भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौता के लिए अमेरिका गई भारत की टीम वापस आ चुकी है. मुख्य वार्ताकार राजेश अग्रवाल के नेतृत्व में भारतीय दल अंतरिम व्यापार समझौते पर वार्ता का एक और दौर पूरा करने के बाद वाशिंगटन से वापस आई है, लेकिन चर्चा अभी जारी रहेगी. अधिकारी ने कहा कि अभी कई मुद्दों जैसे- कृषि और ऑटो पर सहमति नहीं बन पाई है, इसलिए अभी चर्चा आगे जारी रहेगी.
अधिकारी ने कहा कि वार्ता अंतिम चरण में है और इसके फैसले का ऐलान 9 जुलाई से पहले होने की उम्मीद है. उन्होंने कहा कि हालांकि अभी कृषि के अलावा ऑटो सेक्टर्स को लेकर अभी मुद्दे सुलझाने की आवश्यकता है. भारतीय टीम 26 जून से 2 जुलाई तक अमेरिका के साथ अंतरिम व्यापार समझौते पर वार्ता के लिए अमेरिका गई थी.
ये चर्चाएं महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ट्रंप के पारस्परिक टैरिफ का निलंबन 9 जुलाई को खत्म हो रहा है. दोनों पक्ष उससे पहले वार्ता को अंतिम रूप देने पर विचार कर रहे हैं. भारत ने अमेरिकी कृषि और डेयरी उत्पादों को शुल्क रियायत देने पर अपना रुख कड़ा कर लिया है और इसपर किसी भी तरह का समझौता नहीं करना चाहता है, क्योंकि यह रणनीतिक तौर पर संवेदनशील क्षेत्र है, जो भारत के डील करने पर एक बड़ा झटका जैसा हो सकता है.
अमेरिका सेब, ट्री नट्स और जेनेटिकली मोडिफाइड (जीएम) फसलों जैसी कृषि वस्तुओं पर शुल्क रियायतें भी चाहता है. वहीं डेयरी को लेकर भी भारत से डील करना चाहता है, लेकिन भारत ने अभी तक इसपर डील नहीं की है. भारत प्रस्तावित व्यापार समझौते के तहत कृषि क्षेत्र में झींगा, तिलहन, अंगूर और केले जैसे सेक्टर्स के लिए शुल्क रियायतें चाहता है. दोनों ही देश कृषि के अलावा कुछ और क्षेत्रों में एक निष्कर्ष पर पहुंचते नजर नहीं आ रहे हैं.
वहीं वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने शुक्रवार को कहा है कि भारत किसी समय सीमा के दबाव में मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करने में जल्दबाजी नहीं करेगा. उनसे पूछा गया था कि क्या वाशिंगटन द्वारा निर्धारित 9 जुलाई की समय सीमा तक अमेरिका के साथ कोई समझौता हो सकता है. नई दिल्ली में 16वें टॉय बिज इंटरनेशनल बी2बी एक्सपो के अवसर पर बोलते हुए गोयल ने इस बात पर जोर दिया कि भारत राष्ट्रीय हित में व्यापार समझौते करने के लिए तैयार है, लेकिन वह 'कभी भी समय सीमा के साथ व्यापार सौदों पर बातचीत नहीं करता है'. भारत सरकार ने अपने कृषि क्षेत्र को पूरी तरह से खोलने से इनकार कर दिया है, खास तौर पर आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों और डेयरी उत्पादों के मामले में.
देश सोयाबीन और मक्का जैसी वस्तुओं को तब तक अनुमति देने के लिए तैयार नहीं है जब तक कि उन्हें गैर-जीएम के रूप में प्रमाणित न किया जाए क्योंकि जीएम फसलों पर घरेलू स्तर पर प्रतिबंध है. डेयरी के मामले में भारत ने दो मुख्य चिंताओं का हवाला दिया है, पहला- इसकी खेती की जीवन निर्वाह-स्तर की प्रकृति है यानी जहां लाखों लोग सिर्फ एक या दो गायों या भैंसों पर निर्भर हैं और अमेरिकी मवेशी चारे के बारे में धार्मिक संवेदनशीलता जिसमें मांसाहारी उत्पाद शामिल हैं. सूत्रों की मानें तो लाखों किसानों की आजीविका दांव पर है क्योंकि वे अमेरिका के वाणिज्यिक पैमाने के डेयरी फार्मों के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते.
यह भी पढ़ें-