बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने पिछले दिनों कपास के मुद्दे पर महाराष्ट्र सरकार और कॉटन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (सीसीआई) को कड़ी फटकार लगाई है. हाई कोर्ट ने इस बात पर चिंता जताई है कि खरीद केंद्र को स्थापित करने में जान-बूझकर देरी की जा रही है. इसकी वजह से जहां निजी व्यापारियों को बड़ा मुनाफा हो रहा है तो वहीं किसानों को इसकी वजह से बड़ा घाटा झेलने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है. कोर्ट ने इस तरफ भी ध्यान दिलाया कि इस देरी की वजह से कपास की कीमतों में गिरावट हो रही है और इसके लिए सिर्फ राज्य सरकार ही जिम्मेदार है.
मराठी वेबसाइट अग्रोवन की रिपोर्ट के अनुसार महाराष्ट्र की ग्राहक पंचायत के श्रीराम सतपुते की तरफ से एक जनहित याचिका दायर की गई थी. इसमें याचिका पर पिछले दिनों बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच के सामने सुनवाई हुई. जस्टिस नितिन सांबरे और जस्टिस सचिन देशमुख ने इस पर सुनवाई की.
याचिका के अनुसार हर साल कपास खरीद केंद्र देर से खुलते हैं. इसकी वजह से किसानों को निजी व्यापारियों को गारंटीड कीमत की जगह कम दाम पर कपास की फसल बेचने के लिए मजबूर होना पड़ता है. ट्रेडर्स इसी कपास को ज्यादा दामों पर बेचकर अच्छा-खासा मुनाफा कमाते हैं. लेकिन वहीं किसानों को इस प्रवृत्ति की वजह से काफी घाटा होता है.
इस मामले में सीसीआई की तरफ से एक एफिडेविट दायर किया गया था. इसमें कहा गया कि राज्य में 1 अक्टूबर 2024 से 121 कपास खरीद केंद्र खुले हुए हैं. इसके अलावा सात और कपास खरीद केंद्रों को राज्य सरकार और सार्वजनिक प्रतिनिधियों के अनुरोध पर खोला गया है. इस तरह से कुल 128 कपास खरीद केंद्र इस समय राज्य में संचालित हो रहे हैं.
वहीं दूसरी ओर याचिकाकर्ता ने दावा किया कि सीसीआई सफेद झूठ बोल रही है और गलत जानकारियां कोर्ट के सामने पेश कर रही है. याचिकाकर्ता का कहना था कि दिसंबर 2024 और जनवरी 2025 के बीच कई कपास खरीद केंद्रों के लिए टेंडर्स जारी किए गए थे. ऐसे में साफ है कि अक्टूबर में खरीद केंद्र खोले ही नहीं गए थे. याचिकाकर्ता सतपुते ने तर्क देते हुए कहा कि अगर अक्टूबर में ही खरीद केंद्र खुल गए थे तो फिर एपीएमसी के सेक्रेटरी की तरफ से सीसीआई को चिट्ठी लिखकर खरीद केंद्र खोलने का अनुरोध क्यों किया गया था. कोर्ट ने सभी पहलुओं को सुनने के बाद अगली सुनवाई के लिए 28 जुलाई की तारीख तय की है.
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