍सपोर्ट में गिरावट का खतरा है. 

भारतीय आमों का बड़ा बाजार 

अमेरिका भारत के आमों का एक बड़ा बाजार है. हापुस या अल्‍फान्‍सो के अलावा अब गुजरात का केसर भी यहां पर काफी मशहूर हो रहा है. इस साल केसर ने तो अमेरिका में लंबे समय से राज कर रहे हापुस को भी रिप्‍लेस कर दिया. वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल 2024 और जनवरी 2025 के बीच, भारत ने अमेरिका को 24.97 मिलियन डॉलर मूल्य के आमों का निर्यात किया. इसके साथ ही पहली बार 20.78 मिलियन डॉलर के निर्यात वाला यूएई पीछे रह गया था.  हापुस और केसर के अलावा आंध्र प्रदेश का बंगनापल्ली लंगड़ा, दशहरी, चौसा, तोतापुरी और मल्लिका भी काफी निर्यात किए जाते हैं. 

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