आजतक आपने बायोगैस का इस्तेमाल खाना बनाने के काम में ही देखा होगा. तभी इसे कुकिंग गैस के नाम से भी जाना जाता है. लेकिन भूटान में एक किसान ने इस आम धारणा को बदल दिया है. इस किसान का नाम है सन मान सुब्बा जो भूटान के सिरांग के रहने वाले हैं. इन्होंने बायोगैस के इस्तेमाल का एक यूनीक तरीका निकाला है. सन मान सुब्बा पोल्ट्री किसान हैं जो 4000 मुर्गे-मुर्गियों का पालन करते हैं. भूटान में सालभर ठंड पड़ती है जिससे पोल्ट्री फार्म में पक्षियों को दिक्कत आती है. इस पोल्ट्री फार्म को रूम टेंपरेचर पर गर्म रखने के लिए किसान ने बायोगैस का इस्तेमाल किया है.
38 साल के किसान सन मान सुब्बा के पोल्ट्री फार्म में 4000 पक्षियां हैं जिनमें ब्रॉयलर के अलावा मुर्गी के चूजे भी हैं. इतने बड़े पोल्ट्री फार्म में गर्मी बनाए रखना आसान काम नहीं है और यह बेहद खर्च वाला काम है. सुब्बा ने इसके लिए बिजली का बंदोबस्त किया था, मगर उसका बिल बहुत अधिक आ रहा था. पिछले साल जून में सुब्बा के दिमाग में अचानक बायोगैस का प्लान आया.
सन मान सुब्बा ने फैसला किया कि वे पोल्ट्री फार्म को गर्म रखने के लिए बिजली के बजाय बायोगैस का इस्तेमाल करेंगे. 'भूटान लाइव' के हवाले से ANI ने इसकी रिपोर्ट दी है. सुब्बा के सामने अब बायोगैस बनाने की चुनौती थी. मगर बायोगैस के कच्चे माल की कोई परेशानी नहीं थी. उन्होंने बड़ा बायोगैस प्लांट बनाया और उसके कच्चे माल के रूप में सूअर और गाय पालन से निकले अपशिष्ट का प्रयोग शुरू कर दिया.
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सुब्बा के बायोगैस प्लांट की सबसे बड़ी खासियत ये है कि इसका गड्ढा ओलिंपिक स्वीमिंग पुल के बराबर है. इस प्लांट से निकलने वाली बायोगैस 7,000 पक्षियों को गर्मी दे सकती है. प्लांट के बारे में सन मान सुब्बा कहते हैं, पिछले साल ठंड के केवल एक महीने का बिजली बिल एनयू 60,000 दिया था. इसलिए किसी दूसरे विकल्प पर सोचना शुरू किया जो सस्ता इकोनॉमिकल हो. इससे बचे हुए पैसे का उपयोग किसी और काम भी हो सकता है.
चूजों को सही आकार मिले और उनकी सेहत अच्छी रहे, इसके लिए पोल्ट्री फार्म का तापमान बनाए रखना पड़ता है. तापमान गिरावट से चूजों के मारे जाने का खतरा रहता है. पोल्ट्री फार्म में 32 डिग्री रूम टेंपरेचर की जरूरत होती है, लेकिन कड़ाके की ठंड में इसे बनाए रखना बड़ा काम होता है. सुब्बा कहते हैं कि जब भूटान में सर्दी तेज होती है, उस वक्त बायोगैस से भी काम नहीं चलता. कुछ बिजली की जरूरत जरूर पड़ती है. लेकिन बायोगैस लगाने से खर्च में बहुत कमी आ गई है.
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छोटे चूजों को गर्म रखने के लिए केवल बायोगैस से काम नहीं चलता, इसलिए बिजली की भी मदद लेनी पड़ती है. हालांकि बड़े मुर्गे या मुर्गियों को गर्म रखने के लिए बायोगैस से काम चल जाता है. इसके अलावा सुब्बा का परिवार घर का खाना बनाने और गायों के चारे की कटाई जैसे काम के लिए बायोगैस की पूरी मदद लेता है.
आज सुब्बा को बायोगैस से हर महीने एनयू 40,000 की बचत होती है. सुब्बा आने वाले महीनों में सूअर फार्म को गर्म रखने के लिए बायोगैस का प्रयोग करने वाले हैं. सन मान सुब्बा की कोशिश ये भी है कि एलपीजी सिलेंडर में बायोगैस भरकर उसका पूरा इस्तेमाल करें. सन मान सुब्बा जैसे लोगों की कोशिशों से भूटान ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने की ओर अग्रसर है. अभी उसे भारत जैसे देशों से अपनी बिजली की जरूरतें पूरी करनी होती हैं.