Sir Chhotu Ram: कौन थे किसानों के 'मसीहा' सर छोटू राम, क्‍यों आज भी हर किसान लेता है उनका नाम  

Sir Chhotu Ram: कौन थे किसानों के 'मसीहा' सर छोटू राम, क्‍यों आज भी हर किसान लेता है उनका नाम  

एक सामान्य से किसान परिवार से आने वाले सर छोटूराम के पिता सुखीराम पर कर्ज समेत कई मुकदमों का बोझ था. इन स्थितियों में उन्‍होंने पढ़ने की इच्छा जाहिर की तो पिता ने मना नहीं किया. बेटे को पढ़ाने के लिए पिता ने साहूकार से कर्ज लेने की सोचा लेकिन कर्ज देने की जगह साहूकार ने उनके पिता को खूब अपमानित किया. पिता के इस अपमान ने बालक छोटू राम के मन में क्रांति और विद्रोह के बीज बो दिए. 

Sir Chhotu RamSir Chhotu Ram
क‍िसान तक
  • New Delhi ,
  • Nov 24, 2025,
  • Updated Nov 24, 2025, 9:09 AM IST

किसान आंदोलन के दौरान अक्‍सर आप एक नाम सुनते होंगे सर छोटूराम और एक संगठन का नाम ही इस नाम से जुड़ा है. लेकिन क्‍या आपने यह जानने की कोशिश की कि आखिर यह शख्‍स कौन है जो आज भी किसानों के दिल में जिंदा है.  सर छोटूराम को अक्सर 'किसानों का मसीहा' कहा जाता है क्योंकि उन्होंने अपना पूरा जीवन किसान, मजदूर और ग्रामीण समाज के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया. आज यानी 24 नवंबर को उनका जन्‍मदिन है और किसान समुदाय अपने इस मसीहा को याद कर रहा है. 

रोहतक में हुआ जन्‍म 

सर छोटूराम की जन्‍मतिथि सिर्फ एक व्यक्ति की याद भर नहीं, बल्कि उन विचारों और संघर्षों का स्मरण है जिन्‍होंने भारतीय किसानों को आवाज और अधिकार दिलाने में ऐतिहासिक भूमिका निभाई. उनका राजनीतिक सफर, सामाजिक विचार और आर्थिक सुधार न केवल हरियाणा और पंजाब क्षेत्र बल्कि पूरे देश के ग्रामीण ढांचे को नई दिशा देने वाला साबित हुआ. 24 नवंबर 1881 को रोहतक जिले के गढ़ी सांपला गांव में एक साधारण जाट किसान परिवार में उनका जन्‍म हुआ था.

उस समय किसानों की स्थिति अत्यंत दयनीय थी. कर्ज, सूदखोरों का अत्याचार, महाजन प्रथा और शिक्षा की कमी ने गांव की आबादी के जीवन को मजबूर और लाचार सा बना दिया था. लेकिन छोटूराम ने शिक्षा के दम पर इन स्थितियों को चुनौती देने का फैसला लिया. उन्होंने कानून की पढ़ाई की और आगे चलकर राजनीति में कदम रखा ताकि किसानों की समस्याओं को सही तरीके से हल किया जा सके. असल में वह खुद भी इसी स्थिति से गुजर चुके थे. 

क्‍यों बने विद्रोही 

एक सामान्य से किसान परिवार से आने वाले सर छोटूराम के पिता सुखीराम पर कर्ज समेत कई मुकदमों का बोझ था. इन स्थितियों में उन्‍होंने पढ़ने की इच्छा जाहिर की तो पिता ने मना नहीं किया. बेटे को पढ़ाने के लिए पिता ने साहूकार से कर्ज लेने की सोचा लेकिन कर्ज देने की जगह साहूकार ने उनके पिता को खूब अपमानित किया. पिता के इस अपमान ने बालक छोटू राम के मन में क्रांति और विद्रोह के बीज बो दिए. 

पिता को अपमानित होता देख उन्‍होंने तय किया किसानों को कर्ज से आजादी दिलाकर रहेंगे. 1910 में आगरा कॉलेज से एलएलबी की डिग्री हासिल करने वाले छोटूराम 'कर्ज राहत कानून' लेकर आए. इसने किसानों को कर्ज जाल से आजाद कराने में बड़ी भूमिका अदा की. इस कानून ने महाजनी प्रथा की जकड़न से किसानों को आजादी दिलाई. सूदखोरों की तरफ से मनमानी ब्याज दरों पर दिए गए कर्ज और किसान जमीनों की जब्ती पर रोक लगाई गई. सर छोटूराम ने ग्रामीण अदालतों और कर्ज निपटान तंत्र को सरल बनाकर किसानों को इंसाफ हासिल करने के लायक बनाया. यह कदम उस दौर में क्रांतिकारी था जब किसान अपनी ही जमीनों से बेदखल किए जा रहे थे.

कौन-कौन से कानून कराए पास

उन्होंने कृषि आधारित अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए भी कई महत्वपूर्ण कदम उठाए. सर छोटूराम ने 'मार्केटिंग बोर्ड' और 'मंडी समितियों' की नींव रखी जिससे किसानों को उनकी उपज की सही कीमत मिल सके. उनका मानना था कि किसान केवल उत्पादनकर्ता नहीं बल्कि एक सशक्त आर्थिक इकाई होना चाहिए. फसल का सही दाम, तौल में पारदर्शिता और मंडियों में मध्यस्थों के अत्याचार पर नियंत्रण, ये सभी सुधार उनके ही प्रयासों से संभव हुए. सन् 1938 में सर छोटू राम ने साहूकार रजिस्ट्रेशन एक्ट पास करवाया. गिरवी जमीनों की मुफ्त वापसी एक्ट-1938, कृषि उत्पाद मंडी अधिनियम- 1938, व्यवसाय श्रमिक अधिनियम- 1940 और कर्ज माफी अधिनियम- 1934 कानून को भी पास कराने का श्रेय उन्‍हें दिया जाता है.  

गांवों में शिक्षा पर दिया जोर

गांवों में तक शिक्षा पहुंचे, इस बात पर भी सर छोटूराम ने खास ध्यान दिया. उनका मानना था कि किसान परिवारों के बच्चे अगर शिक्षित होंगे तभी आर्थिक और सामाजिक तरक्‍की हो सकेगी. उन्होंने स्कूलों, कॉलेजों और टेक्निकल इंस्‍टीट्यूशंस के निर्माण के लिए बड़े स्तर पर काम किया. आज हरियाणा और आसपास के राज्यों में दर्जनों संस्थान उनके नाम और उनके योगदान को सम्मान देते हैं. सन् 1916 में सर छोटूराम कांग्रेस में शामिल हो गए और साल 1920 में उन्‍हें रोहतक जिला कांग्रेस समिति का अध्यक्ष बनाया गया. लेकिन वह कांग्रेस के साथ ज्‍यादा दिनों तक नहीं रहे. वह इस बात से नाराज थे कि महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन के दौरान किसानों की अनदेखी की जा रही है. इसके बाद उन्‍होंने सर फजले हुसैन और सर सिकंदर हयात खान के साथ मिलकर जमींदारा पार्टी बनाई, जो बाद में यूनियनिस्ट पार्टी हो गई. राजनीतिक क्षेत्र में भी उनका प्रभाव बेहद मजबूत था.  

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