‘‘आपके लोकप्रिय मुख्यमंत्री जी ने मुझे बताया है कि राजस्थान सरकार और बीजेपी के विधायकों द्वारा एक मांग केन्द्र सरकार के सामने रखी गई है. पार्वती काली सिंध चंबल परियोजना को राष्ट्रीय प्रोजेक्ट के तौर पर घोषित है. मुझे जानकारी दी गई है कि इसकी विस्तृत प्रोजेक्ट रिपोर्ट जल संसाधन मंत्रालय को भेजी गई है और परियोजना की तकनीकी जानकारी पर काम चल रहा है. इस परियोजना से राजस्थान की दो लाख हैक्टेयर से ज्यादा जमीन को सिंचाई की सुविधा मिलेगी. इस परियोजना से जयपुर, अलवर, भरतपुर, सवाईमाधोपुर, कोटा, बूंदी ऐसे 13 जिलों में रहने वाली राजस्थान की 40 प्रतिशत आबादी को पीने का पानी उपलब्ध होगा. मैं आपको यह आश्वासन देना चाहूंगा कि केन्द्र सरकार इस मांग के प्रति सकारात्मक रुख रखेगी.”
“गजेंद्र सिंह केंद्र में पानी के मंत्री हैं, लेकिन इनकी हैसियत नहीं है पीएम मोदी के सामने अपनी बात रखने की. वो भी तब जब प्रधानमंत्री ने खुद ईआरसीपी को राष्ट्रीय परियोजना घोषित करने की घोषणा की थी, लेकिन अगर आपकी यह करवाने की औकात ही नहीं है तो आप काहे के मंत्री हैं?"
यह दो भाषण पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना पर हो रही राजनीति का खाका हैं. पहला बयान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 7 जुलाई 2018 को दिया था. दूसरे बयान में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, जलशक्ति मंत्रालय के मंत्री और जोधपुर से सांसद गजेन्द्र सिंह शेखावत को लगभग चुनौती देने के अंदाज में यह बात कहते हैं. गहलोत ने यह बयान 11 अप्रैल 2022 को जयपुर में दिया था.
पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ईआरसीपी) राजस्थान की सबसे बड़ी नहर परियोजना है. इसके तहत पूर्वी राजस्थान के 13 जिले झालावाड़, बारां, कोटा, बूंदी, सवाईमाधोपुर, करौली, धौलपुर, भरतपुर, दौसा, अलवर, जयपुर, अजमेर एवं टोंक को साल 2051 तक पेयजल और सिंचाई का पानी मिलना है. इसमें मानसून के समय पार्वती, कालीसिंध, मेज नदी के बरसाती अधिशेष (जरूरत से ज्यादा) पानी को बनास, मोरेल, बाणगंगा और गंभीर नदी तक लाने की योजना है. कुल मिलाकर ईआरसीपी से पूर्वी राजस्थान की 11 नदियों को आपस में जोड़ा जाना है.
योजना के तहत 6 बैराज और एक बांध बनाया जाना है. इसमें बारां जिले की शाहबाद तहसील में कुन्नू नदी पर कुन्नू बैराज, बारां जिले की किशनगढ़ तहसील में कूल नदी पर रामगढ़ बैराज, बारां की ही मंगरौल तहसील में पार्वती नदी पर महलपुर बैराज, कोटा जिले की पीपलदा तहसील में नवनेरा बैराज, बूंदी जिले की इंद्रगढ़ तहसील में मेज नदी पर मेज बैराज, सवाई माधोपुर जिले की चौथ का बरवाड़ा तहसील में बनास नदी पर राठौड़ बैराज बनाए जाने हैं.
इसके अलावा सवाई माधोपुर की खंडार तहसील में डूंगरी बांध का निर्माण किया जाना है. इसी बांध में ईआरसीपी योजना के लिए पानी इकठ्ठा किया जाएगा. इस बांध की भराव क्षमता 2099 एमसीएम होगी.
किसान तक ने अपनी पड़ताल में पाया कि राजस्थान सरकार ने केन्द्र सरकार के उपक्रम वेप्कॉस लिमिटेड की ओर से तैयार डीपीआर (डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट) 19 नवंबर 2017 को भेजी. इसके बाद केन्द्रीय जल आयोग के सामने राजस्थान की ओर से 18 जनवरी 2018 को परियोजना के बारे में विस्तार से बताया.
