धान को चपेट में ले रहा चीन से चला ये वायरस, पंजाब आसपास के कई राज्यों में खतरनाक असर

धान को चपेट में ले रहा चीन से चला ये वायरस, पंजाब आसपास के कई राज्यों में खतरनाक असर

धान की फसल में बौनापन एक गंभीर समस्या है. इसमें धान का पौधा छोटा रह जाता है, कमजोर और पीला पड़ जाता है. जड़ें इतनी कमजोर हो जाती हैं कि कुछ ही दिनों में पौधे गिर जाते हैं और सूख जाते हैं. इसके लिए एक खास तरह का वायरस जिम्मेदार है जो चीन से चलकर बाकी देशों में पहुंचा है.

धान की खेतीधान की खेती
क‍िसान तक
  • Noida,
  • Aug 04, 2025,
  • Updated Aug 04, 2025, 6:24 PM IST

पंजाब और हरियाणा सहित कुछ अन्य राज्यों में धान में बौनेपन की समस्या देखी जा रही है. इससे धान के पौधे छोटे रह जाते हैं, जड़ें भी विकसित नहीं होतीं जिससे पौधे या तो गिर जाते हैं या मुरझा जाते हैं. पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (PAU) की एक रिसर्च में पता चला है कि धान की उन किस्मों में यह बीमारी अधिक असर दिखा रही है जिसकी रोपाई 15 से 25 जून के बीच की गई है. रिसर्च में पता चला कि इस बीमारी के लिए एक वायरस जिम्मेदार है जिसका नाम है Southern Rice Black-streaked Dwarf Virus (SRBSDV). चौंकाने वाली बात ये है कि साल 2001 में यह वायरस सबसे पहले चीन के दक्षिण हिस्से में पाया गया जहां से इसका प्रसार अन्य देशों में हुआ है. सबसे पहले इसे पंजाब में पकड़ा गया और इसके खिलाफ काम शुरू हुआ. इस वायरस के खतरे और प्रकोप को देखते हुए किसानों को कुछ सुझाव दिए गए हैं कि वायरस की पहचान कर तुरंत उससे बचाव का उपाय करें. यहां इसके बारे में डिटेल से जानेंगे.

हरियाणा में धान को लगा बौना रोग

हरियाणा भी धान प्रधान क्षेत्र है जहां बौनेपन की समस्या पाई गई है. आपको बता दें कि धान में बौनेपन की समस्या 2022 में भी देखी गई थी. इस पर गहन रिसर्च के बाद बताया गया कि एआरबीएसडी वायरस इसके लिए जिम्मेदार है. इसे शॉर्ट में ड्वार्फ वायरस भी कहते हैं क्योंकि यह धान को बौना बना देता है. हरियाणा में बीमारीग्रस्त धानों पर रिसर्च में यह भी पाया गया कि बौनेपन के लिए राईस गॉल ड्वार्फ वायरस यानी RGDV भी जिम्मेदार है. ये दोनों ऐसे वायरस हैं धान में बीमारी फैलाते हैं, फिर धान का पौधा बौना रह जाता है. बौनेपन की वजह से धान की पैदावार घट जाती है. हरियाणा में देखा गया कि कुछ जगहों पर पैच या टुकड़ों में पौधे बहुत अधिक बौने रह जाते हैं. पत्तियों का रंग गहरा हो जाता है और कल्लों की वृद्धि रुक जाती है. बड़ी बात ये कि धान में इस वायरस का प्रकोप हॉपर के जरिये होता है. यह हॉपर धान की फसल का एक गंभीर कीट है.

