Kisan Tak Summit 2025: 'किसान तक' ने शुक्रवार को लखनऊ में आलू अधिवेशन आयोजित किया. इस कार्यक्रम को पूरी तरह से आलू पर आधारित रखा गया क्योंकि 30 मई को विश्व आलू दिवस भी है. इस खास मौके पर किसानों ने भी कई तरह के सवाल पूछे जिसका सवाल देने के लिए डॉक्टर कौशल कुमार नीरज, ज्वॉइन्ट डायरेक्टर हॉर्टीकल्चर, राजीव कुमार वर्मा ज्वॉइन्ट डायरेक्टर, हॉर्टीकल्चर लखनऊ और डॉक्टर संजय रावल प्रिंसिपल साइंटिस्ट सीपीआरआई मेरठ ने किसानों के सवालों के जवाब भी दिए.
'पूछो, समझो जानो' सेशन में सबसे पहले कन्नौज के किसान दिग्विजय कटियार ने सवाल किया. वह एक किसान होने के अलावा एक कोल्ड स्टोरेज मालिक भी हैं. उनका सवाल था कि स्टोरेज पर सब्सिडी सिर्फ यूनिट सिस्टम को ही क्यों मिलती है बंकर सिस्टम को क्यों नहीं मिलती है? यह भेदभाव क्यों है?
राजीव कुमार वर्मा ने इस सवाल का जवाब दिया और कहा कि सरकार का मकसद होता है नए कार्यक्रम को लोगों में पॉपुलर करना. पुराने कोल्ड स्टोरेज जो बंकर की तरह होते थे उसमें कुछ सीमाएं थी. कई बार कई चीजें एक ही साथ रख दी जाती हैं जैसे अंडा और आलू एक ही साथ रख दी जाती है जिसमें कई बार एक कमोडिटी के सड़ने की आशंका ज्यादा रहती है. जबकि मल्टी चैंबर कोल्ड स्टोरेज में कई चीजें रखी जा सकती हैं. मल्टी स्टोरेज सिर्फ आलू के बारे में नहीं है बल्कि कई चीजों जैसे सेब के लिए भी प्रयोग हो सकता है. इसलिए सरकार मल्टी चैंबर कोल्ड स्टोरेज को प्रोत्साहित करती है.
गोरखपुर के किसान ने सवाल किया कि पूर्वांचल में शीतलहर के चलते आलू का उत्पादन ठीक तरह से नहीं हो पाता है? कई बार आलू धान की फसल के चलते बोने में देरी हो जाती है? इस पर डॉक्टर कौशल कुमार नीरज ने कहा कि पाले से बचने के लिए यूपी में माइक्रो इरीगेशन की व्यवस्था चल रही है. अगर ड्रिप और स्प्रिंकलर विधि का प्रयोग किया जाए तो पाले से आलू की फसल को बचाया जा सकता है. सरकार माइक्रो इरीगेशन पर 80 से 90 फीसदी तक सब्सिडी भी मुहैया करा रही है.
एक और किसान ने पूछा कि आलू के लिए ड्र्रिप सिंचाई बेहतर है या स्प्रिंकलर कौन सा सिस्टम बेहतर है? इस पर डॉक्टर नीरज ने जवाब दिया कि दोनों ही सिस्टम माइक्रो इरीगेशन का एक हिस्सा हैं. ड्रिप इरीगेशन को प्रिसिजन सिस्टम भी बोलते हैं. टपक सिंचाई के जरिये जड़ों में पानी पहुंचता है और यह उन जड़ों के लिए बेहतर हैं जो कतार से बोईं जाती हैं. उन्होंने गुजरात के बनासकांठा का उदाहरण दिया जहां किसान आलू की खेती के लिए मिनी स्प्रिंकलर पद्धति का प्रयोग करते हैं.