तब से ही यह योजना केन्द्रीय जल आयोग में परीक्षण के लिए विचाराधीन है. नवंबर 2017 में बनी डीपीआर उस समय राजस्थान रिवर बेसिन अथॉरिटी के चेयरमैन श्रीराम वेदिरे की देखरेख में बनी थी. श्रीराम अभी केन्द्रीय जलशक्ति मंत्रालय में सलाहकार हैं.
डीपीआर में इस योजना की अनुमानित लागत 37,247.12 करोड़ रुपए है. इस काम को 7 साल में पूरा करना था. 2018 में राजस्थान में कांग्रेस सरकार आने के बाद से गहलोत इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित करने की मांग कर रहे हैं. राष्ट्रीय परियोजना घोषित होने से केन्द्र को 90 प्रतिशत और राज्य को 10 प्रतिशत पैसा ही खर्च करना होगा.
ईआरसीपी से पूर्वी राजस्थान के 13 जिलों में 2.02 लाख हेक्टेयर नई सिंचाई भूमि बनेगी. साथ ही इन जिलों में पहले से बने 26 बांधों में सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी उपलब्ध हो सकेगा. इससे 80,878 हेक्टेयर भूमि सिंचित होती है. 13 जिलों के लाखों किसानों को खेतों के लिए पानी मिल सकेगा.
इस परियोजना में पेयजल के लिए 1723.5 एमसीएम (मिलियन घन मीटर) प्रावधान किया गया है. जो कुल उपलब्ध पानी का 49 प्रतिशत है. इससे इन 13 जिलों की 40% जनता यानी लगभग 3 करोड़ लोगों को पीने का पानी उपलब्ध होगा.
ईआरसीपी में 13 जिलों के अंदर आने वाले उद्योगों सहित दिल्ली-मुंबई इंड्रस्ट्रियल कॉरिडोर (डीएमआरसी) को 286.4 एमसीएम यानी कुल पानी के 8% उपयोग का प्रावधान है. इसके अलावा बचा हुआ 43 प्रतिशत पानी सिंचाई के लिए मिलेगा. इस पानी से सिंचाई के लिए धौलपुर जिले में 72,500 हेक्टेयर और दौसा, सवाईमाधोपुर, करौली, भरतपुर में 1,29,985 हेक्टेयर क्षेत्र में नया कमांड एरिया बन सकेगा.
राजस्थान सरकार का कहना है कि पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना की डीपीआर मध्यप्रदेश-राजस्थान अंतर राज्यीय स्टेट कंट्रोल बोर्ड की साल 2005 में बैठक में हुए निर्णयों के अनुसार बनी है. इस निर्णय के अनुसार ‘राज्य किसी परियोजना के लिए अपने राज्य के कैचमेंट से प्राप्त पानी एवं दूसरे राज्य के कैचमेंट से प्राप्त पानी का 10 प्रतिशत प्रयोग इस शर्त के साथ कर सकते हैं- यदि परियोजना में आने वाले बांध और बैराज का डूब क्षेत्र दूसरे राज्य की सीमा में नहीं आता हो तो ऐसे मामलों में राज्य की सहमति जरूरी नहीं है.
इसी शर्त के आधार पर मध्यप्रदेश ने पार्वती की सहायक नदी नेवज पर मोहनपुरा बांध और कालीसिंध पर कुंडालिया बांध बनाया है. राजस्थान सरकार का दावा है कि इन बांधों की एनओसी उनसे बांध बनने के बाद 2017 में ली गई.
लेकिन अब मध्यप्रदेश सरकार ईआरसीपी के लिए एनओसी नहीं दे रही जबकि राजस्थान तीनों शर्तों को पूरी करता है. जिसमें पहली- जलभराव क्षेत्र राजस्थान की जमीन पर है. दूसरी- प्राप्त पानी राजस्थान के कैचमेंट का है और तीसरी- मध्यप्रदेश के कैचमेंट क्षेत्र से प्राप्त पानी 10% से कम है.
