भारत में पान का सेवन बड़े पैमाने पर किया जाता है. खासतौर पर माउथ फ्रेशनर के तौर पर इसका इस्तेमाल पसंद किया जाता है. इस पत्ते का स्वाद बढ़ाने के लिए इसमें चुना, कत्था, सुपारी, गुलकंद और न जाने क्या-क्या मिलाया जा सकता है. कई लोगों को पान खाने की लत लग जाती है तो कई लोग इसके स्वाद के कारण इसे यूं ही खा लेते हैंपान के पत्ते का वैज्ञानिक नाम पाइपर बेटल है. जिसके कारण पान की मांग हमेशा बनी रहती है. ऐसे में पान को सुरक्षित रखना बहुत जरूरी है. ताकि बाजारों में पान की अच्छी कीमत मिल सके. ऐसे में किसान थाक विधि अपनाकर पान के पत्ते को सड़ने से बचाते हैं. आइए जानते हैं क्या है ये तरीका.
तुड़ाई के बाद, पान के पत्तों को उनके आकार, दाग-धब्बों आदि के अनुसार अलग कर लिया जाता है और डंठलों के बीच 1-1.5 सेमी की दूरी छोड़ दी जाती है. 100 पान की दूरी रखते हुए थाक की व्यवस्था की जाती है. बोलचाल की भाषा में 200 पान के पत्तों के बंडल को 'ढोली' कहा जाता है, जिसमें एक सौ पत्तों को अन्य सौ पत्तों के ऊपर अलग दिशाओं में रखा जाता है. बांस की जालीदार टोकरी को बिछाकर उस पर एक ढोली के ऊपर दूसरी ढोली बिना दबाए रखे जाते हैं. जब यह टोकरी भर जाती है तो उसके ऊपर दूसरी टोकरी रख दी जाती है और दोनों को पतली रस्सी से बांध दिया जाता है और उस टोकरी को बेचने के लिए बाजार में भेज दिया जाता है.
पत्तियों को पॉलिथीन की थैलियों में भरकर कम तापमान (4.8°C) पर रखने से पत्तियां अधिक दिनों तक ताजी और सुरक्षित रहती हैं.
पत्तों को गीले कपड़े में लपेटकर बांस की टोकरी में सामान्य तापमान पर रखने से हवा का संचार होता है, जिससे पान सड़ने की दर कम हो जाती है और कम तापमान (4.8°C) पर उपरोक्त प्रक्रिया को रोका जा सकता है. इस प्रकार पान को बाजार में उचित मूल्य पर बेचा जा सकता है.
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