एक बार फिर किसान आंदोलन का दौर है और एक बार फिर इस आंदोलन के ज़्यादातर सदस्य किसान पंजाब से हैं. देश के हर प्रदेश की तरह पंजाब के गांवों की भी अपनी समस्याएं हैं, मुद्दे हैं. कुछ सामाजिक हैं तो कुछ राजनीतिक. अमूमन जब इन मुद्दों पर फिल्में बनाई जाती हैं, तो वे राजनीतिक तेवर इख्तियार कर लेती हैं. लेकिन गिप्पी ग्रेवाल की फिल्म ‘अरदास’ इस मामले में एक अपवाद है. यह फिल्म उन सारे मुद्दों और समस्याओं को सामने लाती है, जो हमारे समाज को घुन की तरह खाये जा रही हैं, मगर इतनी संवेदनशीलता से कि अंत में हम एक सकारात्मक उम्मीद से भर जाते हैं.
पंजाब में कलात्मक और कॉमेडी फिल्मों की एक स्वस्थ परंपरा रही है. यही वजह है कि आज के बहुत से पंजाबी कमर्शियल फिल्ममेकर, गायक और अभिनेता मनोरंजन के साथ-साथ गंभीर संदेश भी खूबसूरती से पेश करते हैं. गिप्पी ग्रेवाल ऐसे ही फिल्ममेकर, प्रोड्यूसर, गायक, लेखक और अभिनेता हैं.
गिप्पी ग्रेवाल की ‘कैरी ऑन जट्टा’ सिरीज़ बहुत लोकप्रिय हुई है. लेकिन जब वे ‘अरदास’ के लिए अनुकूल निर्देशक ढूंढ रहे थे, तो उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ा क्योंकि यह एक गंभीर कहानी थी. गिप्पी ग्रेवाल तो कॉमेडी और ड्रामा के लिए ही प्रसिद्ध हैं. “यह एक सिरियस फिल्म है, इसे कोई नहीं देखेगा, तो इसमें क्या दिमाग लगाना?” ज़्यादातर लोगों ने गिप्पी से यही कहा.
एक इंटरव्यू में गिप्पी ने बताया कि उस वक्त उनकी पत्नी ने उन्हें प्रेरित किया कि वही इस फिल्म का निर्देशन करें. आखिरकार, उन्होने निश्चय किया कि वे खुद इस फिल्म का निर्देशन करेंगे. इस तरह फिल्म ‘अरदास’ गिप्पी ग्रेवाल द्वारा निर्देशित पहली फीचर फिल्म बनी.फिल्म की कहानी है शहर में बसे मास्टर गुरमुख सिंह की, जिसकी हाल में ही एक गांव में पोस्टिंग हुई है. गांव में गुरमुख की तमाम लोगों से मुलाक़ात होती है. सभी के अपने दुखड़े हैं, समस्याएं हैं. गुरमुख भी अपने सीने में अपनी पत्नी और बच्ची की मौत का गम छिपाए है.
गांव के ज़्यादातर लोग नशे के ठेके पर पाए जाते हैं, स्कूल के अध्यापक अपना काम ठीक से नहीं करते, एक किसान है जो कर्जे में डूबा है, अपने ट्रैक्टर को अपने बेटे की तरह मानता है और जब बैंक वाले ट्रैक्टर जबरन उठा ले जाते हैं, तो वह ख़ुदकुशी के बारे में सोचने लगता है. ड्रग्स की तस्करी करने वाला एक किसान भी है जो दौलत के नशे में यह भूल जाता है कि खुद उसका बेटा नशे का शिकार हो चुका है. एक युवा ब्याहता है जो अपने विदेश गए पति की वापसी का इंतज़ार कर रही है, एक अनाथ बच्ची है जो अपनी अनदेखी अनजान मां को रोजाना खत लिखती है और खुद गुरमुख सिंह इस अपराधबोध से ग्रसित है कि उसकी पत्नी और अजन्मी बेटी भ्रूणहत्या की भेंट चढ़ गए.
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इस गांव में एक छोटा सा गुरुद्वारा भी है जहां कोई नहीं जाता. लेकिन गुरमुख की सदिच्छा और उसका पुख्ता किरदार सभी के दिल पर छाप छोड़ता है. धीरे-धीरे शराब का ठेका चाय की दुकान में बदल जाता है और लोग रोजाना गुरुद्वारे जाकर प्रार्थना भी करने लगते हैं. वक्त के साथ-साथ लोगों की समस्याएं उनके अपने प्रयासों और दृढ़ निश्चय के कारण हल होने लगती हैं.