8 जुलाई 2019 को राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ को एक पत्र लिखा. इसके जवाब में कमलनाथ ने 27 जनवरी 2020 को लिखा. इसमें 50 की जगह 75 प्रतिशत जल निर्भरता के आधार पर डीपीआर बनाने की बात मध्यप्रदेश सरकार की ओर से की गई. इसी तरह का एक और पत्र 15 अप्रैल 2022 को एमपी के सीएम शिवराज सिंह चौहान ने केन्द्र को लिख दिया.
राष्ट्रीय किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट का मानना है कि इस चिठ्ठी को ही आधार बनाकर केन्द्र सरकार ईआरसीपी को अटकाने का काम कर रही है. वे कहते हैं, “जिस तरह इंदिरा गांधी नहर से पश्चिमी राजस्थान की तकदीर बदल गई, उसी तरह ईआरसीपी से पूर्वी राजस्थान की मुफ़लिसी, बेकारी खत्म होगी और सूखे पड़े खेतों को पानी मिलेगा. लाखों किसानों के साथ-साथ आम लोगों को भी फायदा होगा.”
मध्यप्रदेश सरकार के केन्द्र को पत्र लिखने के बाद 10 मई 2022 को जल शक्ति मंत्रालय के सचिव पंकज कुमार ने राजस्थान की मुख्य सचिव ऊषा शर्मा को यह कहते हुए पत्र लिखा कि जब तक दोनों राज्यों में ईआरसीपी को लेकर कोई समझौता नहीं होता तब तक ईआरसीपी का काम रोक दिया जाए.
इस पत्र पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कड़ी आपत्ति जताई और कहा, “केंद्र सरकार के जल शक्ति मंत्रालय ने राजस्थान सरकार को पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना ( ERCP) का काम रोकने के लिए कहा है. हमारी सरकार ने ERCP के लिए 9,600 का बजट राज्य कोष (स्टेट फंड) से जारी किया है. जब इस प्रोजेक्ट में अभी तक राज्य का पैसा लग रहा है और पानी हमारे हिस्से का है तो केद्र सरकार हमें ईआरसीपी का काम रोकने के लिए कैसे कह सकती है? राजस्थान के 13 जिलों की जनता देख रही है कि उनके हक का पानी रोकने के लिए केंद्र की भाजपा कैसे रोड़े अटका रही है. प्रदेश सरकार ERCP को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है.
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कई बार मीडिया से कहा है कि केन्द्र अगर ईआरसीपी को राष्ट्रीय परियोजना घोषित नहीं करता तो राज्य सरकार इसे पूरा करेगी. इसी के तहत राज्य सरकार ने साल 2021-22 के बजट में नवनेरा, गलवा-बीसलपुर-ईसरदा लिंक और धौलपुर जिले में कालीनीर लिफ्ट परियोजना का काम शुरू करने के लिए 320 करोड़ रुपए का प्रावधान किया. वहीं, साल 2022-23के बजट में राज्य सरकार ने नवनेरा-गलवा-बीसलपुर-ईसरदा लिंक, महलपुर बैराज और रामगढ़ बैराज के लिए 9600 करोड़ रुपए जारी किए हैं. साथ ही सरकार ने पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना निगम (ईआरसीपी कॉर्पोरेशन) बनाने की घोषणा की. हाल ही में इस निगम में सरकार ने 8 नए कार्यालय गठित करने की मंजूरी दी है. इन कार्यालयों में 115 पद सृजित किए गए हैं. इस साल दिए गए बजट से नवनेरा बैराज और ईसरदा बांध पर काम शुरू किया गया है. इस पर 1130 करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं.
रामपाल जाट कहते हैं, “राज्य ईआरसीपी को राष्ट्रीय परियोजना घोषित कराना चाहता है. यह होना भी चाहिए, लेकिन अगर केन्द्र यह नहीं करती है तो राज्य सरकार को अपने संसाधनों से इसे पूरा करना चाहिए. 40 हजार करोड़ रुपए की परियोजना में राज्य अब तक 10 हजार करोड़ रुपए का प्रावधान कर चुका है. राज्य का कुल बजट 2 लाख करोड़ रुपए से अधिक का है. ऐसे में अगले बजट में बचे हुए 30 हजार करोड़ का प्रावधान राज्य सरकार को करना चाहिए. ”
इसके अलावा राज्य सरकार ने मध्यप्रदेश सरकार से एनओसी देने के लिए लिखा गया है. साथ ही केन्द्र को लिखा है कि परियोजना की डीपीआर 25 अगस्त 2005 को हुई बैठक में लिए निर्णयों के अनुसार ही बनी है इसीलिए मध्यप्रदेश के एनओसी की जरूरत ही नहीं है.