उन्होंने कहा कि कुछ मामलों में ड्रिप उपयोगी है तो कुछ मामलों में स्प्रिंकलर उपयोगी रहता है. उनका कहना था कि किसान की जरूरत कैसी है, इस पर ड्रिप या मिनी स्प्रिंकलर का प्रयोग किया जाता है. इसी सवाल के जवाब में सीपीआरआई के डॉक्टर संजय रावल ने भी आलू की फसल के लिए ड्रिप सिंचाई पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि इससे आलू की फसल में क्लॉगिंग हट जाती है, पानी की बचत होती है और आलू का उत्पादन बढ़ता है.
डॉक्टर संजय रावल ने कहा कि आजकल मिट्टी के बिना भी किसान एरोपोनिक्स तकनीक से भी खेती कर सकते हैं. यूपी में भी इसका सेंटर लगा रहे हैं, लेकिन यह बहुत ही महंगी और स्पेशलाइज्ड तकनीक है. यह तकनीक सामान्य या खुले खेत में काम नहीं करेगी क्योंकि इसके लिए पॉलीहाउस अपनाना होता है. डॉक्टर राजीव वर्मा ने बताया कि कहा कि सीपीआरआई के वैज्ञानिक जो ब्रीडर सीड तैयार करते हैं तो वो बीज हम किसानों को मुहैया कराते हैं. अगर ब्रीडर सीड नहीं दे पाते हैं तो फाउंडेशन बीज मुहैया कराते हैं. ITM की स्कीम चलाते हैं जिसमें हम किसानों को दवाओं के प्रयोग की ट्रेनिंग देते हैं. इसके अलावा किसानों को दवाओं के लिए हम सब्सिडी देते है.
राजीव वर्मा ने कहा कि हम किसानों को आलू पर जैविक खाद छिड़कने की सलाह देते हैं. इस पर केमिकल छिड़कने का सुझाव नहीं देते क्योंकि उसका पेस्ट हमारे अंदर भी जाता है. किसानों को जैविक खाद अपनाने के लिए यूपी सरकार की ओर से सब्सिडी दी जाती है. सरकार कोशिश करती है कि उत्पादन से लेकर बिक्री तक किसानों को मदद की जाए. आलू के रेट गिरने पर सरकार हस्तक्षेप योजना के तहत किसानों से खरीदारी करती है.
देश में कुछ किसान काला आलू की खेती कर रहे हैं जो अंदर से भी काला है. इसके बारे में सीपीआरआई के संजय रावल ने कहा कि सीपीआरआई ने इसका बीज अभी बाहर नहीं भेजा है. इस पर काम चल रहा है, लेकिन कुछ किसान विदेश से इसका महंगा बीज मंगा कर खेती कर रहे हैं. सामान्य तौर पर इसकी खेती नहीं हो रही. कुफरी नीलकंठ किस्म पर्पल कलर का आलू है जिसका बीज किसान अक्टूबर से सीपीआरआई से ले सकते हैं.
आगरा में आलू की खेती करने वाले किसान लाखन ने कहा कि इस समय 322 कोल्ड स्टोरेज चालू और 78000 हेक्टेयर में आलू की खेती होती है. हमें ऐसे बीज चाहिए कि हम आगरा में पैदा आलू को निर्यात कर सकें. डॉक्टर नीरज ने बताया कि आगरा को हमेशा सबसे ज्यादा बीज मिलते रहते हैं और सीआईपी केंद्र के लिए आगरा ही चुना गया है ताकि सबसे ज्यादा लाभ आलू उत्पादक किसानों को मिल सकें. किसानों को लेटेस्ट टेक्नोलॉजी जैसे एरोपॉनिक्स की ट्रेनिंग दी जा सके. आलू एक ऐसी फसल है जिसमें 40 प्रतिशत से ज्यादा लागत बीज में ही जाती है. लेकिन सरकार प्रयासरत है कि किसानों को आलू के बीज पर सब्सिडी दी जा सके.
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