पंजाब भी बौना वायरस की चपेट में

इसी तरह पंजाब में भी इस वायरस का प्रकोप देखा गया. पंजाब में धान के पौधों पर पहले बैक्टीरिया और फंगस का प्रकोप आम बात थी. बाद में इसमें वायरस और बौनेपन की समस्या देखने को मिली. यहां के जिले श्री फतेहगढ़ साहिब, पटियाला, होशियारपुर, लुधियाना, पठानकोट, एसएएस नगर और गुरदासपुर में बौनेपन की समस्या देखी गई. हालत ये हुई कि शुरू में जहां कुछ ही जिलों में बौनेपन की समस्या थी, बाद में उसका प्रकोप पूरे पंजाब में देखा जाने लगा. इस बीमारी की चपेट में आने से धान के पौधे छोटे हो गए, पत्तियां सिकुड़ गईं और जड़ें और तने बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए. पौधों की लंबाई आधा से लेकर एक तिहाई तक घट गई. ये पौधे इतने कमजोर हो गए कि हल्की हवा बहने पर भी गिर जाते थे. धान की लगभग हर वैरायटी में यह समस्या देखी गई. फिर पीएयू के वैज्ञानिकों ने इस पर गहन शोध किया और पाया कि इसके पीछे चीन से आया वायरस SRBSDV ही जिम्मेदार है. 

गहन रिसर्च के बाद पता चली ये बात

पीएयू के वैज्ञानिकों की टीम ने चावल के इन बौने पौधों के पीछे के कारण को ठीक से समझने के लिए होशियारपुर, रोपड़, मोहाली, लुधियाना, श्री फतेहगढ़ साहिब और पटियाला जिलों के प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया. टीम ने पाया कि जल्दी बोई गई धान की फसल में यह प्रकोप अधिक देखा गया. पीएयू में धान बुवाई पर रिसर्च ने पुष्टि की कि 15-25 जून को रोपी गई चावल की फसल बाद की तारीखों की तुलना में अधिक प्रभावित थी. इन जिलों में 5-7 प्रतिशत खेतों में बौनेपन के लक्षण देखे गए. प्रभावित खेतों में, बौने पौधों की घटना 5-7 प्रतिशत तक थी. रिसर्च में बौनेपन की घटना को रोपाई की तारीख से जुड़ा हुआ देखा गया है क्योंकि यह 25 जून के बाद रोपी गई फसल की तुलना में 15 से 25 जून की रोपाई में अधिक था.

इसे देखते हुए वैज्ञानिकों ने किसानों आगाह करते हुए कुछ उपाय बताए जिससे कि धान को बौनेपन से बचाया जा सकता है. आइए आपको बताते हैं कि किसान को क्या करना चाहिए.

  • खेतों में धान की फसल का लगातार नजर रखें ताकि रोग वाहक कीट की पहचान समय पर की जा सके.
  • यदि खेत में 5-10 तेला प्रति पौधा दिखाई दे तो उससे बचाव के लिए 80 ग्राम(16 ग्राम एआई) डाईनोटिफ्यूरान 20% एसजी (ओशीन 20 एसजी या टोकन 20% एसजी) या 120 ग्राम पाईमटरोजिन 50% डब्ल्यू जी (चैस 50% डब्ल्जी को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ के हिसाब से स्प्रे करें.
  • रोगग्रस्त पौधों की पहचान करें और उनको उखाड़कर गहरे गड्डे में दबाएं या जलाकर नष्ट कर दें ताकि रोग को फैलने से रोका जा सके.
  • मेढ़ों और नालियों की साफ-सफाई रखें ताकि खरपतवार और अनुवांछित पौधे न उग सकें क्योंकि इन पौधों पर कीट अपना ठिकाना बना लेते हैं.
  • धान के खेतों में ज्यादा पानी न जमा होने दें और उचित जल निकासी का इंतजाम करें ताकि पौधे स्वस्थ रहें और वायरस का प्रकोप कम हो.
  • धान के खेतों में लाईट ट्रैप का प्रयोग करें जिससे हॉपर/तेला की मौजूदगी का पता चल सके और सही समय पर हॉपर का नियंत्रण किया जा सके.

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