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी केन्द्र सरकार और जलशक्ति मंत्रालय को परियोजना को राष्ट्रीय दर्जा देने के संबंध में 15 से ज्यादा पत्र लिखे हैं.
ईआरसीपी की डीपीआर 2017 में वसुंधरा राजे के दौर में बनी थी. इसके बाद 2018 में राजस्थान में सरकार बदल गई और अशोक गहलोत ईआरसीपी को राष्ट्रीय परियोजना बनाने की मांग केन्द्र से करने लगे. गहलोत नीति आयोग की 7वीं बैठक में भी यह मांग दोहरा चुके हैं. इसके अलावा ईआरसीपी को लेकर गहलोत सर्वदलीय बैठक भी बुला चुके हैं. हालांकि इस बैठक में पूर्व सीएम वसुंधरा राजे, नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया और बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया नहीं पहुंचे थे. गहलोत ने कहा कि बीजेपी इस मुद्दे पर राजनीति कर रही है. योजना की डीपीआर भी बीजेपी ने बनाई है. हम सभी शर्तों को भी पूरा कर रहे हैं. इसके अलावा पीएम मोदी ने भी चुनावी रैली में योजना के लिए सकारात्मक रुख अपनाने का वादा किया था.
गहलोत ने यह भी कहा कि केन्द्र ईआरसीपी को राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा दे या ना दे, राज्य सरकार अपने संसाधनों से इस परियोजना को पूरा करेगी.
वहीं, विधानसभा में उपनेता और भाजपा विधायक राजेन्द्र राठौड़ से किसान तक ने बात की. उन्होंने कहा, “13 जिलों के लिए ईआरसीपी महत्वपूर्ण परियोजना है. मध्यप्रदेश ने वाटर डिपेंडेंसी को लेकर एनओसी नहीं दी है. दरअसल, परियोजना में कुछ तकनीकी समस्याएं हैं. गहलोत हमें बुलाएं और सभी केन्द्र सरकार के पास चलें. ”
राठौड़ आगे कहते हैं, “गहलोत सरकार इस पर सिर्फ राजनीति करना चाहती है. हम योजना का बिलकुल विरोध नहीं करते. तकनीकी खामियों के लिए राजस्थान को मध्यप्रदेश सरकार से बात करनी चाहिए. कई जिलों को योजना से बहुत कम पानी मिल रहा है.”
योजना का श्रेय लेने के सवाल पर राठौड़ कहते हैं कि योजना की शुरूआत भी हमने की थी और पूरा भी हम ही करेंगे.
ईआरसीपी को लेकर राजनीति और संघर्ष गांव स्तर पर पहुंच चुका है. लोगों ने ईआरसीपी के लिए अपने स्तर पर कई मोर्चे खड़े किए हैं. इनमें से ही एक ईआरसीपी संयुक्त मोर्चा के अध्यक्ष जवान सिंह मोहचा से किसान तक ने बात की. उन्होंने कहा, “पूर्वी राजस्थान में पानी की गंभीर समस्या है. ईआरसीपी से इस समस्या का समाधान होगा. इसीलिए हम बीते एक साल से जगह-जगह जाकर लोगों को इसके लिए जागरूक कर रहे हैं. साथ ही इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित करने के लिए प्रशासन को ज्ञापन भी सौंपते हैं.”
जवान सिंह जोड़ते हैं कि वसुंधरा राजे के शासन में बनी डीपीआर में सवाई माधोपुर की बामनवास तहसील में मोरा सागर बांध, माधोसागर बांध और जमवारामगढ़ जैसे महत्वपूर्ण बांध डीपीआर में शामिल ही नहीं किए. हमारी गहलोत सरकार से मांग है कि इन बांधों को ईआरसीपी में शामिल किया जाए ताकि इन पर निर्भर कई सौ गांवों में पानी पहुंच सके.
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