केले के पौधों में फ्यूजेरियम विल्ट (जिसे नंबर 2 विल्ट भी कहा जाता है) एक गंभीर बीमारी है, जो पौधों की वृद्धि को प्रभावित करती है और उत्पादन में कमी का कारण बनती है. यह बीमारी केले के बागों में उत्पादन में भारी नुकसान का कारण बन सकती है. इस समस्या के समाधान के लिए वैज्ञानिकों ने एक जैविक फॉर्मूलेशन तैयार किया है, जिसमें फंगल और बैक्टीरियल विरोधी तत्व शामिल हैं.
इस जैविक फॉर्मूलेशन में मुख्य रूप से Trichoderma spp. और Bacillus spp. जैसी प्रभावी बैक्टीरिया और फंगस की प्रजातियाँ शामिल हैं. ये दोनों तत्व फ्यूजेरियम विल्ट रोग के खिलाफ कार्य करते हैं और केले के पौधों को इससे बचाने में मदद करते हैं.
ट्राइकोडर्मा एसपीपी: यह एक प्रकार का फंगल तत्व है जो फ्यूजेरियम विल्ट के विकास को रोकता है. यह फंगल बीमारी के प्रकोप को कम करता है और पौधों की सुरक्षा करता है.
बैसिलस एसपीपी: यह बैक्टीरिया पौधों की रक्षा प्रणाली को मजबूत करता है और फ्यूजेरियम के हमले से बचाता है. यह पौधों में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है.
ये भी पढ़ें: जलवायु परिवर्तन के चलते गायब होने की कगार पर महाराष्ट्र का मशहूर रायवल आम!
यह जैविक फॉर्मूलेशन न केवल फ्यूजेरियम विल्ट रोग को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करता है, बल्कि यह पौधों की वृद्धि के मापदंडों में भी सुधार करता है. नियंत्रित पौधों की तुलना में इस उपचार से केले के पौधों की उपज में भी महत्वपूर्ण वृद्धि देखी जाती है.
ये भी पढ़ें: करनाल: घोषित तारीख के 8 दिन बाद शुरू हुई गेहूं खरीद, विधायक और मेयर को खुद पहुंचना पड़ा मंडी
यह जैविक उपचार केले के पौधों की वृद्धि को बढ़ाता है. इससे पौधे मजबूत होते हैं और अधिक स्वस्थ दिखाई देते हैं.
नियंत्रित पौधों के मुकाबले, इस जैविक फॉर्मूलेशन से उपचारित केले के पौधे अधिक फल देते हैं, जिससे किसान को बेहतर फसल का लाभ मिलता है.
केले के बागवानी में फ्यूजेरियम विल्ट के प्रभावी प्रबंधन के लिए यह जैविक फॉर्मूलेशन एक अद्भुत समाधान साबित हो रहा है. इसमें इस्तेमाल किए गए Trichoderma spp. और Bacillus spp. से फसल की उपज में वृद्धि और पौधों की सेहत में सुधार होता है. इस प्रकार के जैविक उपचार से किसानों को फसल में नुकसान को कम करने में मदद मिल सकती है, साथ ही यह पर्यावरण के लिए भी सुरक्षित है.