कहानी सरल है, इसमें कोई विलेन नहीं है. समस्याओं के हल भी सरल हैं. अलबत्ता संवादों के जरिए कहानी गहरे अर्थ व्यक्त करती है और दिल छू जाती है. “मेरा पूरा नाम गुरमुख सिंह है और मेरी जाति है, सिक्ख!” गुरमुख का यह एक संवाद ही गांव में पैठ बनाए जातिवाद को दिखला जाता है. या फिर यह संवाद बहुत प्रेरणादायक है. “अरे भगवान के पास इतना वक्त नहीं कि वो हमारे नसीब बनाए! हम ही अपना नसीब बना सकते हैं बस हमारा निश्चय मजबूत होना चाहिए!”
ऐसे अनेक संवाद ना सिर्फ मर्मस्पर्शी हैं बल्कि हमारे गांवों के किरदार, परम्पराओं और बुराइयों को हाइलाइट कर जाते हैं. बतौर निर्देशक गिप्पी प्रकाश और अंधेरे का असरदार इस्तेमाल करते हैं. सिनेमैटोग्राफी प्रभावशाली है. चूंकि गिप्पी खुद एक संगीतकार रहे हैं, इसलिए फिल्म का संगीत भी हृदयस्पर्शी है.
फिल्म की शुरुआत ही जपुजी साहब के पाठ से होती है. यह एक तरह से इस बात का द्योतक है कि ईश्वर से ‘अरदास’ यानी प्रार्थना एक व्यक्ति के ईश्वर से रिश्ता कायम करने का प्रयास तो है ही, उस व्यक्ति का अपनी इच्छाशक्ति, और ईश्वर की मर्ज़ी के सामने उसके समर्पण को दृढ़ करने की कोशिश भी होती है. और यही ‘अरदास’ ही कहानी के किरदारों को एक बेहतर इंसान बनाती है. बल्कि अगर यह कहा जाये तो अनुचित ना होगा कि पूरी फिल्म एक ‘अरदास’ की तरह चलती है और इस अरदास के अंत में सभी किरदारों को अपनी छोटी-छोटी खुशियां हासिल हो जाती हैं.
इस फिल्म में नायक गुरमुख का किरदार निभाया गुरप्रीत घुग्गी ने, जो अपनी बेजोड़ कॉमेडी से पंजाबी दर्शकों के बीच पहले ही बहुत मशहूर हैं. इस फिल्म ने उन्हें एक बहुआयामी अभिनेता के तौर पर भी स्थापित कर दिया. राणा रणबीर फिल्म में एक शराबी ‘लॉटरी’ की भूमिका में प्रभावित करते हैं लेकिन इससे ज़्यादा प्रभावित करते हैं फिल्म में उनके द्वारा लिखे गए संवाद!
यह फिल्म मार्च 2016 में टोरोंटो में रिलीज़ हुई और इसकी प्रशंसा हिन्दी के नामचीन स्टार आमिर खान ने भी की. फिल्म का बजट था मात्र 5 करोड़ रुपये था. अकेले भारत में ही इसने 6 करोड़ रुपये कमाए और विदेशों में इस फिल्म ने अच्छी-ख़ासी कमाई की. बॉक्स ऑफिस पर सफल होना तो अच्छा है, गिप्पी ग्रेवाल वैसे भी एक सफल और पॉपुलर स्टार थे. लेकिन इस फिल्म ने उन्हे गंभीर फिल्म निर्देशकों की श्रेणी में भी शामिल कर दिया. ‘अरदास’ की सफलता के बाद गिप्पी ग्रेवाल ने इसकी सीक्वेल फिल्म बनाई ‘अरदास करां’. यह 2019 में रिलीज़ हुई. यह फिल्म भी बॉक्स ऑफिस पर हिट हुई और इसकी कहानी को समीक्षकों ने भी सराहा.
‘अरदास’ कोई कलात्मक फिल्म नहीं, लेकिन आपको एक सकारात्मक एहसास दे जाती है कि अपनी भलमनसाहत, मेहनत और मजबूत इरादों से हम अपनी तमाम मुश्किलों का हल ढूंढ सकते हैं क्योंकि दुनिया में अगर दुख-दर्द और अकेलापन है तो खुशी और प्रेम भी है, जिसे हम हासिल कर सकते हैं, बशर्ते हम हार न मानें.