
कभी दिल्ली की कड़कड़ाती ठंड में सेब के खाली बॉक्स पर रातें काटने वाला एक युवा आज करोड़ों की कंपनी चला रहा है. कभी 1200 रुपये की नौकरी करने वाला यही शख्स आज बिहार का मशहूर ‘मशरूम मैन’ कहलाता है. यह कहानी है मुजफ्फरपुर के शशि भूषण तिवारी की एक ऐसे इंसान की, जिसने भूख, गरीबी, ताने और असफलताओं को अपने सपनों के रास्ते की रुकावट नहीं बनने दिया. जब लोग मज़ाक उड़ाते थे कि “मशरूम उगाकर कोई अमीर थोड़े ना बन जाता है,” तब तिवारी चुपचाप सीख रहे थे, मेहनत कर रहे थे और भविष्य की तैयारी में लगे थे. आज वही तिवारी मशरूम खेती के क्षेत्र में एक सफल उद्यमी बनकर हर महीने 50 से 60 लाख रुपये कमा रहे हैं और अपने गांव के सैंकड़ों युवाओं के लिए प्रेरणा बने हुए हैं.
दिल्ली की मंडियों से शुरू हुई यह यात्रा 19 साल बाद मुजफ्फरपुर की मिट्टी में फली-फूली और आज तिवारी न सिर्फ़ नाम कमा रहे हैं बल्कि बिहार को मशरूम उत्पादन के नक्शे पर नई ऊंचाइयों पर पहुंचा रहे हैं. यह सिर्फ़ एक खेती की कहानी नहीं, बल्कि मेहनत, जिद और विश्वास की अनोखी मिसाल है.
सन 2000 में तिवारी दिल्ली की आज़ादपुर मंडी में काम करते थे. वहीं पहली बार उन्होंने मशरूम देखा और स्वाद लिया. उन्हें लगा कि यह नॉन-वेज है, लेकिन बाद में उन्हें पता चला कि मशरूम एक फंगस है और शुद्ध शाकाहारी खाद्य है. यहीं से उनके मन में मशरूम खेती सीखने की जिज्ञासा बढ़ी. वे हर छुट्टी पर हरियाणा के किसानों के पास जाकर मशरूम की खेती के तरीके सीखते थे.
एक दिन वे मशरूम खरीदकर घर ले आए, लेकिन पकाना नहीं जानते थे. तभी विचार आया-क्यों न खुद ही मशरूम उगाया जाए! उन्होंने हरियाणा के किसानों से बात करना शुरू किया और खेती के बारे में गहराई से जानने लगे.
परिवार की ज़िम्मेदारियों की वजह से वे तुरंत खेती शुरू नहीं कर सके. तिवारी कहते हैं- “मुझे मशरूम को मुज़फ़्फरपुर लाने में 19 साल लग गए.” आख़िरकार 2019 में उन्होंने पूरी तरह से हिम्मत जुटाकर अपना सपना पूरा करने का फैसला कर लिया और अपने गाँव लौट आए.
2020 में जब उन्होंने व्यवसाय बढ़ाने के लिए बैंक से लोन मांगा, तो बैंक ने कहा- “मशरूम उगाकर EMI कैसे भरोगे?” कई बार समझाने के बाद भी बैंक भरोसा नहीं कर रहे थे. पर तिवारी ने हार नहीं मानी और अंत में बैंक ऑफ इंडिया को अपने प्रोजेक्ट का भविष्य समझाने में सफल हुए.
तिवारी ने मशरूम खेती सिर्फ 6 कम्पार्टमेंट से शुरू की थी, जो आज 20 कम्पार्टमेंट तक बढ़ चुकी है. शुरू में परिवहन, त्योहार, मौसम और स्ट्राइक जैसी कई समस्याएँ आईं. लेकिन उन्होंने विशेषज्ञों से सलाह लेकर मशरूम प्रोसेसिंग यूनिट लगाई और अब वे इसे पैक करके दो साल तक सुरक्षित रख सकते हैं और ऑनलाइन भी बेचते हैं.
1996 में शादी के बाद उनकी पत्नी हमेशा उनके साथ खड़ी रहीं. तिवारी कहते हैं- “मेरी पत्नी ने हमेशा मेरा साथ दिया. मेरी सफलता में उनका सबसे बड़ा हाथ है.” आज उनकी बेटी डॉक्टर है और बेटा उनके बिज़नेस को आगे बढ़ा रहा है. आज का कारोबार से रोज 1600-2200 किलोग्राम मशरूम निकलता है. आज तिवारी रोज 1600-2200 किलो मशरूम बेचते हैं और हर महीने 50-60 लाख रुपये की कमाई करते हैं. आज उनके पास फार्महाउस, लक्जरी कार और अच्छी ज़िंदगी है.
शशि भूषण तिवारी की कहानी बताती है कि सपने वही पूरे होते हैं जिनमें हौंसला, मेहनत और निरंतरता हो. उन्होंने संघर्ष के रास्ते को ही अपनी ताकत बनाया-और आज ‘मशरूम मैन’ बनकर लाखों लोगों के लिए प्रेरणा बन गए.
ये भी पढ़ें:
Parali Management: कैसे पराली से गैस उत्पादन में आत्मनिर्भर बन सकता है भारत, बचेंगे करोड़ों रुपये भी
Crop Advisory: पराली न जलाएं, गेहूं-सरसों-सब्जियों की बुवाई पर महत्वपूर्ण सुझाव जारी