बहुत कीमती है धान का पुआल उत्तर भारत में हर साल जलाई जाने वाली पराली को अगर सही से यूज किया जाए तो यह देश में रिन्यूबल एनर्जी का बड़ा सोर्स बन सकती है. भारतीय बायोगैस एसोसिएशन (आईबीए) ने रविवार को कहा कि किसानों की तरफ से वर्तमान समय में 7.3 मिलियन टन धान के पुआल को जलाया जा रहा है. अगर इसका प्रयोग बायोगैस प्लांट में किया जाए तो इससे हर साल करीब 270 करोड़ रुपये की कीमत वाली रिन्यूबल गैस का प्रोडक्शन किया जा सकता है. आईबीए ने अपने बयान में कहा है कि लेटेस्ट एनारोबिक डाइजेशन प्रक्रियाएं इस कृषि अपशिष्ट को कुशलतापूर्वक कम्प्रेस्ड बायो-गैस (सीबीजी) में बदल सकती हैं, जो सीधे इंपोर्टेड नैचुरल गैस का विकल्प बन सकती है.
आईबीए के अनुसार एनर्जी के अलावा धान का पुआल बायोएथेनॉल उत्पादन के लिए भी बहुत सही है क्योंकि इसमें करीब 40 फीसदी सेलूलोज होता है.आईबीए का दावा है कि इससे करीब 1,600 करोड़ रुपये तक के आयात की जगह घरेलू उत्पादन किया जा सकता है. इसके अलावा, बचा हुआ 20 प्रतिशत लिग्निन पार्ट भी ज्यादा कीमत वाले उत्पादों—जैसे पॉलिमर, एक्टिवेटेड कार्बन, ग्रेफीन और रेजिन-का उत्पादन कर सकता है.
आईबीए के बयान के अनुसार, वर्तमान में जलाए जा रहे 7.3 मिलियन टन धान के पुआल को अगर सिर्फ बायोगैस प्लांट्स की तरफ मोड़ दिया जाए तो इससे हर साल करीब 270 करोड़ रुपये की गैस का उत्पादन तो होगा ही साथ ही साथ यह करीब 37,500 करोड़ रुपये के निवेश को भी आकर्षित किया जा सकता है. इससे 2028-29 तक देश में 750 CBG प्रोजेक्ट्स को शुरू करने की प्रेरणा मिलेगी. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह नीति लिक्विड नैचुरल गैस या LNG के आयात में कमी लाने की दिशा में एक कदम होगा. इससे घरेलू संसाधनों से ऊर्जा सुरक्षा बढ़ेगी और मूल्यवान विदेशी मुद्रा की बचत होगी.
अखबार बिजनेसलाइन ने आईबीए के चेयरमैन गौरव केडिया के हवाले से लिखा,'सस्टेनेबल एविएशन फ्यूल (एसएएफ) का समानांतर लक्ष्य साल 2027 तक अंतरराष्ट्रीय उड़ानों में 1 प्रतिशत मिश्रण हासिल करना है जो बायोइकोनॉमी के दायरे को और बढ़ा सकेगा.' धान के पुआल को बेकार समझने की पारंपरिक सोच कल्पना की कमी को दर्शाती है. आईबीए की मानें तो हकीकत में हर एक टन पुआल जलाने से करीब 1,460 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड, करीब 60 किलोग्राम कार्बन मोनोऑक्साइड और करीब 3 किलोग्राम पार्टिकुलेट मैटर सीधे वातावरण में उत्सर्जित होता है. संस्थान ने कहा कि वातावरण में इस तरह के प्रदूषण को फैलने देने के बजाय भारत लेटेस्ट टेक्नोलॉजी का प्रयोग करके इस पुआल को कीमती रिसोर्सेज में बदला जा सकता है.
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